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लेखक ओझा
अब तक जीवन के सफ़र में भले सफरदार ना रहा लेकिन पीर पराई देखी जग में इसलिए अनुभव कमाल रहा।। ©लेखक ओझा #achievement पीर पराई देखी जग में
Anjali Singhal
Rajkumar Siwachiya
White लागी ये जो पीर सुनहरी मेरय लागी चेहरा तय समझ सारी दुनिया मेरय आगी ✨🥺✨🕉️🔭📙🖋️ - Rajkumar Siwachiya ✍️♠️ ©Rajkumar Siwachiya लागी ये पीर जो सुनहरी मेरय लागी चेहरा तय समझ सारी दुनिया मेरय आगी ✨🕉️🔱✨🔭📙🖋️ – Rajkumar Siwachiya ✍️♠️🙏 #harharmahadev #rajkumarsiwachiya #
Eklakh Ansari
Anil Ray
दर्द देकर इंतहान मत लो जिंदगी अनिल जानता है मेरी मौत मंजिल है.. दर्दे-दिल को कितना ज़ख्म दोगे नया दर्द पुराने दर्द में 'दवा' काबिल है.. ©Anil Ray 💞💞 समझा प्रेम की पीर 💞💞 जाना है तो अभी जाओ तुम अब अनिल! ठहरा एक फ़कीर... मिट जायें मिट्टी-सी जो रेखा नही चाहिए प्रीत की ऐसी लकीर..
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
माहिया/टप्पा छन्द दुनिया दुखयारी है पाँव पडूँ गिरधर यह पीर हमारी है ।। पढ़कर दौड़े आना पाती हूँ लिखती अब छूट गया दाना ।। चाल चलूँ मतवाली देखो तुम साजन हो अधरो पे लाली ।। पट आज उठा लेना बाते करने को ढ़ल जाये जब रैना ।। क्या प्रीति बिना फागुन भायेगा मुझको कुछ आकर कर अवगुन । २०/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR माहिया/टप्पा छन्द दुनिया दुखयारी है पाँव पडूँ गिरधर यह पीर हमारी है ।
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
Vishnu Bhagwan दोहा :- कर्म रखो बस ध्यान तुम , सोचों मत परिणाम । देने वाला और है , तू कर अपना काम ।। कुण्डलिया:- जाने कैसे कर्म थे , भुगत रहे परिणाम । करता हूँ अरदास अब , मिले मुझे आराम ।। मिले मुझे आराम , कृपा अब रघुवर कीजै । सह जाऊँ मैं पीर , और अब साहस दीजै ।। विनय प्रखर की आज , सुना रघुनंदन माने । स्वप्न दिखाया दास , छोड़ अब हम सब जाने ।। २९/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा :- कर्म रखो बस ध्यान तुम , सोचों मत परिणाम । देने वाला और है , तू कर अपना काम ।। कुण्डलिया:- जाने कैसे कर्म थे , भुगत रहे परिणाम । क
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
उडियाना छन्द :- स्वाद में सब जन बहे , जीव हत्या करें । और देते ज्ञान हैं , पाप क्यों सिर धरे ।। जानते है सब यहीं , पाप है ये बड़ा । देखता हूँ फिर वहाँ , घेरकर सब खड़ा ।। मारकर सब डुबकियां , पाप धोने चले । मातु गंगा सोचती , तनय कैसे पले ।। पीर इनकी सब मिटे, और आगे बढ़े । राह जीवन की सभी , स्वयं चलकर गढ़े ।। कष्ट सारे झेलकर , चक्षु जिनके खुले । राम-सिय जपते रहे , श्वास जब तक चले ।। लौट जायें वो सभी, सुगम पथ पर कहीं । विनय करता यह प्रखर , आप ठहरे वहीं ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR उडियाना छन्द :- स्वाद में सब जन बहे , जीव हत्या करें । और देते ज्ञान हैं , पाप क्यों सिर धरे ।। जानते है सब यहीं , पाप है ये बड़ा । देखता ह
Pushpvritiya
हिय की मारी सोच अकिंचन, पिय जी झूठ बँधाय गयो मन.....!! @पुष्पवृतियाँ ©Pushpvritiya #चौपाई वैरागी मन तुम बिन प्रीतम, पीर न जाने किन् विध् हो कम...! कस्तूरी मृग बन कर साजन, तोहे ढूँढ़े भटके वन वन......!! विरहिन देह जलन जागे