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Purohit Nishant
पद्म श्री, पद्म भूषण गिरीश कर्नाड ©Purohit Nishant क़लम को समर्पित साहित्यकारों की याद में... पद्म श्री,पद्म भूषण गिरीश कर्नाड विजय तेंडुलकर और गिरीश कर्नाड. ये वो दो नाम हैं, जिन्होंने थिएट
Purohit Nishant
पद्म भूषण विजय तेंडुलकर ©Purohit Nishant क़लम को समर्पित साहित्यकारों की याद में... पद्म भूषण विजय तेंडुलकर विजय तेंडुलकर और गिरीश कर्नाड. ये वो दो नाम हैं, जिन्होंने थिएटर के लिए
Gireesh Sonwal
नव ख्वाब आँखों मे सजोकर डगर कोई चुन लो यारो कलुषित भाव मिटाकर सारे कुछ अर्जन कर लो यारो नव वर्ष जोश उत्थान की ओर नव सृजन कर लो यारो नींदो मे सवारे गये स्वप्न का सत्य घटनाक्रम कर लो यारो किसी भी उज्ज्वलता की उजियारी राह. चुन लो यारो .. . .... हिन्दी नव वर्ष विक्रम संवत 2076आप और आपके परिवार के लिए सुख-समृद्धि लाए एवं कल्याणकारी हो नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ कवि कुमार गिरीश 9 6 6 7 7 1 3 5 2 2 कुमार गिरीश
Gireesh Sonwal
परिंदों की उड़ान का , गुरुजन के ज्ञान का कवियों की बातों का, पिताजी के धैर्य का माता के आंचल का , कोई आकलन नहीं होगा अल्प मति जितना सोचेगी , अंश मात्र भी नहीं होगा ................. कवि कुमार गिरीश 9667713522 कुमार गिरीश
अज़नबी किताब
नाटक.. रंगमंच... कलाकार... कला... दर्शक.. कुछ ऐसा हुआ, में रंगमंच पे खड़ी थी, और मेरी कला मेरा हाथ थामे | दर्शक मेरी कला से मुझे पहचानते थे.. क्या खूब कला थी, खुदा की देख हुआ करती थी | एक बार बोली बात, में जमी को ख़त्म हो ने पर भी निभाती थी, कला थी.. वचन निभाने की, नाटक बन गयी.. रंगमंच पे उस खुदा के, में आज एक कटपुतली बन गयी... वचन निभाती नहीं, ऐसा सुना है मेने, दर्शकों से | क्या कहु, कला खो गयी, पर ये कला उनके लिए कायम है, जो सही में आज भी वचन को समझते है | कला खुदा की देन होती है, खुदा भी ख़ुश होते होंगे मेरे वचन ना निभाने से.. -अज़नबी किताब नाटक..
Arora PR
स्वप्नलोको के प्रलोबन मुझे कभी सममोहित नहीं कर सकते क्योकि मैं हर स्वप्न कोबन्द आँखों का नाटक ही समझता हूँ ©Arora PR नाटक
Vrishali G
जीवनाच्या नाटकात सहभाग सगळ्यांचा असतो पण आपली भुमिका नाही वठली तर सारा तमाशा होऊन जातो नाटक
Babli BhatiBaisla
झूठे और ओछे मक्कार महात्मा को कोई नहीं पूछता काले पड़ गए मैले मनको को कोई नहीं पूजता आर्यो की धरती पर शास्त्रों का ऊंचा स्थान है भारत मां के शास्त्रियों की विश्व में अलग पहचान है लाल बहादुर शास्त्री हो या धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री दोनों ने साबित कर दिखाया गरीबी नहीं पिछाड़ती महानता में पिछड़ जाते हैं धनाढ्य भी नीयत से बहुत मूर्ख लगते हैं भूख हड़ताल का नाटक करते हष्ट-पुष्ट काटा है लम्बा सफ़र आंखें मूंद कर अनपढ बहुत थे पढ़ कर समझ गए सभी जयचंद और शकुनि कौन थे बबली भाटी बैसला ©Babli BhatiBaisla नाटक