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smitavolgs
Sangeeta Kalbhor
लढले वेडे वेडात अडकून.. सहजासहजी नाही मिळालं नाही कोणी दान केलं मिळवण्या स्वातंत्र्य शहीदांनी होतं जीवाचं रान केलं सुकुमार तरणीबांड पोर त्याग करती घरादाराचा देशभक्ती रक्तात भिनवून टिळा लावती मरणाचा लढले वेडे वेडात अडकून धुमाकूळ असे हा जगण्याचा लपती छपती क्षणात उसळती डाव जणू खेळला आयुष्याचा भगतसिंग राजगुरू सुखदेव हसत हसत फासावर चढले मायभूमीच्या रक्षणासाठी कोवळ्या वयात लढले स्वतंत्र भारताची राज्यघटना स्वीकारला तो हाच दिवस भारतीयांच्या सुटकेचा फेडिला कित्येक शूरवीरांनी नवस..... मी माझी..... 14/09/2023 ©Sangeeta Kalbhor #Chhuan लढले वेडे वेडात अडकून.. सहजासहजी नाही मिळालं नाही कोणी दान केलं मिळवण्या स्वातंत्र्य शहीदांनी होतं जीवाचं रान केलं सुकुमार तरणीबांड
एक इबादत
क्या तुम्हें याद है ना होता सावन,भादव का मौसम फिर भी तुम पर प्यार बरसाया करता था लगा कर हर पल गले से तुमको चेहरे पर तुम्हारे मुस्कान सजाया करता था नही थी कोई जगह हमारी मोहब्बत में पतझड़ की नूतन की ना आस रख पुराने प्यार को बसंत की तरह महकाता था क्या तुम्हें याद है ना होता आषाढ़,सावन का मौसम फिर भी तुमपर अथाह प्यार बरसाता था.. -💞कवि-एक काव्यप्रेमी💞✍️ ,नीर बहा कर अँखियों से सब कुछ उसने कह डाला अवशेष बचा था जो मन में चेहरे से मैंने पढ़ डाला।। श्रृंगार रसों की कविता में मर्म विरह का घोल दिय
Sarita Shreyasi
थक गयी हूँ दौड़ कर अब, लौटना अपनी ओर चाहती हूँ , विसर्जित कर सारी विकृतियाँ, फिर भाव-विभोर होना चाहती हूँ। आज सारे मोह तज कर, खुद की चितचोर होना चाहती हूँ, दूसरों को देने से पहले, खुद के लिए बरसना चाहती हूँ । निजमन से जुड़ने के लिए, एक मजबूत डोर चाहती हूँ, संबंधों की गाँठें घुला कर, पुलकित पोर होना चाहती हूँ। थक गयी हूँ दौड़ कर अब, लौटना अपनी ओर चाहती हूँ , विसर्जित कर सारी विकृतियाँ, फिर भाव-विभोर होना चाहती हूँ। आज सारे मोह तज कर, खुद की चितचोर
Sarita Shreyasi
आज ढ़लती दोपहर में, फिर भोर होना चाहती हूँ, मन के गुमसुम से पहर में,वो अनसुना शोर सुनना चाहती हूँ । आज ढ़लती दोपहर में, फिर भोर होना चाहती हूँ, मन के गुमसुम से पहर में,वो अनसुना शोर सुनना चाहती हूँ । आज सारे मोह तज कर, खुद की चितचोर होना चा
Sarita Shreyasi
आज इनआँखों को फिर से मुस्कुराने दो, बरसने दो,प्यार में पोर- पोर भींग जाने दो, हठी शिकायतों की होलिका जलने दो, अवसादों का गुबार उड़ने दो,बह जाने दो। आज इनआँखों को फिर से मुस्कुराने दो, बरसने दो,प्यार में पोर- पोर भींग जाने दो, हठी शिकायतों की होलिका जलने दो, अवसादों का गुबार उड़ने दो,बह ज
Satish Chandra
अंगुली के पोर पर रख जीवन की डोर थामा हाथ मोहब्बत़ का चल पड़ा तिश्नगी की ओर, सुहानी सी जो रूत थी उससे हो उठा दिल भावविभोर रात की कैकश़ा सिमटी मुझमें और अपना सा कर गई वो भोर, नजाकत़ से तृष्णा देती घटाएँ जैसे कोई चित़चोर समेटे हुए आतिश-ए-उन्सुर मोहब्बत़ की हयत़ ले चली अपनी ओर, अंगुली के पोर पर रख जीवन की डोर। #पोर #अंगुलीकेपोर #YQdidi #हिन्दी #ऊर्दू #जिंदगी #मोहब्बत़ #शाम_सवेरा #तृष्णा
Vandana
क्या तुम्हें याद है❤ ,नीर बहा कर अँखियों से सब कुछ उसने कह डाला अवशेष बचा था जो मन में चेहरे से मैंने पढ़ डाला।। श्रृंगार रसों की कविता में मर्म विरह का घोल दिय
Vandana
सुप्रभात सुबह-सुबह कि भोर गये तालाब ओर नैनो को भिगो दिया प्रकृति के सौंदर्य ने ताजगी के एहसास मे टहल आये,,,,, सुबह-सुबह कि भोर भीगी दूबों पर मखमली म
Insprational Qoute
सम्पूर्ण रचना अनुशीर्षक में पढ़े। वेदव्यास, वाल्मिकि ,भवभूति,श्रीहर्ष, बाणभट्ट, पल्लवित किया संस्कृत का साहित्य सु -स्पष्ट, चयनित विषयों में प्रकृति का सार अनमोल- है, धरा क