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AK__Alfaaz..
उसके अठ्ठारहवें बसंत की, अंतिम पूनम की साँझ को, अमावस की, पहली चिठ्ठी आती है, उसके नाम, जो लाती है, कभी, उत्तरित नही हुए, कुछ, अनुत्तरित प्रश्न, व..कुछ प्रश्न वाचक चिन्ह, जो चिपके रहे सदा, माथे की बिंदिया बनकर, उसके आखिरी सावन की, साँवली साँझ तक, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #साँवली_साँझ उसके अठ्ठारहवें बसंत की, अंतिम पूनम की साँझ को, अमावस की, पहली चिठ्ठी आती है,
Divyanshu Pathak
तेरा हर इक लफ़्ज़ अनोखा और बिल्कुल सच्चा लगता है ! जब तुम मुझसे बातें करती हो मुझको अच्छा लगता है ! फ़िरसे कोई प्यार का किस्सा गढ़ने का मन करता है मारू हीर मीरा सी बनकर मिटने का मन करता है ! : #पंछी #पाठकपुराण #येरंगचाहतोंके #हरे कृष्ण कच्
Preeti Karn
मैं जनती हूं कविताएं किसी अन्य को जनक के अधिकार के आधिपत्य से मुक्त रखती हूं। सहधर्मिता की नियमावली का अनुपालन नहीं होता इस सृजन में। मैंने अपनी अनुभूतियों की हठधर्मिता के निर्वहन मात्र से अपने हृदय गर्भ में बीज आरोपित किए हैं जो बसंत और घहराते काले मेघ सदृश पुष्पधन्वा की धरोहर हैं। कुसुम कचनार पाटली केतकी से झड़ते रस गन्ध से पोषित स्वाति उत्तराआषाढ नक्षत्रों की बूंदों से अलंकृत मलय पवन के रेशे से बुने गए कौशेय वसन सुसज्जित मैं आसन्नप्रसवा जनती हूं कविताएं! प्रीति #जननी#कविता #गर्भ ##प्रसव #yqhindi #yqhindiquotes पुष्पधन्वा : कामदेव पाटली: गुलाब , केतकी: केवड़ा कौशेय : रेशमी आसन्नप्रसवा : जिसे
Yash Verma
जो प्रेम इकतरफा ही बैचैन करे वो मिल के कभी राहत नहीं दे सकता ©Yash Verma मैं इस भीड़ में कही खो जाऊ और तुम अपनी दिल की तह में मुझे टटोलो ज़िन्दगी के किसी ठहराव में मुझे ना पा सको ना मेरी कोई खबर तो खुद को मत कोस
Sangeeta Rathore (Shayra)
"खुशनसीब" हूं..."महबूबा" नहीं... (अनुशीर्षक में पढ़े) ●●● -s_r_writes ✍ मुझे मेरे महबूब ने एक महताबी दुपट्टा दिया था...तोहफे में.. उसकी आरियो पर "खुशनसीबी" की कढ़ाई थी और नज्मों की तुरपाई...मैंने प्रेम की कड़ी धू
official manoj Nautiyal
भुने चने और गुड़ खाने के ये फायदे चौंका देंगे आपको benefits of bhune chane विधि अगर आप सिर्फ स्वाद के लिए भुने हुए चने खाते हैं तो इसके कई बेहतरीन फायदों से अंजान हैं. भुने हुए चने अगर सही तरीके से चबा चबाकर खाए जाएं तो इससे गजब की मर्दाना ताकत हासिल हो सकती है. सूखा चना कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, नमी, चिकनाई, रेशे, कैल्शियम, आयरन व विटामिन्स का अच्छा स्त्रोत है. जिस कारण इसे गरीब लोगों के बादाम की संज्ञा दी जाती है. आइए जानते हैं भुने हुए चने और गुड़ खाने से क्या लाभ मिल सकता है... 👉एक किलो भुने हुए 👉एक किलो गुड़ 👉रोजाना एक गिलास पानी - सोने से पहले एक गिलास पानी में एक मुट्ठी चने डाल दें और इसे ढककर 👉रख दें. - सुबह चने का पानी निकाल दें और एक छोटा टुकड़ा गुड़ के साथ इसे खाली पेट चबा-चबाकर खाएं. रोजाना इस तरीके से चने खाने से कई फायदे होंगे. इसका सबसे ज्यादा असर आपके ताकत पर पड़ेगा. 👉(वजन बढ़ने की टेंशन कम कर देगा ये पानी) - 👉भुने चने को हर रोज खाने से कुष्ठ रोग समाप्त हो जाता है. - हर रोज भुने चने खाने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है जिससे 👉बहुत सी 👉बीमारियों से बचा जा सकता है. -👉 भुने चने को हर रोज अपने भोजन में शामिल करने से वजन कम होता है और मोटापा घटता है. यह शरीर से अतिरिक्त चर्बी को पिघलाने में मददगार 👉साबित होता है. 👉(इस तरीके से खाएंगे लहसुन तो होगा फायदा) -👉 भुने चनों के सेवन से पेशाब सम्बन्धी बीमारियों से छुटकारा मिल जाता है. जिनको भी बार-बार मूत्र आने की समस्या है उनको हर रोज गुड़ और चने 👉का सेवन करना चाहिए. - भुने चने 👉दूध के साथ खाने से वीर्य का👉 पतलापन दूर हो जाता है और वीर्य गाढ़ा होता है. office Manoj Nautiyal भुने चने और गुड़ खाने के ये फायदे चौंका देंगे आपको टीम पकवानगली नई दिल्ली, 20 August, 2019
Aaradhana Anand
रेशा-रेशा बिखरे है, तेरी चाहत में.. हमें क्या मालूम था कि तुमसे यूं धागे-धागे से जुड़े हैं हम..!! रेशे रेशे बिखरे है
@yaadenyaadaatihain
दांतों में फंसे #आम के रेशे सा है इश्क़ तेरा, रह रह कर ध्यान बस तेरी ओर ही जाता है..! ❤️ #दांतों #में #फंसे #आम #के #रेशे #सा #है #इश्क़ #तेरा, #रह #रह #कर #ध्यान #बस #तेरी ओर #ही #जाता #है..! ❤️
रजनीश "स्वच्छंद"
ख़्वाब लिए ही जीता हूँ।। एक ख़्वाब सुनहरा देखा था, ख़्वाब लिए ही जीता हूँ। दिल मे दर्द छुपाये बैठा हूँ, अश्कों को घूंट घूंट पीता हूँ। मेरा अपना कौन यहां बस अपनेपन का ढोंग रचा, सायों संग जीता रहता हूँ, ऐसा एक संयोग सजा। किससे कहना क्या क्या कहना शब्द नहीं बातों में, मुख खोले तो कुछ भी बोले ज़हर घुली ज़ज़्बातों में। एक परिंदा बनना चाहा, पर कतरा फिर बैठा हूँ, कल तक था जो सूत्र एक, बन रस्सी मैं ऐंठा हूँ। है पग पग मेरी अग्नि-परीक्षा, फ़ील वक़्त का सीता हूँ। एक ख़्वाब सुनहरा देखा था, ख़्वाब लिए ही जीता हूँ। किससे सीखूं, क्या मैं सीखूं, दूध धुला है कौन यहां, रोज द्रौपदी हर ली जाती, पड़ी सभा है मौन यहां। सच तो नहीं, ख़्वाबों में ही, चना भाड़ तो फोड़ेगा, हाथों से नहीं, पर अश्कों से, ये कलंक तो धोएगा। देख दशा इस कुनबे की, आंखे भर नहीं आतीं हैं। शुष्क पड़े इस शरीर मे, आत्मा मर नही जाती है। ज़ख्म पड़े हैं गहरे, अश्कों के रेशे बुन उन्हें सीता हूँ। एक ख़्वाब सुनहरा देखा था, ख़्वाब लिए ही जीता हूँ। इस ईमान का क्या करना जो बाज़ारों में बिकता है, हाथ उठा जो प्रण लिया था, कहाँ कभी वो टिकता है। मज़हब का भी हाल है देखा, पेट कहाँ भर पाता है, ज्ञान यहां दरबारी बैठा, पंडित मुल्लों से डर जाता है। शब्द बचे हैं जरा नहीं, काश हकीकत ख़्वाब ही होता, धर्म के जो आड़ में बैठा, काश नशीहत शाप ही होता। किस मुख बोलो कह दूं, मैं ही कुरान और गीता हूँ। एक ख़्वाब सुनहरा देखा था, ख़्वाब लिए ही जीता हूँ। ©रजनीश "स्वछंद" ख़्वाब लिए ही जीता हूँ।। एक ख़्वाब सुनहरा देखा था, ख़्वाब लिए ही जीता हूँ। दिल मे दर्द छुपाये बैठा हूँ, अश्कों को घूंट घूंट पीता हूँ। मेरा अप