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Aushadhi Bazaar (औषधीबाज़ार)
N S Yadav GoldMine
महाभारत: स्त्री पर्व षोडष अध्याय: श्लोक 22-43 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📚 उन महामनस्वी वीरों के सुवर्णमय कवचों, निष्कों, मणियों, अंगदों, के यूरों और हारों से समरांगण विभूषित दिखाई देता है। कहीं वीरों की भुजाओं से छोड़ी गयी शक्तियां पड़ी हैं, कहीं परिध, नाना प्रकार के तीखे खग और बाणसहित धनुष गिरे हुए हैं। कहीं झुंड के झुंड मांस भक्षी जीव-जन्तु आनन्द मग्न होकर एक साथ खड़े हैं, कहीं वे खेल रहे हैं और कहीं दूसरे-दूसरे जन्तु सोये पड़े हैं। 📚 वीर। प्रभो। इस प्रकार इन सबसे मरे हुए युद्धस्थल को देखो। जनार्दन। मैं तो इसे देखकर शोक से दग्ध हुई जाती हूं। मधुसूदन। इन पान्चाल और कौरव वीरों के मारे जाने से तो मेरे मन में यह धारणा हो रही है कि पांचो भूतों का ही विनाश हो गया । उन वीरों को खून से भीगे हुए गरूड़ और गीध इधर - उधर खींच रहे हैं। 📚 सहस्त्रों गीध उनके पैर पकड़ - पकड़ कर खा रहे हैं, इस युद्ध में जयद्रथ, कर्ण, द्रोणाचार्य, भीष्म और अभिमन्यु- जैसे वीरों का विनाश हो जायेगा, यह कौन सोच सकता था? जो अवध्य समझे जाते थे, वे भी मारे गये और अचेत एवं प्राणशून्य होकर यहां पड़े हैं। गीध, कंक, बटेर, बाज, कुत्ते और सियार उन्हें अपना आहार बना रहे हैं। 📚 दुर्योधन के अधीन रहकर अमर्ष के वशीभूत हो ये पुरुष सिंह वीरगण बुझी हुई आगे के समान शान्त हो गये हैं। इनकी ओर दृष्टिपात तो करो। जो लोग पहले कोमल बिछौनों पर सोया करते थे, वे सभी आज मरकर नंगी भूमि पर सो रहे हैं। 📚 जिन्हें सदा ही समय-समय पर स्तुति करने वाले बन्दीजन अपने वचनों द्वारा आनन्दित करते थे, वे ही अब सियारिनों की अमंगल सूचक भांति - भांति की बोलियां सुन रहे हैं। जो यशस्वी वीर पहले अपने अंगों में चन्दन और अगुरू चूर्ण से चर्चित हो सुखदायिनी शययाओं पर सोते थे, वे ही आज धूल में लोट रहे हैं। 📚 उनके आभूषणों को ये गीध, गीदड़ और भयानक गीदडियां बारबार चिल्लाती हुई इधर -उधर फेंकती हैं । ये सभी युद्धाभिमानी वीर जीवित पुरुषों की भांति इस समय भी तीखे बाण, पानीदार तलवार और चमकीली गदाऐं हाथों में लिये हुए हैं। 📚 सुन्दर रूप और कान्तिवाले, सांडों के समान हष्ट-पुष्ट तथा हरे रंग के हार पहने हुए बहुत से योद्धा यहा सोये पड़े हैं और मांसभक्षी जन्तु इन्हें उलट-पलट रहे हैं। परिध के समान मोटी बाहों वाले दूसरे शूरवीर प्रेयसी युवतियां की भांति गदाओं का आलिंगन करके सम्मुख सो रहे हैं। जनार्दन। बहुत से योद्धा चमकीले योद्धा चमकीले कवच और आयुध धारण किये हुए हैं, 📚 जिससे उन्हें जीवित समझकर मांसभक्षी जन्तु उन पर आक्रमण नहीं करते हैं। दूसरे महामस्वी वीरों को मांसाहारी जीव इधर-उधर खींच रहे हैं, जिससे सोने की बनी हुई उनकी विचित्र मालाएं सब ओर बिखर गयी हैं। यहां मारे गये यशस्वी वीरों के कण्ठ में पड़े हुए हीरों को ये सहत्रों भयानक गीद़ड़ खींचते और झटकते हैं। 📚 बृष्णिसिंह। प्रायः प्रत्येक रात्रि के पिछले पहर में सुशिक्षित बन्दीजन उत्तम स्तुतियों और उपचारों द्वारा जिन्हें आनन्दित करते थे, उन्हीं के पास आज ये दु:ख और शोक से अत्यन्त पीडि़त हुई सुन्दरी युवतियां करूण विलाप कर रही हैं। केशव। इन सुन्दरियों के सूखे हुए सुन्दर मुख लाल कमलों के समूह की भांति शोभा पा रहे हैं। ©N S Yadav GoldMine #RABINDRANATHTAGORE महाभारत: स्त्री पर्व षोडष अध्याय: श्लोक 22-43 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📚 उन महामनस्वी वीरों के सुवर्णमय कवचों, निष्को
Ayurveda Tips
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कद बढ़ाने के लिए घरेलू उपचार? सूखी नागौरी, अश्वगंधा की जड़ को कूटकर चूर्ण बना लें और इसमें उतनी ही मात्रा में खांड मिलाकर कांच की शीशी में
Divyanshu Pathak
एक रम्य वाटिका में बैठे थे कपोत युग्म न कोई चाह थी न कोई डाह थी न कोई सुविधा की दुविधा विचार में इस दीन दुनियां से दूर थोड़ी देर काश पक्षी होना होता मेरे अधिकार में ! 😊🍉💕💕🍫🍫☕☕ गडतुम्बी का चूर्ण लेना पड़ेगा 😂😂😂😂😊🍉🍉💕🍫जलेबियों के साथ ! आज दिल दिमाग़ काम नहीं कर रहे ..... तुम्हारे करेले का जूस ही देदो !😂😂🍸🍸🍸🍸
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चेहरे पर फुंसियां होने के कारण, लक्षण, आयुर्वेदिक व घरेलू नुस्खे? कारण तैलीय त्वचा होने पर या मसालेदार, गरिष्ठ तैलीय पदार्थ सेवन करने स
Saket Ranjan Shukla
दिल फ़िर मनमानी करने लगा है शुष्क हो चुके इन लबों पर मुस्कान सजा रहा हूँ, आँखों में अश्क़ सोखने वाला सुरमा लगा रहा हूँ, तक़लीफों को दिल के गतालखाने में डाल आया, माथे की सिकन को, बाल बड़े करके छुपा रहा हूँ, सिखाया धड़कनों को धड़कना एक लय में हमेशा, साँसों को सिसकियों के स्वर दबाना सीखा रहा हूँ, अंदरूनी नासूरों की दवा तो मिल न सकेगी शायद, ऐसे-ऐसे ही ख्याल दे, ख़ुदको बहला-फुसला रहा हूँ, दिल ने फ़िर उतारा है “साकेत", तुझे इश्क़ के हाट में, इसीलिए नए ज़ख्मों के लिए थोड़ी जगह बना रहा हूँ। IG:— @my_pen_my_strength ©Saket Ranjan Shukla दिल फ़िर मनमानी करने लगा है.! . ✍🏻Saket Ranjan Shukla All rights reserved© . कुछ कठिन शब्दार्थ 👇🏻 शुष्क:— रूखा (Dry) सुरमा:— आंखों में लगाए
AK__Alfaaz..
चराग़-ए-ज़िन्दगी तो होगी पर फ़रोंज़ाँ अपनी ये रूठी ज़िन्दगानी न होगी । आयेंगी फ़स्ल-ए-बहाराँ साल भी मुबारक होंगे पर अब कोई कहानी न होगी ।। ये तक़्दीर-ए-आलम भी मेरे बाद तुम्हारे हवाले मेरे हमसफर हमनशीं साथियों । फ़रोग़-ए-बज़्म-ए-इम्काँ तुम्ही से है साथियों अब तो ये साँस भी कल मेरी न होगी ।। जिओ मेरे मुल्क के नौ-जवानों देखो तुम्हीं ये हसीं आतिशें ज़ुल्फ़-ए-जानाँ की । हम तो अपने आखिरी सफर पर हैं इन सँवरते गेसू-ए-दौरान अब ये रूह न होगी ।। टूटकर जब तक बिखरेगी हस्ती नहीं ये हमारी निकलेगा कल वो आफ़ताब कैसे । जबीन-ए-दहर पर पिघलेंगी अफ़्शाँ तूलू-ए-मेहर होगी हरतरफ बस ये जाँ न होगी ।। सुन ऐ 'अल्फाज' माज़ी तेरा मुस्तक़बिल वज़ूद बन के बैठा है अब तेरे सामने यहाँ । कि जिस दिन जगमगाएगा शबिस्ताँ तेरी मुनव्वर से यहाँ सब तो होंगे पर धड़कन न होगी ।। #ज़िन्दगानी_मे_कुछ_यूँ_भी हमारी यह रचना.. मशहूर शायर और पत्रकार "अब्दुल मजिद सालिक"(1894-1959) के अद्भुत व सुंदरतम् उर्दू शब्दों पर आधारित ह
Insprational Qoute
देखती हूँ जिंदगी के उस छोर में वो आवारगी के दौर में, रहते थे मजे के शोर में, वो हसीन जिंदगी के खूबसूरत लड़कपन के किस्से, अब चढ़ती उम्र में नही हैं इस जवानी के हिस्से, सुबह सुबह उठ कर दोस्तों संग मस्ती, अलग ही जमती थी अपनी गपशप की बस्ती, क्या क्या खेल हमने थे खेलें ,न कोई खास थे जिंदगी के झमेले , वो चवन्नी वो अठ्ठनी एक रुपये में भरते थे चीजो से पन्नी, वो लाल ,काली चूर्ण, वो पान पराग की टॉफी, चाय का ही नाम सुना था समझ से बाहर थी कॉफी, वो बर्फ की जूसी, रंग बिरंगी कुल्फ़ी चूसी, बर्फ के गोले से लाल होंठ करते थे,बचपन की लिपस्टिक के मजे लेते थे, गर्मी की छुट्टियों में ने नानी के घर जाना और पढ़ाई को करते थे दरकिनार, दिन भर घूमते,, होते थे मस्ती की कस्ती में सवार, Part-1 देखती हूँ जिंदगी के उस छोर में वो आवारगी के दौर में, रहते थे मजे के शोर में, वो हसीन जिंदगी के खूबसूरत लड़कपन के किस्से, अब चढ़ती उम्र में नह