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deshank sharma
🎎 साड़ी की एक छोटी गुड्डी लाल पीली और नीली गुड्डी आँखो मे दो बटन लगाए बचपन की मीनू की गुड्डी धागे से मम्मी ने बाँधी रिश्तो की एक डोर बना ली लाली मेकअप चूड़ी चुन्नी तेरा बन्ना मेरी बन्नी खाने मे पकवान बहुत है शादी से अरमान बहुत है रेत के चावल रेत की पूरी रेत का हलवा कड़ी कचौड़ी मीठी मीठी बात पलो की बचपन के उन खास पलो की ©deshank sharma गुड्डी 🎎
Pawde
न जाने वो कौनसा मनहुस पल था ।देखा तो वह बचपन वाला गुड्डो गुड्डीयो वाला खेल था। गुडीया तो सब की लाडली और प्यारी थी।समाज के रीत के मुताबिक आज उसकी भी शादी थी। मां बाप के प्यार के बदले उसकी भी जिम्मेदारी थी। छोडके अपने सपने सारे .उसकी ख्वाईशे आधिअधुरी थी।बेटी के फर्ज के खातिर वो आग पे चल पडी थी। बचपन वाला वो खेल असल जिंदगी मै चल रहा था।वही सब्जी वही चुला आज भी जल रहा था ।सपने जैसे उसके बिखर पडे थे।ख्वाब उसके कही कोने मै गढे थे। बहुरानी से नोकरानी बन चुकी थी।फीर भी अपने जिम्मेदारी को वो दिल से निभा रही थी।हर रिश्ते को मैंने उसको बडी खुबीसे निभाते हुऐ देखा था।फीर भी दहेज के खातिर उस गुड्डीया को जलाते हुऐ देखा था। उसकी जिंदगी आग मै जल रही थी।न जाने वो कितनी तडफ रही थी।फिर भी अपने परिवार के खातिर उसकी आॅखो मै प्यार देखा था।किसी निर्दयी समाज के खातिर मैंने उसको मरते हुऐ देखा था ।न जाने वो कौनसा मनहुस पल था । ©V D Pawde. मेरी गुड्डीया 😞 #adishakti
M R Mehata(रानिसीगं )
जय माता दी ❤❤❤ उम्र का कब खयाल करता है इश्क़ बढती उम्र में भी कमाल करता है बस दिल रखो जंवा फिर देखो इश्क क्या धमाल करता है मेरी बुढ्ढीया तो गुड्डीया से प्यारी ©M R Mehata(रानिसीगं ) #Gulaab मेरी बुढ्ढीया तो गुड्डीया से प्यारी
talvindra_writes
गुड्डे-गुड्डीयों का वो ख़ेल पुराना, याद आता हैं मुझें वो बचपन ज़माना । #NojotoQuote गुड्डे-गुड्डीयों का वो ख़ेल पुराना, याद आता हैं मुझें वो बचपन ज़माना । #nojoto
Shubham Gupta😊
अपना घर...! (कहानी कैप्शन में पढ़े..) ~© शुभम् गुप्ता आज फिर एक दिन गुज़र चला था और छोटी गुड्डी फिर उसी अधबुनी टूटी सी चारपाई पर माँ जिसका नाम कमला था, के साथ लेटी हुई आसमान के तारे निहारते हुए
Arsh
गुड्डी सी उड़ती जीवन काया शहद पिलाती थी '"महामाया" पात्र जो छूटा, सब जग रूठा बचपन नहीं रहा अब भींत मृग सा प्यासा उसको ढूँढू बतादो तुम, कहाँ हो मीत ? बिसर गया जीवन से रंजन शेष नहीं अब इसका गुँजन जीवन है अब अकथ परिश्रम धूरी खा हँफ्नाए यौवन पर रक्षित था मैं, रक्षक था बनना गरल बुझा, अमृत सा बनना ज़िम्मेदारियों की बोरी ओढ़ी बचपन सपनों में, मेरी सहेली।। गुड्डी(पतंग) सी उड़ती जीवन काया शहद पिलाती थी '"महामाया" (सदाशिव को दूध पिलाने वाली महादेवी) पात्र जो छूटा, सब जग रूठा बचपन नहीं रहा अब भींत
Chanchal Jaiswal
ई हौ रजा बनारस देखा आसमान पर छायल हौ केसरिया केसरिया सूरज मन अंगने में में आयल हौ कोई छते पे कोई दलाने कोई पार्क कोई मैदाने में अपन अपन गुड्डी लेके सब गजबे इतरायल हौ सद्धी, डोरी, चौउआ देखा अंटा, मांझा धार धरायल हौ लड़कन बच्चन छोटकन बड़कन सबकर मन उतरायल हौ बंसी क छोटका लड़का भी अपन पतंग लियायल हौ ढील के दा बाबा हमहुंके देखा कईसन जीदियायल हौ मन्दिर मस्जिद के छत से केतना पतंग ढीलायल हौ पूजा अउर प्रार्थना क रंग उमंग डोर बन्धायल हौ धरती क सब मसला देखा आसमान तक आयल हौ (बाकी कविता caption में पढ़ें) ई हौ रजा बनारस देखा आसमान पर छायल हौ। केसरिया केसरिया सूरज मन अंगने में आयल हौ। कोई छते पे कोई दलाने कोई पार्क कोई मैदाने में अपन अपन गुड्डी
Divyanshu Pathak
इन फिजाओं में तू हवा बनकर बहती है। इन घटाओं में तू बादल बनकर रहती है। मुस्कुराते गुलाब और ये झरने सब तुमसे ही तू मौसम की रानी सी हर धूप छांव सहती है। ये सितारे भी रोशन तो तुमने किये। चाँद सूरज तेरे सामने है चराग़! मोहब्बत की कलियाँ तुमसे खिलेंगी। दुनिया में लाती हो तुम ही बहार। Dedicating a #testimonial to Cute Mauli😍☕🍁💕💕🍁😁😁😁😁😁😁😁😊🙏🙏☕☕🍁🍁🍫🍫🍫🍫🍫🍫🍫🍫🍫🍫🍫🍫🍫🍫🍫🍫🍫💕🍁🍁☕☕☕ छोरी खुश होले अब तू । गुड्डी कूँ बोल दियो। लड़के सिर्फ़ शाय
शंकर जाधव | Careless_pen✍️ (मी शब्दसखा)
एक नन्हींसी नींद भी नहीं आतीं हैं..आज़कल औऱ पहाड़ जैसी यादें बसती हैं..सिरहानें आकर गुज़रता रहता हैं मजल दरमजल वक़्त मग़र तकियेमें वो लोरियोंकी ठंडक नहीं मिलतीं.. ©मी शब्दसखा हैं एकही बचपन जिसे हम बड़े होने की चाह में खो देते हैं.. बहौत कम लोग़ हैं जो मुझ जैसे फ़िलहाल क़लमसे लिखकर दोहराया करतें हैं.. वरना अमामून ये फि