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Deepali Singh
व्यथा की गाथा सुनाऊँ किसे कोई सुनता नहीं इसलिए पन्नों पर उतार दिया जब समझता ही नहीं कोई ख़ुद पर गुस्से में निकाल दिया क्यों कहते हैं वो खुश रहा कर बोला मैंने कभी वजह भी दिया कर दिखाऊँ कैसे मैं किसी को क्या हाल है अपने अंदर मेरे उलझनों का टकराता बवंडर और उनके नसीहतों का खोखला आडंबर बर्दास्त नहीँ मुझे अब वो या तु रहम कर और नहीं रहना मुझे यूँ सहम कर नहीं पीना विवादों का घूँट-घूँट ज़हर बहुत कर लिया मैंने सब्र करना है तुझे कुछ सच में अगर एक बार बस देख ले यहाँ आकर। ©Deepali Singh व्यथा की गाथा
व्यथा की गाथा
read moreAnuj
मां भारती के त्राण में रखते हैं ने निज प्राण प्राण का ना ध्यान रखा आठों याम करते हैं। बेटा जाता है गर दूर हम करते हैं फोटोशूट पिता को सहारा मिले नही ऐसा कोई काम करते है। बता सच्चा देशभक्त लूटता है देश हर वक्त ऐसे नेता को प्रणाम हर शाम करते हैं। जिसके बलिदान से है भारत का सम्मान उस वीरता का आभार प्रमाण मांग हम करते हैं। ©Anuj "सैनिक की गाथा "
"सैनिक की गाथा " #कविता
read moreAK untold story
प्रेम गजब की गाथा है इसे हर कोई कन्हा समझ पाता है और जबतक समझ आये ये (ढाई अक्षर प्रेम) क्या है तब तक इसका परिभाषा ही बदल जाता है ©AK untold story प्रेम की गाथा
प्रेम की गाथा #Quotes
read moreParasram Arora
यादे है वे चरागाहै.. विशाल. वृक्षों क़े. झुरमुट वो नदी पर अठखेलिया करती लहरों क़े जमघट वो गुलो की बस्तिया तितलियों क़े पनघट ताज़ा ख़्वाबों की खुशबू. और नज़ारो का नूर चहचहआती चांदनी मे नहाया हुआ रतनारी तारो का पूर स्वछ आकाश की नीलिमा का नदी पर. पर गिरता हुआ अक्स और उगते आफताब की पहली किरण का विजयनाद क्षितिज की. लक्ष्मण रेखा का उललंघन करतावहुआ विहंग दल खेत खलिहानो मे बिछी हुई ये समृद्ध सुषमा फ़सल ये सिर्फ बीती हुई अनहोनियों की गाथा है और अब मै होनी की उदास रंगीनियो क़े मजे ले रहा हूँ # अनहोनियों की गाथा
# अनहोनियों की गाथा
read moreदीपक एकलव्य
सोचो !जो शब्द मैं अपनी, किताब में लिखूंगा, वो जिंदा रहेंगे, या तुम्हारी आलोचना ! (दीपक एकलव्य) लेखक दीपक एकलव्य की कलम से
लेखक दीपक एकलव्य की कलम से
read morePrashant
एकलव्य द्रोण को अपना गुरु बनाया सीखने धनुर विद्या आया देख कर अपने प्रिय गुरु को मन ही मन बहुत हर्षाया लेकर शुभ आशीष गुरु का उसने अपना हुनर दिखाया जो भी था गुरु ने सिखलाया एकलव्य के बलिदान से ही तो आज अर्जुन अर्जुन बन पाया ©Prashant #एकलव्य
Ashutosh Bhardwaj
माना के अब एक अंश अधूरा है। पर अब आत्मसम्मान पूरा है।। बिना ड़रे - बिना छले, कर दिया त्याग। द्रोण सोचते है बालक एकलव्य अभी भोला है।। आशुतोष भारद्वाज . . © आशुतोष भारद्वाज एकलव्य
एकलव्य
read moreSantosh pawara
संतोष पावरा लिखित , आदिवासी पावराबोली भाषा में कथा ( इंद्रधनुष्य नी, एकलव्य धनुष्य ..!! ) इंद्रधनुष्य नही, एकलव्य धनुष्य...! प्रकृति का शिष्य शौर्य वीर एकलव्य था जिसनें कुत्ते के मुह में सात बाण इस तरह की कौशलोंसे चलाया था , की कुत्ते को जरा सी भी खरोच न आयी । और कुत्ते का मुह बंद हो गया । दुनिया का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर एकलव्य ही है तो फिर, इस सृष्टि के सात रंगों को इंद्रधनुष्य क्यो कहे ? शब्दो का फेर यह तो सबसे बढ़ा षडयंत्र है! इसलिए इन सात रंगों को एकलव्य धनुष्य कहना उचित है । क्यौंकि इंद्र का शस्त्र तो वज्र था न ।पर आदिवासी बच्चे का जन्म हुआ तो उसकी नाभी/ नाळा तीर से काटने की प्रथा है और किसी भी आदिवासी की मैयत पर उसकी चिता के साथ उसका धनुष्य बाण रखना अनिवार्य है उस, मरे आदमी के नाम से हवा में बाण छोडे जातें है तब विधी होती है यह आज भी हमारी प्रथा है । एकलव्य
एकलव्य
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