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Rajiv Ahinsa
करके अंधेरा तुम अपने घरों में दिया रोशनी के जलाकर तो देखो मैं दिखने लगूँगा मसीहा सभी को मेरी तरह करके जो इबादत तो देखो राजीव अहिंसा गज़लकार मसीहा
CK JOHNY
उम्र भर इक मसीहा की इंतजार करते रहे जो आके हमारी दुख भरी जिंदगी बदल सके। रब ही था वो जो आया था इनसान के वेश में आम आदमी जान हम ही उसे पहचान न सके। दिल खोल के लुटा रहा था वो दिल की दौलत कमनसीबी मेरी कि हम ही दिल खोल न सके। औंधे बर्तन में पड़ती कैसे रहमतों की बारिश उसके समझाने के बावजूद भी सीधा कर न सके। सिर्फ इनसान को मय्यसर है खुदा हो जाना लाहनत है उस पर जो इसका फ़ायदा उठा न सके। उम्र भर इक मसीहा की इंतजार करते रहे जो आके हमारी दुख भरी जिंदगी बदल सके। बी डी शर्मा चण्डीगढ़ 19.07.2020 मसीहा
DINESH SHARMA
मेरी नई ग़ज़ल से एक शेर मेरे मसीहा , मुझे दुआएं न दे जहर दे दे, या वक़्त पे दवाएं न दे ©दिनेश शर्मा 16.06.2019 , 00:30 AM (Midnight) #मसीहा
CK JOHNY
उम्र भर इक मसीहा की इंतजार करते रहे जो आके हमारी दुख भरी जिंदगी बदल सके। आया था वो इनसान के वेश में रब था जो आम आदमी जान हम ही उसे पहचान न सके। दिल खोल के लुटा रहा था वो दौलते मुहब्बत कमनसीबी मेरी हम ही दिल खोल न सके। औंधे बर्तन में पड़ती कैसे रहमतों की बारिश बावजूद उसके समझाने के सीधा कर न सके। सिर्फ इनसान को मय्यसर है खुदा हो जाना लाहनत है उस पर जो इसका फ़ायदा उठा न सके। मसीहा
Dinesh Paliwal
फिर से न मुझको तुम बनाओ फरिश्ता, न फिर इन पांव बांधो नया कोई रिश्ता , सलीब ढोने का दम न इन कांधों में बाकी , घाव पिछला अब तक है रह रह के रिसता । ये बात दीगर है तब कौन पहले मुड़ा था , अब कौन पूछे कि वो रिश्ता कैसे जुड़ा था , लिये बोझ जाने यूँ किन किन हसरतों के , हैं फना हो रहे हम अब आहिस्ता आहिस्ता ।। ©Dinesh Paliwal #मसीहा
CK JOHNY
उम्र भर इक मसीहा की इंतजार करते रहे जो आके हमारी दुख भरी जिंदगी बदल सके। रब ही था वो जो आया था इनसान के वेश में आम आदमी जान हम ही उसे पहचान न सके। दिल खोल के लुटा रहा था वो दिल की दौलत कमनसीबी मेरी कि हम ही दिल खोल न सके। औंधे बर्तन में पड़ती कैसे रहमतों की बारिश उसके समझाने के बावजूद भी सीधा कर न सके। सिर्फ इनसान को मय्यसर है खुदा हो जाना लाहनत है उस पर जो इसका फ़ायदा उठा न सके। उम्र भर इक मसीहा की इंतजार करते रहे जो आके हमारी दुख भरी जिंदगी बदल सके। बी डी शर्मा चण्डीगढ़ 19.07.2020 मसीहा
Manmohan Dheer
फ़लसफ़े ख़ुदाई जाना मानो हजार जाना किस्सा ओ अफ़साने उसके तमाम जाना जाना मगर न जाना तुझे या खुद को जाना माना ख़ुद ख़ुदा तो फिर किसे हमने जाना . इबारतें इफ़रात बोझ धीर लिए देखता है मसीहा मिले हर गली सज़दे में जमाना . वाह क्या ख़ूब अफ़साना मसीहा