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Arun kr.
खुदको खुशकिस्मत कह लो या कर लो आपनो का शुक्रिया जो हमें मिल गया शायद वो हमारे पीढ़ी को ना मिले इस व्यसायिकरण की दुनिया में धनवानों का बोलबाला हैं लगभग सौ में से सत्तर तो आज भी लाचारी का जीवन जीने वाला है कंहा से लाओगे इतने धन ,सब पर तो पूंजीपतियों का कब्जा हैं एक आश हमारी जमीं बची हैं उनपर भी पर भी इन दरिंदों की निगाहें अड़ी हैं इनके मुकाबले हम कंहा टीके हैं अरे सब बिक रहा हैं सब बाजारीकरण हो रहा हैं कंहा से खरीदोगे इन बाजारों के चीजों को क्या बताएं स्टेशन पर पानी के नले बन्द और बोतल में पानी बिक रहा हैं फ्री की चीजें दे कोई हमे लूट रहा हैं महँगाई इतना कि इन्हें खरीदने में लोंगो के पसीने छूट रहा हैं खुद को खुशकिस्मत कह लो या कर लो अपनो का शुक्रिया जो मिल गया हमें वो सौभाग्य हैं। ©Arun kr. #बाजारीकरण
Vidhi
थर की रेत को कश्मीरी हवा उड़ा चली उत्तर की आँखों में बारूद भर गयी दक्खिन के पैर तो तूफानों से डगमगा गए बीच वाले तो पेट की भूख तले सब कुछ ही चबा गये खान खलिहान सब तो जंगल में ही था तो मशाल जलाने दिल्ली का दिल क्यों आया पूरब के श्रम को पश्चिम क्यों रास आया क्या अपने खेत वो बेच आया? इस्पात की नगरी में वो अपना हड़पिंजर बेच आया कपास की मिट्टी में वो अपनी किस्मत बो आया.... #भारत #उदारीकरण #बाजारीकरण #नवउपनिवेशवाद #NeoColonism #PostLiberalization #MillenialIndia #YQbaba #YQdidi
RAHUL VERMA
चौक यानी बनारस कि बाज़ार की सकरी तंग गलियों में एक कतार में कई-कई एक जैसी दुकानें …जैसा शायद हर शहर के पुराने इलाकों में होती है; दिल्ली ,आगरा, उदयपुर, इंदौर ! सारे ऊपरी तौर पर तो एक जैसी ही दिखाई देती है। हां फ़र्क होता है उन गलियों मे ख़रीद-फ़रोख्त कर रहे चेहरो मे , दुकानदारों मे , वँहा मिल रही समानों में…! ये बाज़ार अरमानों का … कुछ अरमान पूरे तो कुछ अधूरे… #बाजारूहकीकत #बाजार_में_रौनक #बाजारीकरण #collabyqdidi ☺️🛍️🕸️🍨 #collabroting with rj re
Ditikraj.arvind
ज़ुल्फें -ए- दराज़ बाजारी-'औरत तेरी उम्र -ए- दराज़ बेवफा मेहबूबा मेरी हाय -रे गम -ए- फ़िराक़ तज्लील मेरी कना'अत मौत -ए- मुकम्मल कहाॅं जन तेरी ©Ditikraj"दुष्यंत"...! ज़ुल्फें -ए- दराज़ बाजारी-'औरत तेरी उम्र -ए- दराज़ बेवफा मेहबूबा मेरी हाय -रे गम -ए- फ़िराक़ तज्लील मेरी कना'अत मौत -ए- मुकम्मल कहाॅं ज
Prof. RUPENDRA SAHU "रूप"
यहाँ आज का युग बाजारी है जहाँ सब कुछ बिकना जारी है लोग दे रहे चीजों की क़ीमत साथ बिकती किसी की खुद्दारी है इंसान की कीमत कम है यहाँ बिकता दर्द और बिकती खुमारी है करते तो नुमाइश मर्द भी लाचार हर जगह बिक जाती नारी है ये बेहद खुदगर्ज बाजार है साहब बाजारूपन सब नज़र पर भारी है .. इस विषय पर अक्सर लिखने से बचता रहा पर कुछ पोस्ट पढ़ कर लगा कि हर विषय पर लिखना जरूरी है ... यहाँ आज का युग बाजारी है जहाँ सब कुछ बिकना जारी
AB
©'अल्प इस जालीनुमा खिड़की से रोज़ झाँका मेरी आँखें करती हैं ये नहीं भालती सड़क पर दौड़ती चमचमाती चार पहिया गाड़ी को नहीं देखती बाजारी शामों में लिपटी
Ram Pujari
After Love Marrige जिंदगी कैसे कैसे रंग दिखाती है। read full poem in text आज मैं सोचता हूँ, आखिर प्रेम क्या है! (प्रेम विवाह के बाद) माँ से दूरी, भाई की मजबूरी, बहन की निराशा,
yogesh atmaram ambawale
गणपती मंडपात....!! गणपती मंडपात आमच्या,सध्या खूप धम्माल मस्ती चालते, सजावटीचे काम करत असताना,खूप टिंगल टवाळी चालते. एरवी नेहमी रागीट,पण मंडपात मात्र शांत राहावे लागते, कित्येकांमध्ये मतभेद,तरीही सारे विसरून एकत्र काम करावे लागते. मंडळात आमच्या कित्येक असे,ज्यांची अंगी चांगलेच गुण आहेत, सजावट कार,रंगाडी तर वायरमेन ही आमचेच आहेत. सर्वांची सजावटीची कल्पना वेगळी,पण एकत्र येऊन आकारावी लागते, रोज नवे नवे काम होत असतानाही,काहीतरी अपूर्णच राहते. विसरला कुणी एखादी वस्तू,की सर्वांची बोलणी ऐकावी लागते, दहा रुपयांच्या वस्तूसाठी,वीस रुपये खर्च करून बाजारी जावे लागते. घोळका खूप मोठा,दोघे तिघे कामात,बाकीच्यांची नुसतीच वटवट चालते, कामाचे तर काहीच नसतात,पण चहा मागवा ची मात्र मागणी असते. काम चालू असता मंडपात,कुणीही आले की नव्या कल्पना सांगतात, ह्या वर्षी अजून आगमन ही नाही,आणि पुढच्या वर्षाची आखणी सांगतात. पूजेला कोण बसणार,मंडळात हा विषय ही खूप चर्चेचा असतो, ज्याचे लग्न चालू वर्षी झालेले असते,त्याला मात्र हा मान असतो. मंडळाच्या आमच्या एकमात्र बरे आहे,वर्गणी साठी कुणाकडे जात नाही, स्वखुशीने जे देतात त्यांची स्वीकार,जबरदस्तीने कुणाकडे मागत नाही. गणपती मंडपात सजावट करताना.. #yqtaai #सण #गणेशोत्सव #गणपती_बाप्पा_मोरया #मराठीलेखणी #yqmarathi #तयारी_गणेशोत्सवाची गणपती मंडपात आमच्या,सध्या
ADARSH SAHU
इस दहेज ने ही फैलाया भारी अत्याचार है इस दानव को मार भगाओ यह समाज का आभार है जन्म पुत्र के होते घर में खूब बधाई बजती है लेकिन कन्या उसी घर में एक समस्या लगती है कैसे हाथ करेंगे पीले यदि आभाव घर में धन का घर वर दोनों ठीक चाहिए प्रश्न समूचे जीवन का बात गुणों की है ना कहीं भी पैसे का भरमार है सुसंस्कृत और सुशील सुपुत्री रूप गुणों की उजियारी धन अभाव में देखो कैसे घर में बैठी है क्वारी इस दहेज की चिंता ने देखो लिए है कितने प्राण यहां एक तरफ शादी का बंधन एक तरफ ईमान खड़ा इसके कारण कितनी बेटियों का होता बलिदान है नारी का क्या मूल्य न कोई क्या वह पशु से दीन हुई नर की तुलना में बोलो क्यों? है वह इतना हीन हुई लड़के वाला लेन देन कितनी अकड़ दिखाता है सब कुछ देने वाला ही यहां नजरें अपनी झुकाता है यह पुनीत सम्बंध नहीं है निंदनीय अपराध है इस कुरीति ने ही समाज की व्यवस्था सारी बिगड़ाई घूस मिलावट चोर बाजारी और बेईमानी है आई ओ समाज के ठेकेदारों कुंभकर्ण बन सोते हो अत्याचार से आंख फेर कर बीज पाप के बोते हो धन को ही अब धर्म बनाकर रक्षित किया समाज है इस दहेज ने ही फैलाया भारी अत्याचार है॥ इस दानव को मार भगाओ यह समाज का आभार है। जन्म पुत्र के होते घर में खूब बधाई बजती है। लेकिन कन्या उसी