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अदनासा-
Ravendra
Nk Nitesh
राधे राधे बोल चले आएंगे बिहारी ©Nk Nitesh # इंदिरा एकादशी
KP EDUCATION HD
KP NEWS HD कंवरपाल प्रजापति समाज ओबीसी for 55 ©KP EDUCATION HD अक्टूबर महीना व्रत-त्योहार के लिहाज से बेहद खास रहने वाला है. अक्टूबर में शारदीय नवरात्रि, जीवित्पुत्रिका व्रत, दशहरा, इंदिरा एकादशी, सर्व प
Hrishabh Trivedi
इंदिरा और आपातकाल (Read in caption) 25 जून 1975 भारत की राजनीति काल का सबसे घिनौना दिन। उस रात को कुछ ऐसा हुआ था जो न तो इसके पहले कभी हुआ था और ना ही इसके बाद आज तक। इसी तारीख
Sujata Darekar
पानगळ होऊन जेव्हा, नवी पालवी फुटते झटकून सारे ग्लान, झाड पुन्हा बहरात येते मरगळ अंगची गाळून घेते मुळासकट अन् पुन्हा मूळापासून हिरवे होण्यासाठीच झटते शिशिराच्या थंडीमध्ये जरी कातडी ऊलते तशातही झाड खंबीरपणे तग धरून टिकते घट्ट पाय रोवून वा-यालाही परतवून लावते तेव्हा हे झाड उत्तुंग हिमालयासारखे वाटते पाने फुटता वाटसरूस ते शितल छाया देते पशू पक्षांचे निवास बनून अंगाखांदी झुलवते मित्रांनो आणि मैत्रिणींनो, शिशिर ऋतूमध्ये म्हणजेच हिवाळ्यात झाडांची पाने गळून पडतात आणि त्यांना नवी पालवी फुटते. झाडं, वेली यांना पुन्हा एकद
Insprational Qoute
नाज़ो से ये पली माँ की लाड़ली, पापा की परियाँ होती हैं बेटियाँ, एक मुस्कान से घर को महका दे, दुख में आँसू छलकाती है बेटियाँ, बेटों की तरह पिता का सहारा होती, मुश्किल घड़ी में साया होती है बेटियाँ, बढ़ाती हैं हौसला बन नैया परिवार की, ऐसी पतवार होती हैं ये प्यारी बेटियाँ, पिता का सम्मान,भाई का अभिमान, समाज का मान भी बढ़ाती हैं बेटियाँ, यही है जो नए कुल की रीत हैं बढ़ाती, समस्त सृष्टि की उतपति होती बेटियाँ, घर आँगन की रौनक होती हैं मां लक्ष्मी, सरस्वती व दुर्गा स्वरूप होती है बेटियाँ, हर रूप में योगदान कभी मां बन देती हैं तो कभी अर्धांग्नी,बहन,कभी होती बेटियाँ। #विशेषप्रतियोगिता आज भारत में राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जा रहा है. हर साल 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाने की शुरुआत साल 2009 में
यशवंत कुमार
ओ आयशा ! आख़िर क्यूँ मर गई तुम ? दहेज दानवों से इतना क्यूँ डर गई तुम ? सुनता आया हूँ- तुम दुर्गा हो, काली हो. जीवन को तुम ही तो जन्म देने वाली हो. फिर अपने ही जीवन से क्यूँ हहर गई तुम ? ओ आयशा ! आख़िर क्यूँ मर गई तुम ?? तुम अबला नहीं हो, शक्ति का अवतार हो. सदियों से बारम्बार, जग की तारणहार हो. फिर किस भय से इतना सिहर गई तुम?? ओ आयशा ! आख़िर क्यूँ मर गई तुम ?? जगत्जननी होकर भी तुमने ये कैसा संदेश दिया? क्यूँ नहीं विप्लव को अपना तांडव नृत्य किया? क्यूँ नहीं कलेजे भेद दिए तुमने अपनी बरछी से? क्यूँ नहीं धरा को राक्षसों के लहू से संतृप्त किया? कब तक तेरी ममता तेरा ही गला घोंटेगी? कब तक तेरी संताने ही, तेरी बोटी नोंचेंगी? कब तक बनी रहोगी, तुम आख़िर अबला? आख़िर कब तू जागेगी,अपना हित सोचेगी? कहानियों के चरित्र से तुम स्वयं को मुक्त करो. ममता का आवरण त्यज, चक्षु अपने क्रुद्ध करो. लक्ष्मीबाई, सुभद्रा, इंदिरा; सब तो तुम ही हो! डर कर मरो नहीं, अस्तित्व की ख़ातिर युद्ध करो!! A tribute to Aayesha. Picture has been taken from a viral video on facebook. ओ आयशा ! आख़िर क्यूँ मर गई तुम ? दहेज दानवों से इतना क्यूँ डर
AK__Alfaaz..
कल भोर की, उदित होती सिंदूरी किरण के संग, मैने नेह की सुनहरी पोटली मे, सूरज से आती, ममता की धूप को, अपनी झीनी सी, हथेलियों से भर लिया, और.. गले का हार बना लटका लिया, ममत्व की डोरी मे पिरो, कल भोर की, उदित होती सिंदूरी किरण के संग, मैने नेह की सुनहरी पोटली मे, सूरज से आती, ममता की धूप को, अपनी झीनी सी हथेलियों से भर लिया,