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Rohit Lala
एक जंगल में एक चतुर लोमड़ी रहती थी। वह कभी हार नहीं मानती थी और हमेशा किसी न किसी चाल से अपना शिकार पा लेती थी. एक दिन उसे बहुत भूख लगी. उसे कहीं भी कुछ खाने को नहीं मिला. काफी देर भटकने के बाद उसे एक अंगूर का बगीचा दिखाई दिया. वह बगीचे में घुसी ताकि कुछ अंगूर खा सके. लेकिन बगीचा ऊंची दीवार से घिरा हुआ था. लोमड़ी बहुत कोशिश की पर दीवार कूद ना सकी. निराश होकर बैठने ही वाली थी कि उसे एक विचार आया. उसने सोचा कि वह बाग के रखवाले को बरगलाकर अंगूर प्राप्त कर लेगी. इसी सोच के साथ लोमड़ी बाग के बाहर जोर जोर से रोने लगी. रखवाले ने आवाज सुनी और बाहर निकल कर देखा. उसने लोमड़ी को रोते हुए देखा तो पूछा कि उसे क्या हुआ है. लोमड़ी ने कहा कि उसे बहुत प्यास लगी है और वह इसी बगीचे में लगे हुए मीठे अंगूरों का रस पीना चाहती है. रखवाला लोमड़ी की बातों में धोखा खा गया. वह यह नहीं समझ पाया कि लोमड़ी चालाकी से उसे बगीचे के अंदर जाने का मौका दिलाने के लिए यह सब कह रही है. वह दीवार का दरवाजा खोलकर लोमड़ी को अंदर ले गया. लोमड़ी अंगूर के बगीचे के अंदर गई और उसने खूब सारे अंगूर खाए. फिर वहां से निकलने का समय आया. जाने से पहले उसने रखवाले को धन्यवाद दिया और कहा कि ये अंगूर बहुत खट्टे हैं. यह सुनकर रखवाला चौंक गया. उसने सोचा कि शायद लोमड़ी की गलती से मीठे अंगूरों की जगह खट्टे अंगूर खा लिए. वह लोमड़ी की बातों में फिर से आ गया और यह देखने के लिए बगीचे के अंदर गया कि असल में अंगूर मीठे हैं या खट्टे. लोमड़ी इसी मौके की ताक में थी. जैसे ही रखवाला अंदर गया लोमड़ी ने दौड़ लगा दी और जंगल की तरफ भाग गई. रखवाला समझ गया कि लोमड़ी ने उसे धोखा दिया है. वह गुस्से से भरा हुआ था लेकिन कर भी कुछ नहीं सकता था. ©Rohit Lala एक जंगल में एक चतुर लोमड़ी रहती थी। वह कभी हार नहीं मानती थी और हमेशा किसी न किसी चाल से अपना शिकार पा लेती थी. एक दिन उसे बहुत भूख लगी. उसे
Neelam Modanwal
शहर के बीचोबीच जो एक बड़ा-सा फ़व्वारा है जिसके इर्द-गिर्द खूबसूरत बाग़ीचा है वहाँ-वहाँ बिछी हैं आरामदेह बेंचें आराम भी करो नज़ारा भी देखो- संगीत की लय पर आर्केस्ट्रा के संग उछलती-कूदती रंगीन रोशनियाँ शीतल जल की फुहारें इंद्रजाल में सबके सब मुग्ध-मोहित से फँसे थे तभी सरपत के वन में पिंडली तक लथ-पथ कीचड़ से कास के फूल चुनता एक नन्हा शैतान खिलखिलाता नज़र आया। ©Neelam Modanwal शहर के बगीचा❣️ Anshu writer R Ojha Anil Ray Aditya kumar prasad Sethi Ji
shashi kala mahto
Mukesh Meet
है बगीचे -सा जीवन समूल। कुछ कांटे हैं और कुछ फूल।। साथ दुःख - सुख रहते सदा, ये न सच्चाई जाना रे भूल।। ©Mukesh Meet #जीवन#एक#बगीचा
Neena Jha
वो खिड़की किस काम की जहाँ से सातवां आसमान न दिखे, वो रिश्ता किस काम का जहाँ सोए अरमान न जगें, वो दरवाज़ा किस काम का जहाँ खटखटाहट न हो, वो चौखट किस काम की जिसे लाँघना न हो, वो दीवारें किस काम की जो तन्हाई में बोलती न हों, वो आईना किस काम का जहाँ छाया भी अपनी न लगे, वो अस्तित्व किस काम का जिसे अस्त होना ही नहीं आता हो, वो नाम किस काम का जिसे कोई जानता ही न हो, वो शोहरत किस काम की जो दूसरों को गिरकर मिली हो, वो घर आँगन किस काम का जहाँ चहकने को बेटी न हो, वो बगीचा किस काम का जहाँ पंछियों का गुँजन न हो वो खिड़की किस काम की जहाँ से सातवां आसमान न दिखे। नीना झा #संजोगिनी ©Neena Jha #Neverendingoverthinking #नीना_झा #जय_श्री_नारायण #संजोगिनी जय माँ शारदे 🙏 विषय... किस काम का? वो खिड़की किस काम की जहाँ से सातवां आसमान न
Sethi Ji
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸 🌸 प्यार का वादा , इंतज़ार का इरादा 🌸 🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸 जो कर के गए थे तुम मुझसे मोहब्बत का मैंने वोह वादा रखा हैं तुम्हारे हिस्से का हक़ अपने ख्याल से थोड़ा ज़्यादा रखा हैं तुम आओगे तो फुरसत से बताएंगे तुम्हें अपनी चाहत की इंतेहा मेरे सनम हमारे इश्क़ को आज भी मैंने खुद से कितना ताज़ा रखा हैं तुम ना मिले फ़िर किसी और के नहीं हो पाएंगे मैंने अपने ख्वाबों में आज भी वोह इरादा रखा हैं 💗💗💗💗💗💗💗💗💗💗💗💗💗💗💗💗💗 🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟🌟 ©Sethi Ji ♥️ होंठो का गुलाब , मोहब्बत का जवाब ♥️ सूखा पड़ा हैं दिल का बगीचा तेरे होंठो का गुलाब चाहिए ।। जहाँ तुम सिर्फ़ मेरे हो सको मुझे अपनी नींदों
@thewriterVDS
"गुलज़ार" दर्द हल्का है साँस भारी है जिए जाने की रस्म जारी है आप के ब'अद हर घड़ी हम ने आप के साथ ही गुज़ारी है रात को चाँदनी तो ओढ़ा दो दिन की चादर अभी उतारी है शाख़ पर कोई क़हक़हा तो खिले कैसी चुप सी चमन पे तारी है कल का हर वाक़िआ तुम्हारा था आज की दास्ताँ हमारी है। "गुलज़ार" ब'अद - बाद/पश्चात क़हक़हा - खिलखिलाकर हंसना/ ठहाका शाख़ - शाखा/डाली चमन - बगीचा/फुलवारी/उद्यान तारी - छाया/फैला हुआ #गुलज़ार #गुलजार #गज़ल #
@thewriterVDS
"गुलज़ार" दर्द हल्का है साँस भारी है जिए जाने की रस्म जारी है आप के ब'अद हर घड़ी हम ने आप के साथ ही गुज़ारी है रात को चाँदनी तो ओढ़ा दो दिन की चादर अभी उतारी है शाख़ पर कोई क़हक़हा तो खिले कैसी चुप सी चमन पे तारी है कल का हर वाक़िआ तुम्हारा था आज की दास्ताँ हमारी है। "गुलज़ार" ©@thewriterVDS ब'अद - बाद/पश्चात क़हक़हा - खिलखिलाकर हंसना/ ठहाका शाख़ - शाखा/डाली चमन - बगीचा/फुलवारी/उद्यान तारी - छाया/फैला हुआ #गुलज़ार #गुलजार #गज़ल #
Dr. Satyendra Sharma #कलमसत्यकी
ये बगीचा वीरान क्यूँ है? ये राहें सुनसान क्यूँ है? जो रहता था दिल मे मेरे कभी, वो शख्स आज अनजान क्यूँ है?? #कलमसत्यकी ✍️©️ ©Satyendra Satya #DiyaSalaai ये बगीचा वीरान क्यूँ है? ये राहें सुनसान क्यूँ है? जो रहता था दिल मे मेरे कभी, वो शख्स आज अनजान क्यूँ है?? #कलमसत्यकी ✍️©️
Shayar.ix
" चाय फीकी पर जाती थी, उसकी मीठी बातों के सामने, अक्सर अब चाय की टेबल पर कुछ तमन्नाएँ रह जाती है।" " वीराना सा लगता है ज़िंदगी का बगीचा, फ़राज़ जब से मोहब्बत का माली गुज़रा है ।" 🥀🥀🤕 . ©Shayar_nir.ix चाय फीकी पर जाती थी, उसकी मीठी बातों के सामने, अकसर अब चाय की टेबल पर कुछ तमन्नाएँ रह जाती है। वीराना सा लगता है ज़िंदगी का बगीचा, जब से मो