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Manoj Nigam Mastana
मेरे कारोबार में सबने बड़ी इम्दाद की दाद लोगों की, गला अपना, ग़ज़ल उस्ताद की अपनी साँसें बेचकर मैंने जिसे आबाद की वो गली जन्नत तो अब भी है मगर शद्दाद की उम्र भर चलते रहे आँखों पे पट्टी बाँध कर जिंदगी को ढ़ूंढ़ने में जिंदगी बर्बाद की दास्तानों के सभी किरदार गुम होने लगे आज कागज़ चुनती फिरती है परी बगदाद की इक सुलगता चीखता माहौल है और कुछ नहीं बात करते हो यगाना किस अमीनाबाद की " राहत इंदौरी मेरे कारोबार में सबने बड़ी इम्दाद की दाद लोगों की, गला अपना, ग़ज़ल उस्ताद की अपनी साँसें बेचकर मैंने जिसे आबाद की वो गली जन्नत तो अब भी है
Diversity channel
कुछ इश्क़ लखनऊ जैसा हो, कुछ बिखरे कागज़ों में सिमटा हो Read in caption कुछ इश्क़ लखनऊ जैसा हो, कुछ बिखरे कागज़ों में सिमटा हो कुछ दिल का टुकड़ा जैसा हो कुछ इश्क़ मधुबन जैसा हो। शाम की चमचमाती आखिरी रोशनी को
Vedantika
धागे की कला, जादू पैदा करे। एक खाली सूती कपड़े पर। वर्षों के अनुभव के साथ, आंखों में आंसू लेकर जिंदा है। हमारा देश भारत विविधताओं से भरा हुआ है। यहां सभी धर्मों और सभी संस्कृतियों का सम्मान किया जाता है। हमारे देश की संस्कृति ने दुनिया की अन्य
DILBAG.J.KHAN { دلباغ.جے.خان }
जब वो मुझसे मिलने पहली बार आया था, "अमीनाबाद "सेे मेंरा पसंदीदा झुमका भी साथ लाया था। #Sejal_Voice ©DILBAG J KHAN #अमीनाबाद
अंजान
तुझे जी भर के देखूं और आबाद हो जाऊं! उलझकर जुल्फ से तेरी अमीनाबाद हो जाऊं!! ©अंजान #CoupleGoals #अमीनाबाद #आबाद #शाइरी #अंजान
Satyarth Jalalabadi
Rakesh frnds4ever
उलझन इस बात की है कि हमें .......उलझन किस बात की है अपनों से दूरी की या फिर किसी मज़बूरी की खुद की नाकामी की या किसी परेशानी की दुनिया के झमेले की या मन के अकेले की पैसों की तंगी की या जीवन कि बेढंगी की रिश्तों में कटाक्ष की या फिर किसी बकवास की दुनिया की वीरानी की या फिर किसी तनहाई की अपनी व्यर्थता की या ज़िन्दगी की विवशता की खुद के भोलेपन की या फिर लोगो की चालाकी की अपनी खुद की खुशी की या दूसरों की चिंता की खुद की संतुष्टि की या फिर दूसरों से ईर्ष्या की खुद की भलाई की या फिर दूसरों की बुराई की धरती के संरक्षण की या फिर इसके विनाश की मनुष्य की कष्टता की या धरती मां की नष्टता की मानव की मानवता की या फिर इसकी हैवानियत की बच्चो के अपहरण की या बच्चियों के अंग हरण की प्यार की या नफरत की ,,जीने की या मरने कि,,, विश्वाश की या धोखे की,, प्रयास की या मौके की बदले की या परोपकार की,,, अहसान की या उपकार की ,,,,,,ओर ना जाने किन किन सुलझनों या उलझनों या उनके समस्याओं या समाधानों या उनके बीच की स्थिति या अहसासों की हमें उलझन है,,, की हम किस बात की उलझन है..==........... rkysky frnds4ever #उलझन इस बात की है कि,,, हमें ...... उलझन किस बात की है अपनों से दूरी की या फिर किसी #मज़बूरी की खुद की नाकामी की या किसी परेशानी की #दुनि
आलोक कुमार
बस यूँ ही चलते-चलते ......... जरा सोचिए कि आजकल हमलोग खुद को बेहतर बनाने के लिए कौन-कौन से गलत/अभद्र नुस्खें अपनाते जा रहे हैं. ना ही उस नुस्खें के चरित्र, प्रकरण एवं उसके कारण दूसरे मनुष्य, आसपास, समाज, देश व आगामी पीढ़ी पर असर का ख्याल रख रहें हैं, न ही ख़यालों को किसी को समझने का मौक़ा दे रहे हैं. बस अपने ही धुन में उल्टी सीढ़ी के माध्यम से अपने आप को आगे समझते हुए सचमुच में बारम्बार नीचे ही चलते जा रहे है. तो जरा एक बार फिर सोचिए कि उल्टी सीढ़ी उतरने और सीधी सीढ़ी चढ़ने में क्रमशः कितनी ऊर्जा, शक्ति और समय लगती होगी. यह भी पता चलता है कि आज की पीढ़ी की ऊर्जा और शक्ति का किस दिशा में उपयोग हो रहा है और शायद यही कारण है कि आज का "गंगु तेली" तो "राजा भोज" बन गया और "राजा भोज", "गंगु तेली" बन कर सब गुणों से सक्षम रहने के बावज़ूद नारकीय जीवन जीने को मजबूर है. यही हकीकत है हम अधिकतर भारतवासियों का...... आगे का पता नहीं क्या होगा. शायद भगवान को एक नए रूप में अवतरित होना होगा. आज की पीढ़ी की सच्चरित्र की हक़ीक़त