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Bambhu Kumar (बम्भू)

भेजता भी है नहीं #ससुराल इसको हरखुआ फिर कोई बाँहों में इसको भींच ले तो क्या हुआ आज #सरजू पार अपने #श्याम से टकरा गई जाने-अनजाने वो #लज्जत # #ज़िंदगी #सुबह #poem #लहजा #इज़्ज़त #ताव #माहौल #मंगल #सन्ना #गरदन #मरदूद #मक़्क़ार #मूँछों

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5.
भेजता भी है नहीं ससुराल इसको हरखुआ
फिर कोई बाँहों में इसको भींच ले तो क्या हुआ

आज सरजू पार अपने श्याम से टकरा गई
जाने-अनजाने वो लज्जत ज़िंदगी की पा गई

वो तो मंगल देखता था बात आगे बढ़ गई
वरना वह मरदूद इन बातों को कहने से रही

जानते हैं आप मंगल एक ही मक़्क़ार है
हरखू उसकी शह पे थाने जाने को तैयार है

कल सुबह गरदन अगर नपती है बेटे-बाप की
गाँव की गलियों में क्या इज़्ज़त रहे्गी आपकी

बात का लहजा था ऐसा ताव सबको आ गया
हाथ मूँछों पर गए माहौल भी सन्ना गया था भेजता भी है नहीं #ससुराल इसको हरखुआ
फिर कोई बाँहों में इसको भींच ले तो क्या हुआ

आज #सरजू पार अपने #श्याम से टकरा गई
जाने-अनजाने वो #लज्जत #

Bambhu Kumar (बम्भू)

थे यही #सावन के दिन हरखू गया था #हाट को सो रही #बूढ़ी ओसारे में बिछाए #खाट को #डूबती #सूरज की किरनें #खेलती थीं #रेत से घास का गट्ठर लिए वह #poem #अजनबी #होठों #जज्बात #वासना #कृष्णा #ढह #ढीली #बेख़बर #कौमार्य #भेड़िया #चीख़ #छटपटाई #कछारों

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2.
थे यही सावन के दिन हरखू गया था हाट को
सो रही बूढ़ी ओसारे में बिछाए खाट को

डूबती सूरज की किरनें खेलती थीं रेत से
घास का गट्ठर लिए वह आ रही थी खेत से

आ रही थी वह चली खोई हुई जज्बात में
क्या पता उसको कि कोई भेड़िया है घात में

होनी से बेखबर कृष्णा बेख़बर राहों में थी
मोड़ पर घूमी तो देखा अजनबी बाहों में थी

चीख़ निकली भी तो होठों में ही घुट कर रह गई
छटपटाई पहले फिर ढीली पड़ी फिर ढह गई

दिन तो सरजू के कछारों में था कब का ढल गया
वासना की आग में कौमार्य उसका जल गया... थे यही #सावन के दिन हरखू गया था #हाट को
सो रही #बूढ़ी ओसारे में बिछाए #खाट को

#डूबती #सूरज की किरनें #खेलती थीं #रेत से
घास का गट्ठर लिए वह

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

मोहरें पैसो का लालच दे दे कर । व्यापारी धन्धा खूब किए मजदूरों की मजबूरी से सुख चैन भी देखो छीन लिए फल फूल रहा व्यापार वहां नेता उसमें कूद #कविता

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मोहरें

पैसो का लालच दे दे कर ।
व्यापारी धन्धा खूब किए 
मजदूरों की मजबूरी से
सुख चैन भी देखो छीन लिए
फल फूल रहा व्यापार वहां
नेता उसमें कूद लिए 
चालीस पे चार भारी हुए
मिल भ्रष्टाचार खूब किए 
गूँगी बहरी बन गई जनता
हरखूँ के बैल बना लिए
सत्ता और सरकारी नौकर 
को खाने को खूब दिए 
पिज्जा बर्गर खाने वाले 
पानी के बदले खून पिए 
बढती मँहगाई से देखो
रिश्तों मे ऐसी चोट लगी
चार कमाते चालीस खाते
अब तो बस किताब दिखी
रोजगार घटा व्यापार बढा
जन पे आत्याचार बढा
लेकिन उस पर रोक नही
यह चोट बने नासूर नही
संभलो अब सत्ता धारी
यह खेल और आसान नही 
हर घर में कल माव वादी हो
क्यों करते हो मजबूर इन्हें
पैसो का लालच दे देकर 
सब कुछ इनका लूट लिए
व्यापारी धन्धा खूब किए २

२६/०२/२०२३ -
        महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मोहरें

पैसो का लालच दे दे कर ।
व्यापारी धन्धा खूब किए 
मजदूरों की मजबूरी से
सुख चैन भी देखो छीन लिए
फल फूल रहा व्यापार वहां
नेता उसमें कूद

sandy

असे म्हणतात की पहिलं प्रेम विसरता विसरत नाही...... असाच एकाचा अनुभव.... कदाचित जुन्या आठवणी जाग्या होतील तुमच्या... 😊😊😊 मोबाईलवर आलेला अज् #story #nojotophoto

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 असे म्हणतात की पहिलं प्रेम विसरता विसरत नाही......

असाच एकाचा अनुभव....
कदाचित जुन्या आठवणी जाग्या होतील तुमच्या... 😊😊😊

मोबाईलवर आलेला अज्

sandy

❤️💛❤️ एकाकी ती 💛❤️💛 "सुप्रिया.. आवरलंस काय गं.?" दरवाजातून आत येताच शिरीषने आवाज दिला. बाहेरून शिरीषचा अचानक आलेला आवाजा ऐकून दुपारपासून बे #story #nojotophoto

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 ❤️💛❤️
एकाकी ती
💛❤️💛

"सुप्रिया.. आवरलंस काय गं.?"
दरवाजातून आत येताच शिरीषने आवाज दिला. बाहेरून शिरीषचा अचानक आलेला आवाजा ऐकून दुपारपासून बे
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