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कवि मनोज कुमार मंजू

आज मनुजता भी अपनी खोटी किस्मत को रोती है
बना भेड़िया नर, नारी तन उसको केवल बोटी है

©कवि मनोज कुमार मंजू #मनुजता 
#किस्मत 
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#नारी 
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#walkalone

कवि मनोज कुमार मंजू

कैसे कह दूँ आज सुरक्षित घर के अंदर बेटी है
बना भेड़िया नर, नारी तन उसको केवल बोटी है

©कवि मनोज कुमार मंजू #बेटी 
#सुरक्षित 
#घर 
#भेड़िया 
#नर 
#नारी 
#बोटी 
#मनोज_कुमार_मंजू

कवि मनोज कुमार मंजू

देखो फिर से शान्त हो गई चीख किसी सुकुमारी की
गली गली में यही दशा है आज देश की नारी की
हुआ निकलना मुश्किल घर से संकट पल भर दूर नहीं
देश, धर्म और जाति छोडिए, रिश्ते भी महफूज़ नहीं
कैसे कह दूँ आज सुरक्षित घर के अंदर बेटी है
बना भेड़िया नर, नारी तन उसको केवल बोटी है

बेजुबान कर जख्म दिये, व्यभिचारी अस्मत लूट गए
जख्मी आज धरा का सीना, आंसू नभ के सूख गए
कहना चाही तो होगी, पर शब्द फूट न पाए फिर
हबस मिटा लो मुझसे, कोई बहना लाज न खोए फिर
आज मनुजता भी अपनी खोटी किस्मत को रोती है
बना भेड़िया नर, नारी तन उसको केवल बोटी है

नहीं जलाओ मोमबत्तियां, न धरने की बात करो
न्याय मिले तत्काल, कोशिशें ऐसी तुम दो चार करो
व्यभिचारी अस्मतखोरों पर क्या सरकारी केस करें! 
जिन्दा दफन करो इनको जो ऐसे नीच कुकर्म करें
कब बेखौफ खुलें पलकें जो हर दिन डर डर सोती है
बना भेड़िया नर, नारी तन उसको केवल बोटी है #भेड़िया 
#hindipoetry 
#hindipoem 
#manojkumarmanju 
#manju

कवि मनोज कुमार मंजू

देखो फिर से शान्त हो गई चीख किसी सुकुमारी की
गली गली में यही दशा है आज देश की नारी की
हुआ निकलना मुश्किल घर से संकट पल भर दूर नहीं
देश, धर्म और जाति छोडिए, रिश्ते भी महफूज़ नहीं
कैसे कह दूँ आज सुरक्षित घर के अंदर बेटी है
बना भेड़िया नर, नारी तन उसको केवल बोटी है

बेजुबान कर जख्म दिये, व्यभिचारी अस्मत लूट गए
जख्मी आज धरा का सीना, आंसू नभ के सूख गए
कहना चाही तो होगी, पर शब्द फूट न पाए फिर
हबस मिटा लो मुझसे, कोई बहना लाज न खोए फिर
आज मनुजता भी अपनी खोटी किस्मत को रोती है
बना भेड़िया नर, नारी तन उसको केवल बोटी है

नहीं जलाओ मोमबत्तियां, न धरने की बात करो
न्याय मिले तत्काल, कोशिशें ऐसी तुम दो चार करो
व्यभिचारी अस्मतखोरों पर क्या सरकारी केस करें! 
जिन्दा दफन करो इनको जो ऐसे नीच कुकर्म करें
कब बेखौफ खुलें पलकें जो हर दिन डर डर सोती है
बना भेड़िया नर, नारी तन उसको केवल बोटी है #भेड़िया 
#hindi_poetry 
#manojkumarmanju 
#Manju 

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Bambhu Kumar (बम्भू)

थे यही #सावन के दिन हरखू गया था #हाट को सो रही #बूढ़ी ओसारे में बिछाए #खाट को #डूबती #सूरज की किरनें #खेलती थीं #रेत से घास का गट्ठर लिए वह आ रही थी खेत से आ रही थी वह चली खोई हुई #जज्बात में क्या पता उसको कि कोई #भेड़िया है घात में #poem #अजनबी #होठों #वासना #कृष्णा #ढह #ढीली #बेख़बर #कौमार्य #चीख़ #छटपटाई #कछारों

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2.
थे यही सावन के दिन हरखू गया था हाट को
सो रही बूढ़ी ओसारे में बिछाए खाट को

डूबती सूरज की किरनें खेलती थीं रेत से
घास का गट्ठर लिए वह आ रही थी खेत से

आ रही थी वह चली खोई हुई जज्बात में
क्या पता उसको कि कोई भेड़िया है घात में

होनी से बेखबर कृष्णा बेख़बर राहों में थी
मोड़ पर घूमी तो देखा अजनबी बाहों में थी

चीख़ निकली भी तो होठों में ही घुट कर रह गई
छटपटाई पहले फिर ढीली पड़ी फिर ढह गई

दिन तो सरजू के कछारों में था कब का ढल गया
वासना की आग में कौमार्य उसका जल गया... थे यही #सावन के दिन हरखू गया था #हाट को
सो रही #बूढ़ी ओसारे में बिछाए #खाट को

#डूबती #सूरज की किरनें #खेलती थीं #रेत से
घास का गट्ठर लिए वह आ रही थी खेत से

आ रही थी वह चली खोई हुई #जज्बात में
क्या पता उसको कि कोई #भेड़िया है घात में


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