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अशेष_शून्य
तुमसे प्रेम किया नहीं मैंने....... (अनुशीर्षक में ) तुमसे प्रेम किया नहीं मैंने बस प्रेम हो गया मुझे ख़ुद से तुम्हारे आने के बाद !! फ़र्क है ना हमें कुछ करना हो तो चयन हम करते हैं; और जब कु
तुमसे प्रेम किया नहीं मैंने बस प्रेम हो गया मुझे ख़ुद से तुम्हारे आने के बाद !! फ़र्क है ना हमें कुछ करना हो तो चयन हम करते हैं; और जब कु #yourquote #hindiquotes #yourquotebaba #yourquotedidi #yqsahitya #paidstory #अशेष_शून्य
read moreatrisheartfeelings
Heart touching story please read the captions एक पिता की बेटी और फ़िर पिता का समर्पण बेटी की विदाई बेटी से दो परिवारों की इज्ज़त कृपया कर इस कहानी को पढ़ कर बताएं कैसी लगी 🙏 मिडिल क्ला
एक पिता की बेटी और फ़िर पिता का समर्पण बेटी की विदाई बेटी से दो परिवारों की इज्ज़त कृपया कर इस कहानी को पढ़ कर बताएं कैसी लगी 🙏 मिडिल क्ला #HeartTouching #parrents #ananttripathi #atrisheartfeelings
read moreDivyanshu Pathak
कभी हम शक्ति के उपासक थे आज उसके खून के प्यासे हो गए। जीवन की सारी कामनाओं की पूर्ति के आधार भग नाम की छह शक्ति-स्वरूप थे। धर्म, ज्ञान, वैराग्य, यश, श्री और ऎश्वर्य (अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति प्राकाम्य, ईशीत्व और वशीत्व)। यही जन्म-स्थिति-मृत्यु का आधार भी है। Good morning 💕👨🍉🍨☕☕🍧🍧🌷🌷 सह शिक्षा के वातावरण में न पौरूष का अंश दिखाई देगा, न ही स्त्रैण भाव। किसी पर भी एक-दूसरे का प्रभाव नहीं दिखाई पड़ता
Vikas Sharma Shivaaya'
भगवान सूर्यदेव के 12 नाम :- ॐ सूर्याय नम: । ॐ भास्कराय नम:। ॐ रवये नम: । ॐ मित्राय नम: । ॐ भानवे नम: ! ॐ खगय नम: । ॐ पुष्णे नम: । ॐ मारिचाये नम: । ॐ आदित्याय नम: । ॐ सावित्रे नम: । ॐ आर्काय नम: । ॐ हिरण्यगर्भाय नम: । सूर्य के देवता भगवान शिव हैं। भैरव:- ग्रंथों में अष्ट भैरवों का जिक्र मिलता है- ये आठ भैरव आठों दिशाओं (पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, ईशान, आग्नेय, नैऋत्य, वायव्य) का प्रतिनिधित्व करते हैं और आठों भैरवों के नीचे आठ-आठ भैरव होते हैं। यानी कुल 64 भैरव माने गए हैं- ध्यान के बिना साधक मूक सदृश है, भैरव साधना में भी ध्यान की अपनी विशिष्ट महत्ता है। विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम) आज 347 से 358 नाम 347 अरविन्दाक्षः जिनकी आँख अरविन्द (कमल) के समान है 348 पद्मगर्भः हृदयरूप पद्म में मध्य में उपासना करने वाले हैं 349 शरीरभृत् अपनी माया से शरीर धारण करने वाले हैं 350 महर्द्धिः जिनकी विभूति महान है 351 ऋद्धः प्रपंचरूप 352 वृद्धात्मा जिनकी देह वृद्ध या पुरातन है 353 महाक्षः जिनकी अनेको महान आँखें (अक्षि) हैं 354 गरुडध्वजः जिनकी ध्वजा गरुड़ के चिन्ह वाली है 355 अतुलः जिनकी कोई तुलना नहीं है 356 शरभः जो नाशवान शरीर में प्रयगात्मा रूप से भासते हैं 357 भीमः जिनसे सब डरते हैं 358 समयज्ञः समस्त भूतों में जो समभाव रखते हैं 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' भगवान सूर्यदेव के 12 नाम :- ॐ सूर्याय नम: । ॐ भास्कराय नम:। ॐ रवये नम: । ॐ मित्राय नम: । ॐ भानवे नम: ! ॐ खगय नम: । ॐ पुष्णे नम: ।
भगवान सूर्यदेव के 12 नाम :- ॐ सूर्याय नम: । ॐ भास्कराय नम:। ॐ रवये नम: । ॐ मित्राय नम: । ॐ भानवे नम: ! ॐ खगय नम: । ॐ पुष्णे नम: । #समाज
read moreDR. SANJU TRIPATHI
कृपया अनुशीर्षक में पढ़ें। 👇👇👇👇 इंद्र के अंशावतार यदुकुल वंश के पांडव और कुंती के तीसरे पुत्र थे अर्जुन । द्रोणाचार्य के शिष्य धनुर्विद्या में पारंगत और सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर
इंद्र के अंशावतार यदुकुल वंश के पांडव और कुंती के तीसरे पुत्र थे अर्जुन । द्रोणाचार्य के शिष्य धनुर्विद्या में पारंगत और सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर #yqbaba #yqdidi #myquote #YourQuoteAndMine #openforcollab #collabwithmitali #mahabharat_charitra #kuntiputra_arjun
read moreN S Yadav GoldMine
{Bolo Ji Radhey Radhey} अग्निदेव कहते हैं :- अब में बुद्ध अवतार का वर्णन करूंगा ,जो पड़ने और सुनाने वाले के मनोरथ को सिद्ध करने वाला है । पूर्वकाल मे देवता और असुरो मे घोर संग्राम हुआ । उसमे देत्यों ने देवताओ को परास्त कर दिया । तब देवता त्राहि-त्राहि पुकारते हुये भगवान की शरण मे गए । भगवान माया-मोह रूप मे आकार राजा शुद्धोधन के पुत्र हुये । उन्होने देत्यों को मोहित किया और उनसे वेदिक धर्म का परित्याग करा दिया । वे बुद्ध के अनुयाई देत्य " बोद्ध " कहलाए । फिर उन्होने दूसरे लोगों से वेद-धर्म का परित्याग करा दिया ।इसके बाद माया-मोह ही ' आर्हत ' रूप से प्रगत हुआ । उसने दूसरों को भी ' आर्हत ' बनाया । इस प्रकार उनके अनुयायी वेद-धर्म से वंचित होकर पाखंडी बन गए । उन्होने नर्क मे ले जाने वाले कर्म करना आरंभ कर दिया । वे सब-के-सब कलियुग के अंत मे वर्ण संकर होंगे और नीच पुरुषों से दान लेंगे । इतना ही नही , वे लोग डाकू और दुराचारी भी होंगे । वाजसनेय ( वृहदारण्यक ) -मात्र ही वेद कहलाएगा । वेद की दस पाँच शाखे ही प्रमाणभूत मानी जाएंगी । धर्म का चोला पहने हुये सब लोग अधर्म मे ही रुची रखने वाले होंगे । राजारूपधारी मलेच्छ ( मुसालेबीमान और इसाया ) मनुष्यो का ही भक्षण करेंगे । तदन्तर भगवान कल्कि प्रगट होंगे । वे श्री विष्णुयशा के पुत्र रूप मे अवतीर्ण हों याज्ञवलक्य को अपना पुरोहित बनाएँगे । उन्हे अस्त्र-शस्त्र विदध्या का पूर्ण ज्ञान होगा । वे हाथ मे अस्त्र लेकर मलेच्च्योन का संहार ( मुसालेबीमान और इसाया ) कर देंगे । तथा चरो वर्णो और समस्त आश्रमो मे शास्त्रीय मर्यादा साथपित करेंगे । समस्त प्रजा को धर्म के उत्तम मार्ग मे लगाएंगे । इसके बाद श्री हरी कल्कि तूप का परित्याग करके अपने धाम चले जाएंगे । फिर तो पूर्ववत सतयुग का साम्राज्य होगा । साधुश्रेष्ठ ! सभी वर्ण और आश्रम के लोग अपने-अपने धर्म मे दृद्तापूर्वक लग जाएंगे । इस प्रकार सम्पूर्ण कल्पो और मन्वंतरों मे श्री हरी के अवतार होते हैं । उनमे स ए कुछ हो चुके हैं और कुछ आगे होने वाले हैं । उन सबकी कोई नियत संख्या नही है । जो मनुष्य श्री विष्णु के अंशावतार तथा पूर्ण अवतार सहित दस अवतारों के चरित्र का पाठ अथवा श्रवण करता है , वह सम्पूर्ण कामनाओ को प्राप्त कर लेता है । तथा निर्मल हृदय होकर परिवार सहित स्वर्ग को जाता है । इस प्रकार अवतार लेकर श्री हरी धर्म की व्यवस्था का निराकरण करते हैं । वे ही जगे की श्रष्टी आदी के कारण हैं । ।। ८ इस प्रकार आदी आग्नेय महापुराण मे ' बुद्ध तथा कल्कि -इन दो अवतारो का वर्णन नामक सोलहवा अध्याय समाप्त हुआ ।। १६ । । ©N S Yadav GoldMine #Missing {Bolo Ji Radhey Radhey} अग्निदेव कहते हैं :- अब में बुद्ध अवतार का वर्णन करूंगा ,जो पड़ने और सुनाने वाले के मनोरथ को सिद्ध करने वाल
#Missing {Bolo Ji Radhey Radhey} अग्निदेव कहते हैं :- अब में बुद्ध अवतार का वर्णन करूंगा ,जो पड़ने और सुनाने वाले के मनोरथ को सिद्ध करने वाल #पौराणिककथा
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