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Rupesh
White चाँद तारो में ढूंढता हूं अपनो को जो खो गए इस जहाँ के मेले में फिर न जाने कब मिलेंगे मोबाइल की दुनिया से दूर होके इंतजार करता हूं खुले आसमा के तले कब आके फिर गिनगे तारो को ढूंढता हूं अपनो को जो खो गए इस जहाँ के मेले में ©Rupesh #खो गए इस जहाँ में
Sarfaraj idrishi
सुनो राज़ी रहा करो हमेंशा ऊपरवाले की रज़ा में,, तुमसे भी बहुत मजबूर इंसान हैं इस जहाँ में..!! ©Sarfaraj idrishi #samay राज़ी रहा करो हमेंशा ऊपरवाले की रज़ा में,, तुमसे भी बहुत मजबूर इंसान हैं इस जहाँ में..!!मेघना ram singh yadav Mishra Miracle Jagsir S
Mahadev Son
तेरी शान निराली है माँ मन का अँधिआरा दूर कर रोशन करो माँ छुड़ा के सब मोह माया के बंधन, चरणों के पास अपने बुलाओ माँ खाली झोली बनके सवाली आया माँ कष्ट हरती सबके फिर बारी देरी क्यों पूत कपूत तो सुने माता न होती कुमाता बस सिवा न तेरे कोई न इस जहाँ में माँ श्रद्धा के फूल लाया चरणों से लगाओ माँ विगड़ी बनादो पत रखियो सदा मेरी माँ ©Mahadev Son तेरी शान निराली है माँ मन का अँधिआरा दूर कर रोशन करो माँ छुड़ा के सब मोह माया के बंधन, चरणों के पास अपने बुलाओ माँ खाली झोली बनके सवाली
BROKENBOY
हक़ीक़त को तुम और न हम जानते हैं। मुहब्बत को बस इक भरम जानते हैं। मैं क्या इसके बारे में मंज़िल से पूछूँ, थकन मेरी मेरे क़दम जानते हैं। हमें भूल जाने की आदत है लेकिन, तुम्हे हम तुम्हारी क़सम जानते हैं। है छुपना कहाँ और बहना कहाँ है, ये आंसू सब अपना धरम जानते हैं। छलकती है क्यों आँख हमको पता है, कहाँ सब बिछड़ने का ग़म जानते हैं दिया तो है मजबूर कैसे बताये उजालों की तकलीफ तम जानते हैं है जो कुछ मयस्सर हमें इस जहाँ में हम उसको खुदा का करम जानते हैं। ©BROKENBOY #hugday हक़ीक़त को तुम और न हम जानते हैं। मुहब्बत को बस इक भरम जानते हैं। मैं क्या इसके बारे में मंज़िल से पूछूँ, थकन मेरी मेरे क़दम जानते
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल:- ज़िन्दगी की मुश्किलें वे ज़िन्दगी में रह गई । मौत आकर देख लो सबसे यही तो कह गई ।। प्रेम करना है अगर तो राम का बस नाम लो । इस जहाँ की प्रीति तो अब आसुओं में बह गई ।। कल तलक जो थी मदद अब तो वही व्यापार है । स्वार्थ के इस दौर में वो भी दीवारें ढह गई ।। देखता हूँ मैं यहाँ बूढ़े कभी माँ बाप जो । मान लेता देवियाँ औलाद का दुख सह गई ।। दिख रहे थे सब मुझे दुर्बल इसी संसार में । एक ये दुर्लभ प्रखर था देख लो वो पह गई ।। ३०/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल:- ज़िन्दगी की मुश्किलें वे ज़िन्दगी में रह गई । मौत आकर देख लो सबसे यही तो कह गई ।। प्रेम करना है अगर तो राम का बस नाम लो । इस जहाँ की प
Shivkumar
हक़ीक़त को तुम और न हम जानते हैं । मुहब्बत को बस एक भरम जानते हैं । मैं क्या इसके बारे में मंज़िल से पूछूँ , थकान मेरी , मेरे क़दम जानते हैं । हमें भूल जाने की आदत है लेकिन, तुम्हे , हम , तुम्हारी क़सम जानते हैं । ये छुपना कहाँ और ये बहना कहाँ है, ये आंसू सब अपना धरम जानते हैं । आशु छलकती है क्यों आँख से हमको पता है , कहाँ सब लोग यु बिछड़ने का ग़म जानते हैं । दिया तो है मजबूर कैसे बताये उजालों की तकलीफ तो हम जानते हैं है जो भी कुछ हमें इस जहाँ में हम उसको खुदा का करम जानते हैं। ©Shivkumar #relaxation #हक़ीक़त को तुम और न हम जानते हैं । #मोहब्बत को बस एक भरम जानते हैं । मैं क्या इसके बारे में #मंज़िल से पूछूँ , #थकान म
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- आज बैठा मुँह छुपाकर कौन है । दो उसे आवाज़ घर पर कौन है ।। जिसकी खातिर कर रहा हूँ मैं दुआ । इस जहाँ में उससे सुंदर कौन है ।।२ देख कण-कण में बसे प्रभु राम जी । पूछता फिर क्यों कि अंदर कौन है ।।३ और कुछ पल धीर धर ले तू यहाँ । वक़्त बोलेगा धुरंधर कौन है ।।४ एक तेरे सिर्फ़ कहने से नहीं । है खबर सबको सिकंदर कौन है ।।५ दौड़ आयेगा हमारे पास तू । गर पता तुझको हो रहबर कौन है ।।६ तुम कहो तो मान भी लें बात हम । बस बता दो तुम विशंभर कौन है ।।७ बंद हो जायेगी तेरी बोलती जानेगा जब तू कलंदर कौन है ।।८ हम सभी इंसान हैं तेरी तरह । खोजता फिर क्यों तू बंदर कौन है ।।९ इस कदर मत कर गुमाँ खुद पर बशर जान ले लिखता मुकद्दर कौन है ।।१० आज दिल की बात मैं पूछूँ प्रखर । तू प्रखर है तो महेन्दर कौन है ।।११ १९/०३/२०२४ -महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- आज बैठा मुँह छुपाकर कौन है । दो उसे आवाज़ घर पर कौन है ।। जिसकी खातिर कर रहा हूँ मैं दुआ । इस जहाँ में उससे सुंदर कौन है ।।२ देख कण-क
Bharat Bhushan pathak
ढाल बन यह यहाँ। रक्षित करे ये जहाँ। आन बान शान है। इससे ही पहचान है। ©Bharat Bhushan pathak #mountainsnearme ढाल बन यह यहाँ। रक्षित करे ये जहाँ।
Mehfuza
White हमेशा याद रहेगा यह दौर-ए-जहाँ हमको, क्या तरसाया है जहाँ ने उस शख़्स-ए-ग़ैर के लिए! ©Mehfuza #nightthoughts हमेशा याद रहेगा यह दौर-ए-जहाँ हमको, क्या तरसाया है जहाँ ने उस शख़्स-ए-ग़ैर के लिए! Meaning-