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Vikram Singh
वो अब घर जोड़ने की बात करते है जो खुद घर छोड़ कर आए हुए है वो कैसे देश से इधर से उधर जा सकते हैं हुआ था कुछ वर्षों पहले इक हादसा समझकर उसे भूलकर आए हुए हैं हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई जो एक हैं उनके दिल में अब धर्म से दीवारें खींचने का हौसला कैसे हो सकता हैं कुछ चंद कागजों से अब इनके जलील होने का फैसला कैसे हो सकता है इतने बड़े देश में पगडेंदी से भी चोटी सोच रखने वाला रखवाला कैसे हो सकता हैं खून का कतरा बहाया जिसने इस देश की जमीन के लिए ये देश अब उनके लिए पराया कैसे हो सकता हैं अरे उनको क्या पता जिसने बिन धर्म जाति पूछे खून से सींचा इस देश की नीव को उनके घर और वो खुद आज रोड पे आए हुए है वो कैसे देश से इधर से उधर जा सकते है जो हुआ था कुछ वर्षों पहले इक हादसा समझकर उसे भूलकर आए हुए हैं लोगो का बटवारा
prachianshu dixit
आ बैठ जरा मेरे पास भी। बांट ले हसीन यादे जो है तेरे पास अब भी। #बटवारा यादों का
ranjit Kumar rathour
ये एक इत्तेफाक था कि मैं अपने गांव में था भागवत कथा चल रहा था स्वभाव के विपरीत मैं वहा था आदतन सुनता नही मैं लेकिन गांव है मेरा प्रवाचक ने शुरू किया भाई से भाई के बटवारा हो लेकिन संपत्ति का नही सवाल था आखिर किसका? जवाब प्रवाचक का आया बिपत्ति का बटवारा हो पता नही क्यो लगा कि मैं गलत नही हूँ जब कि मैं उस वक्त तनाव में था फिर मैं बीच मे ही चला गया मजबूत और मजबूत होकर पास ही अपने स्कूल मैदान जहा से मैने ककहरा सीखा था नमन किया उस मंदिर को यही से हर संस्कार सीखे थे मैं भाई से मिलने आया था उसकी तबियत ठीक नही थी शायद किसी के लिए ये गलत था मैं असमंजस में था लेकिन संतुष्ट हो गया आज मेरा कथा पंडाल आना सार्थक हो गया लगा आना चाहिए कभी कभी ऐसी जगह शान्ति औऱ हल दोनों मिल जाते है ©ranjit Kumar rathour विपत्ति का बटवारा #संपत्ति का नही
Rakhi Yadav
""बटवारा"" ********* यह कैसी रीत हैं???? बचपन से लेकर बड़े होने तक जो भाई-बहन माता-पिता के साथ रहते हैंI पर एक समय ऐसा आता है..... जब माता-पिता और भाई-बहन के ना चाहते हुए भी घर,जेवर,जमीन,जायदाद,माता-पिता से जुड़ी हर एक वस्तु का और यहां तक घर के सदस्यों का भी बंटवारा करना पड़ता हैंI ©Rakhi yadav बटवारा.....
uma pathak
बटवारा चलो आज बंटवारा करते हैं तुम खुशियां रख लो हमें गम दे दो खुशियां ना हो तुम्हारी कभी कम और हम सहे हंसते-हंसते सारे गम खुशियां ना पड़े तुमको कभी कम और हम सहे तुम्हारे सारे गम चलो आज बंटवारा करते हैं तुम रख लो पूरा दिन हमको दे दो अपने दो पल तुम करो दिन भर अपनी मौज बस हमसे बोलो दो मीठी बोल चलो आज बंटवारा करते हैं तुम रख लो सारा जहां और हमको रहने दो अकेले पास में है तुम्हारी यादों के मेले करना है तो इतना कर दो अपनी यादों को मेरे दिल में रहने दो चलो आज बंटवारा करते हैं तुम रख लो अपनी रात हमको दे दो थोड़ी सी शाम शाम को करेंगे हम थोड़ा सा काम चांद तारे चादनी होंगे तुम्हारे नाम अब ना करना तुम हमें बदनाम हमारा कुछ ना है सब कुछ है तुम्हारे पास अब जी लो तुम अपनी जिंदगी अब कुछ नहीं है मेरे पास बटवारा
नि:शब्द अमित शर्मा
बड़ो की झूठी तक़रार ने घर में दीवार खींच दी, कभी आंगन को तो कभी उनकी होशियारी को देखता हूँ ©नि:शब्द अमित शर्मा #बटवारा
sandeep badwaik(ख़ब्तुल) 9764984139 instagram id: Sandeep.badwaik.3
तमाम हाथ की लकीरें किस तरफ़ इशारा करती हैं... मेरी हरकतें दुसरी दुनिया में गुज़ारा करती हैं..। देखो पहली ख़ता को कोई भी यहां मुअाफ़ कर दे... लेक़िन एक आँख मुझसे हर दफ़ा किनारा करती हैं..। ऎ जिंदग़ी तू मेरी कलाई क्यूं छोड़ नहीं देती... जाने क्यूँ हर मोड़ पर मुझे मौत पुकारा करती हैं..। मेरी क्यां मरज़ी हैं मुझसे तो कभी पूछ लिया करो... ये रात भी नींद में कितने ख्व़ाब उतारा करती हैं..। एक ज़मीन पे इनसान कितनी सरहदे खींच दी हैं... यै औलाद तो रोज माँ का भी बटवारा करती हैं..। बटवारा