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Devesh Dixit
जीने लगें हैं अब सारे गमों को पीछे छोड़, देखो जीने लगे हैं अब। लोगों की फ़िक्रों को छोड़, देखो बढ़ने लगे हैं अब। नज़रअंदाज़ किया उनको, जिसने भी कांँटे बोए हैं। क्या कहें अब हम उनको, वे खुद ही कर्मों पर रोए हैं। उन्हें उनके हाल पर छोड़, सपने बुनने लगे हैं अब। उन सपनों को अपने जोड़, देखो जीने लगे हैं अब। क्यों करनी है उनकी चिंता, उनसे क्या सरोकार है अब। नकाब के पीछे है जो चेहरा, उन पर कहाँ एतबार है अब। आशाओं को जो हटाया, देखो जीने लगे हैं अब। स्वयं को फिर सुदृढ़ पाया, और संवरने लगे हैं अब। ..................................... देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #जीने_लगें_हैं_अब #nojotohindi #nojotohindipoetry जीने लगें हैं अब सारे गमों को पीछे छोड़, देखो जीने लगे हैं अब। लोगों की फ़िक्रों को छोड़,
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
आँख से आँख अब तक मिलाया नहीं । शीश माँ बाप का भी झुकाया नहीं ।।१ ताज तो मैं नही रख सका शीश पर। हाँ मगर दिल भी उनका दुखाया नहीं ।।२ आज कहते सभी गाँव में देखकर । कौन सा धर्म इसने निभाया नहीं ।।३ कापतीं जब दिखी उँगलियाँ मातु की । हाथ कान्धों से उनका हटाया नहीं ।।४ हाथ जो थामकर सीख चलने लगे । इल्म वो भी अभी तक भुलाया नहीं ।।५ ये अदब जो बड़ो के लिए आज है । दोस्त बाजार से देख लाया नहीं ।।६ झूठ सारी हुई आज बातें यहाँ । पाँव माँ बाप के मैं दबाया नहीं ।।७ मान जिनको लिया दोस्त गुरुदेव है । आज सागर वही हैं छुपाया नहीं ।।८ बन गया है सबब अब प्रखर हार का । राज जो था किसी को बताया नहीं ।।९ १९ ०७/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR आँख से आँख अब तक मिलाया नहीं । शीश माँ बाप का भी झुकाया नहीं ।।१ ताज तो मैं नही रख सका शीश पर। हाँ मगर दिल भी उनका दुखाया नहीं ।।२ आज कहते
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- आँख से आँख अब तक मिलाया नहीं । शीश माँ बाप का भी झुकाया नहीं ।।१ ताज तो मैं नही रख सका शीश पर। हाँ मगर दिल भी उनका दुखाया नहीं ।।२ आज कहते सभी गाँव में देखकर । कौन सा धर्म इसने निभाया नहीं ।।३ कापतीं जब दिखी उँगलियाँ मातु की । हाथ कान्धों से उनका हटाया नहीं ।।४ हाथ जो थामकर सीख चलने लगे । इल्म वो भी अभी तक भुलाया नहीं ।।५ ये अदब जो बड़ो के लिए आज है । दोस्त बाजार से देख लाया नहीं ।।६ झूठ सारी हुई आज बातें यहाँ । पाँव माँ बाप के मैं दबाया नहीं ।।७ मान जिनको लिया दोस्त गुरुदेव है । आज सागर वही हैं छुपाया नहीं ।।८ बन गया है सबब अब प्रखर हार का । राज जो था किसी को बताया नहीं ।।९ १९ ०७/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR आँख से आँख अब तक मिलाया नहीं । शीश माँ बाप का भी झुकाया नहीं ।।१ ताज तो मैं नही रख सका शीश पर। हाँ मगर दिल भी उनका दुखाया नहीं ।।२ आज कहते
Pawan Soni Ji
यूं ही नहीं, कदम पीछे खिसके हैं हमारे, राह में तुम्हारी , कई ख्वाब टूटे हैं हमारे धागे इश्क के, बड़े नाजुक निकले बदला वक्त और तुम भी बदले चुन ली तुमने अलग राह, हमारे रस्ते बट गए तूने एक कदम हटाया पीछे हम चार कदम पीछे हट गए ©Pawan Soni Ji तूने एक कदम हटाया पीछे हम चार कदम पीछे हट गए #Life #pawansoniji #shayri #Shayar #Nojoto #Hindi #poem #urdu #viral #Love
Technocrat Sanam
अब ये मुमकिन तो नहीं के - हर अदा को क़हर ही बताया जाए अच्छा तो ये होगा 'सनम' के ज़हर को ज़हर ही बताया जाए हम ख़ुद रास्ता बदल सकते हैं, अरे.. हम ख़ुद भी तो रास्ता बदल सकते हैं ज़रूरी तो नहीं के लात मारकर हर पत्थर रास्ते से ही हटाया जाए अच्छा तो ये होगा सनम के ज़हर को ज़हर ही बताया जाए.. ©technocrat_sanam #cinemagraph अब ये मुमकिन तो नहीं के - हर अदा को क़हर ही बताया जाए अच्छा तो ये होगा 'सनम' के ज़हर को ज़हर ही बताया जाए हम ख़ुद रास्ता बदल
Kulbhushan Arora
प्रिय दुख अब तुमसे भी क्या पूछना कि कैसे हो? प्रिय दुख, मेरे जन्म जन्म के साथी, तुमसे क्या पूछूं कि कैसे हो? बचपन में एक गाना सुना था, राही मनवा दुख की चिंता क्यों सताती है, दुख तो अ
सुसि ग़ाफ़िल
उड़ती हुई जुल्फें तेरी कंधे पर आई मैंने जुल्फों को हटाया कंधे से तेरे चेहरे पर एक मुस्कुराहट आई| कंधे को चूम लिया मैंने हल्के स्पर्श से स्पर्श जो हुआ झलक अंदर से आई| जब-जब उंगलियां तेरे बालों में उलझाई हद से ज्यादा मोहब्बत तेरे निखर कर आई| छू लिया तेरा जिस्म रूह ने ली अंगड़ाई उड़ती हुई जुल्फें तेरी कंधे पर आई | उड़ती हुई जुल्फें तेरी कंधे पर आई मैंने जुल्फों को हटाया कंधे से तेरे चेहरे पर एक मुस्कुराहट आई|
Mahima Jain
•| डरावना किस्सा |• \जब "उसने" दरवाज़ा बंद होने नहीं दिया।/ (यह किस्सा सच्ची घटना पर आधारित है। कमज़ोर दिल वाले दिल को मज़बूत कर के पढ़ें।) "जब उस ने दरवाज़ा बंद होने नहीं दिया।" ऐसे तो मेरे पास लिखने के लिए बहुत सारी बी डरावनी कहानियां हैं क्योंकि मेरा स्कूल ही 150 साल पुराना ह
Anonymous
माँ ने इस जहाँ को सही पहचाना था मैंने उनसे हर बार ज़ुबान लड़ाया था है इस जहाँ में अच्छे लोगों की महफ़िल चीख चीख कर उनको मैंने ये हर बार कहा था नासमझ बोल माँ ने मुझे समझाया था उनकी बातों को मैंने अनसुना कर दिया था आज कल लोगों की रूह में, अच्छाई से ज्यादा बुराई छिपती है माँ की इस बात पर भरोसा न कर मैंने गलती किया था बच्ची थी शायद, दुनिया जन्नत सी महसूस होती थी मेरी ये आँखों के पर्दे को उस दिन माँ ने हटाया था दुनिया की मुखेटे के पीछे का सच पहचानने में गलती हो गयी मुझसे जब भी टकराई इस ज़माने से, तब बस माँ ने ही मुझे संभाला था।। माँ ने इस जहाँ को सही पहचाना था मैंने उनसे हर बार ज़ुबान लड़ाया था है इस जहाँ में अच्छे लोगों की महफ़िल चीख चीख कर उनको मैंने ये हर बार कहा था
RAHUL VERMA
महफ़िल में कैसे कह दे किसी से दिल बंध रहा है एक अजनबी से Hello Resties! ❤️ मोहब्बत सच्ची थी, इसीलिए नज़रें हटाया नहीं हमने महफ़िल मैं तुमसे ,, छोड़कर हमें अगर तुमने सही किया तो , नज़रें तुम भी मि