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Saurav life
White आरंभ कुछ भूले-बिखरे पन्ने, उड़ गए कहीं झरोखों से। यादे उनकी अमर-शेष, भूलूं कैसे उन्हें अब, इन ज़माने से ? अमिट है वो पल, कैसे छोड़ू उन्हें, किसी मुहाने में ? जिये थे वो लम्हे भी कभी हसीन, भला लड़ूं कैसे “बदलते वक्त” के फ़साने में ? वो सोच, अब जिंदगी ठहर रही; पर वक़्त ना ठहरा हमारे से। न भूलते लोग, न तेरे वायदें, आखिर, उम्मीद रखूं अब कैसे इन इरादों से ? यहां पन्ने बिखर गए हवाओं के बहाने से, नियति मेरी ऐसी, वो गए अपने फ़साने से, रक्त में चिंगारी अभी शेष- छोड़ इन पन्नो, लिख दो समर अपने जज्बातों से; नियति" नहीं इतनी अमर हमारी, गलतियां थी मेरी, अपनी भावनाओं से। तेरे रास्तों को देख ये फुर्सत बदल गया, वर्ना इतनी फुर्सत न थी मुझे इन जमाने से। सूरज अभी ढला नही, प्रभात शेष हैं, लिख दो अब नयी किताब, उन्ही बिखरे हुए यादों से। था मैं फौलाद, भूले जो न रही विश्राम अभी; हो रहा “आरम्भ” अब उस वेदना की टंकार से। ©Saurav life #hindi_poem_appreciation #sauravlife
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White जो न ठहरा कभी राह में, जिसे फुर्सत न मिला कभी छांव में, सर पर घर के दायित्वो को लेकर जो बढ़े- उसे “पापा” कहते है। यहां डगर-डगर पर कांटे होंगे कही लहू कही पिशाच होंगे इनसे लड़कर जो आगे बढ़े उसे पापा कहते है। ना धूप की तपिश, ना अंधियारा, इनसे लड़ जो फौलाद खड़े। हमारे यहां उन्हें, पापा कहते है। चिंता नही खुद की, दो वक्त की रोटी को जूझते रात तक; जो पसीनो से नहा आगे बढ़े; उन्हें हम पापा कहते है।। ©Saurav life #fathers_day #sauravlife
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White कुछ कश्ती बीच समंदर में, मेरी, एक छोटी-सी कश्ती- कश्ती में छेद, भरता पानी; आखिर, ये साजिश किसने की थी ? शांत, वीरान-सा वो समंदर- हवाओं में कोई वेग नहीं; चढ़ती जा रही धूप- आखिर, थपेड़ो को बल दिए किसने थे ? सवार अकेला, मानो, सो रहा काल के बाहों पर। तैरना तनिक भी मुझे आता नहीं- आखिर, उम्मीदों को पंख दिए किसने थे ? धैर्य का जवाब गले पर आ अटकी; तिनको का सहारा नही। वहां रक्षक भी खुद, भक्षक भी खुद- आखिर, प्रयत्न को दिशा देना देना मुझे सूझा क्यो नही ? सामने प्रकृति के असहाय जिंदगी; ग्लानि, तैरना सीखा क्यो नहीं ? फ़सा जीवन,अपनी जिंदगी अपना भाग्य; आखिर, क्या जीवन ऐसा अंत होना ही था ? ©Saurav life #good_night_images #sauravlife
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White एक अनचाहा सफर एक चलता हुआ सफर, सामने कोहरे की पूरी छाया, चलती हुई एक अनंत यात्रा, उदय का अंत होना ही था।। रूह में भटकती ख्वाहिशें; अंतर्मन में भरा उबाल। आसमां में जो चढ़ा तो, गिरना भी जरूरी था।। मन में अंतस की पुकार; तमस में अमावस की बहार, उम्मीदों की अति में, फिसलन तो होना ही था। ये वसंत का मौसम; मौसम में पूरी अंगड़ाई। समय को बदलता देख; पतझड का आना भी स्वाभाविक था।। उम्मीदों में अंबर से कभी, मणियों का गिरना कहा जरूरी था ? लक्ष्य ही हो जब एक अंतर में, गिरने पर उसे झेलना भी जरूरी था।। कहूं कहा ये अब ये वेदना; खुद का संभलना जरूरी था। ये संसार की रीत है, भूलकर सब, अब बढ़ना भी एक मजबूरी था।। ©Saurav life #Emotional_Shayari #sauravlife
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White पाए हो हर मंजिल अकेले ही- अब कारवां में साथ क्यूं ढूंढते हो।। भूख थी तब मुझे भी रोटी की; आखिर - अब भूख ही नहीं तो राह क्यों ढूंढते हो।। ©Saurav life #sad_shayari #sauravlife
Saurav life
White क्यों रखते हो इतनी गर्दिश जमाने से; जमाने को देख मुस्कुराना भी अच्छा है।। ©Saurav life #emotional_sad_shayari #sauravlife
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White फूलों का महकना अभी बाकी है; पर, चमन में बहार पहले ही आ गए। ©Saurav life #love_shayari #sauravlife
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Meri Mati Mera Desh अकेला मेघो की गर्जना ये; क्या नूर बन जाऊं? लगती कहाँ चिंगारी अब यहाँ ? रात्रि में कैसे प्रभात बन जाऊं ? चलती है कश्ती यहाँ, जरा धीरे; बेड़िया, कैसे पार कर जाऊं ? कहते वो, अकेले हो तुम ; भला क्या, अब रार कर जाऊं ? फूलों में महकना भी; देख उन्हें क्या मंडराना सीख जाऊं ? जन्नत की इन झूठी लकीरो में- क्या जिंदगी को सहलाना भूल जाऊं ? नजरंदाजियो का यहां खौफ भी लकीरें उनकी, क्या संभालने को मिट जाऊं ? अभी हूँ मैं, यहाँ अकेला ? क्या अब महफ़िल को आनंद लुटाना भी भूल जाऊं ? ©Saurav life #MeriMatiMeraDesh #sauravlife
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White रिश्तों को जकड़कर, उसे निभा नहीं सकते; बह गया जो दरिया में, उसे समझा नही सकते।। जिनको "विश्वास" पर तौहीन हो; उनको हाथ थमा चला नही सकते।। ©Saurav life #Moon #sauravlife
Saurav life
White रिश्तों में "सिलवटों" का पड़ना भी अच्छा है; आखिर, यहां, "सिलाई" का मौका तो नही मिलता। ©Saurav life #SAD #sauravlife