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Manya Parmar
Pushpvritiya
कुछ यूँ जानूँगी मैं तुमको, कुछ यूँ मैं मिलन निबाहूँगी......! सुनो गर जनम दोबारा हो, मैं तुमको जीना चाहूँगी..........!! चाहूँगी मैं जड़ में जाकर जड़ से तुमको सींचना.. मन वचन धरण नव अवतरण सब अपने भीतर भींचना..... रक्तिम सा भ्रुण बन कर तुम सम, भ्रुण भ्रुण में अंतर परखूँगी..! मेल असंभव क्यूँ हम तुम का, इस पर उत्तर रखूँगी....!! पुछूँगी कि किए कहाँ वो भाव श्राद्ध कोमल कसीज, खोजूँगी मैं वहाँ जहाँ बोया गया था दंभ बीज... उस नर्म धरा को पाछूँगी, मैं नमी का कारण जाचूँगी.......!! मैं ढूंढूँगी वो वक्ष जहाँ, स्त्रीत्व दबाया है निज का, वो नेत्र जहाँ जलधि समान अश्रु छुपाया है निज का....! प्रकृत विद्रोह तना होगा, जब पुत्र पुरुष बना होगा..... मैं तुममें सेंध लगाकर हाँ, कोमलताएं तलाशूँगी, उन कारणों से जुझूँगी.... मैं तुमको जीना चाहूँगी......!! अनुभूत करूँ तुमसा स्वामित्व, श्रेयस जो तुमने ढोया है... और यूँ पुरुष को होने में कितने तक निज को खोया.....! कदम कठिन रुक चलते चलते कित् जाकर आसान हुआ, हृदय तुम्हारा पुरुष भार से किस हद तक पाषाण हुआ.....!! मैं तुममें अंगीकार हो, नवसृज होकर आऊँगी, मैं तुमको जीना चाहूँगी........ फिर तुमसे मिलन निबाहूँगी........!! @पुष्पवृतियाँ ©Pushpvritiya कुछ यूँ जानूँगी मैं तुमको, कुछ यूँ मैं मिलन निबाहूँगी......! सुनो गर जनम दोबारा हो, मैं तुमको जीना चाहूँगी..........!! चाहूँगी मैं जड़ में
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
वीणादण्ड़ छन्द 121 112 122 222 मना मत करो बनाओ साथी भी । कभी न रहता अकेला हाथी भी ।। घड़ा भर गया चलो पानी दे दो । लगे मधुर वो इन्हें वाणी दे दो ।। न मुर्छित पड़े कभी पौधे छोटे । तना न मजबूत देखो है मोटे ।। मिला मनुज रूप है देखो प्राणी । विचार कर कर्म हो मीठी वाणी ।। २१/०९/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR वीणादण्ड़ छन्द 121 112 122 222 मना मत करो बनाओ साथी भी ।
Rakesh frnds4ever
जिस तरह एक वृक्ष लोगों की गलियां सुनने, कोसे जाने से सूख कर ढूंढ हो जाता है अपनी पत्तियां, टहनियां फल, फूल, खो देता है तना और जड़ें भी मर जाती हैं अपने अंदर के पानी, खनिज, लवणों, रसायनों,पदार्थों,तत्वों आदि से खाली हो जाता है वैसे ही जब हमारे जीवन में लोगों द्वारा हमें जब नकारा जाता है ताने सुनाए जाते हैं यातनाएं दी जाती हैं हर पल हर क्षण कोसा जाता है बिना किसी वजह बिना किसी गलती के सजा दी जाती है जब हमें हमारे व्यक्तित्व के विरुद्ध समझा जाता है नरकीय स्थिति जैसे पेश आया जाता है तब मन में पल रहे द्वंद,कुंठाएं, सपने, निराशाएं, आशाएं, जिज्ञासाएं, भावनाएं आदि सभी भी मन मस्तिष्क से खाली हो जाती हैं ओर शरीर केवल एक सूखे ढूंढ की तरह बन जाता है ©Rakesh frnds4ever #Sukha जिस तरह एक #वृक्ष लोगों की गलियां सुनने, #कोसे जाने से #सूख कर #ढूंढ हो जाता है अपनी @पत्तियां, @टहनियां @फल, @फूल, खो देता है
kavi amit kumar
कविता # पैसा करे घमंड !! एक तना सा कागज हूँ , हर कोई करता मेरा सम्मान !! आज देखो पैसे के आगे , कमजोर खड़ा एक इन्सान !! मै ना कोई बंदूक चलता , ना कोई बडी तोप चलाता है !! मै बंदूक चलाने वालो को , मै मिनटों में आजाद कराता हूँ !! हर कोई मुझे रखना चाहे , इतना हूँ इन्सानों का खास !! अगर मुझे कोई नही रख पाये , मैं मिनटों में करूँ मन उदास !! मै ठेर खुशीयाँ खरीद दूं , जितने तुम्हारे दिल में अरमान !! मै अगर तुम्हारे पास नही , तो मिनटों में कर दूं अपमान !! आज देखो पैसे के आगे , कमजोर खड़ा एक इन्सान !! मै अगर तुम्हारे पास नही , तुम्हारा सूख दुख ना पूछे एक !! फिर भी तुम्हें यकीन नहीं , मै उदाहरण दूं तुम्हें अनेक !! मै अगर तुम्हारे पास में , मन चहा बना दूं तुम्हारा भेष !! मै रहता जिनके पास में उनको जाने पूरा देश ©kavi amit kumar कविता # पैसा करे घमंड !! एक तना सा कागज हूँ , हर कोई करता मेरा सम्मान !! आज देखो पैसे के आगे , कमजोर खड़ा एक इन्सान !! मै ना कोई बंदू
Ankita Shukla
क्यो मन मार के खुद को उदास करती हो जो हो रहा है तुम्हारी आंखों के सामने है जो घटित होने वाला है उसमें तुम्हारा जोर नहीं जैसे कोई भीतर ही भीतर मुझको समझाता हो तु मजबूत हैं बन मत दिखा भी उदासी का चादर ओडी क्यो बैठी हैं ये तकलीफ चंद दिनों की ही तो हैं इन्हे सालों मे मत गिन ©Ankita Shukla #maa#mere#maaआंखें नम सी रहती हैं मन उदास सा रहता है ये वक्त गुजरता क्यों नहीं है मानो जैसे थम सा गया हो खुद को खोजु कहा। जब मैं खुद में ही
kumaarkikalamse
आम हूँ इसीलिए खास हूँ #YQBaba #Kumaarsthought #YQDidi #हिंदी #hindi #poem #आम आम हूँ इसीलिए खास हूँ ख़ुद का मैं खुद ही विश्वास हूँ पेड़ हूँ तना हूँ तिनका मैं,
Mamta Singh
माैत वही जाे दुनियां देखे कायर की तरह मरना क्यां??? अनुशीर्षक में पढें... गर्जन कराे तुम गर्जन कराे मेघ की तरह गर्जन कराे अर्पण कराे तुम अर्पण कराे मातृभूमि के चरणाें में शिश , तुम अपना अर्पण कराे.. नर्तण कराे तुम
Rajkumar Siwachiya
जब महसूस मुझे था तन्हा हुआ भोले का मुझ पर पन्हा हुआ दुख जो मुझ पर था तना हुआ वो खुशियों में बदल फिर फना हुआ 🔱💫🔭✨📙🤩✍️ बोल शंकर भगवान की जय 🕉️🔱🙏 - Rajkumar Siwachiya ✍️ ©Rajkumar Siwachiya जब महसूस मुझे था तन्हा हुआ भोले का मुझ पर पन्हा हुआ दुख जो मुझ पर था तना हुआ वो खुशियों में बदल फिर फना हुआ 🔱💫🔭✨📙🤩✍️ बोल शंकर भगवान की जय 🕉
Shree
उम्मीदों की भीड़ में सारे वायदे भूला कर, जो कभी नहीं कहा है वो इरादे याद रखना, जो थक कर चले गए.. क्यूं ऐसे ऐतवार रखना, मुश्किलों से जो मिले थे उन सबको संभाल रखना, जीने की ज़िद्द के सिलसिले... हार कर भी सपने सजा रखना! जड़ से लगी डाली तब तक उम्मीद नहीं छोड़ती है, जब तक उसके सारे पत्ते पीले न पड़ जाते और तना सूख नहीं जाता है, हवा नहीं ठहर जाती, सूर्य दिशा नह