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Devchandra Thakur

मलहम #Shayari #Dev

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यू तो मलहम ले के निकला था, इश्क़ के बाजार में।
तेरे जख्म देने के अंदाज़ देख, उफ्फ तक नही कहा हमने।।
#Dev मलहम

Sandeep Kalia

मलहम #poem

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कुछ इस तरह से उसने मेरे ज़ख्मों पर मलहम लगाया
रो-रो कर हाल पूछा मेरा हँस हँस कर दुनिया को बताया! मलहम

sidhuz_harinder

आज फिर से तेरी याद आई और मेरी आंखे नम हुई।
रो लिया खुलकर मै तो थोड़ी तकलीफ कम हुई।
बेबसी से देखता रहा तेरी तस्वीर को बार बार,
ना तस्वीर बोली ना मेरे ज़ख्मों पर मलहम हुई।

✍ਤੇਰਾ ਸਿੱਧੂ #मलहम

🌹Manjeet🌹(Måññu)

एक बेवफा के 
जख्मो पर
मलहम लगाने 
हम गये,
मलहम कि
 कसम
मलहम तो मिला 
नही
मलहम कि जगह 
मर हम गये ।।
#मनजीत #मलहम

@nanD SingH

अगर दर्द हो तुम्हे तो मलहम खुद 
ही बन जाना
कोई नहीं पूछता घाव कैसा है।।
@नंद Singh #दर्द 
#मलहम

B K Singh

'मलहम' कहानी #Society

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मलहम
सभी बच्चे बहुत खुश नजर आ रहे थे / चारो ओर बच्चो का शोरगुल चल रहा था / चारो ओर हरियाली-ही-हरियाली थी / धान की फसलें खेतों में अजीब रौनक बिखेर रही थी /आज का सूर्य भी नम एवं मनमोहक लग रही थी मानो दशहरा को बधाई दे रहा हो /
     गांव में हलचल है/ मेले जाने की तैयारी चल रही है/ कोई अपने नये कपङे की आईरन कर रहा था तो कोई अपने जुते को पॉलिस करने में व्यस्त हैं/ धिरू चाचा अपने गायों को सानी-पानी दे रहे है क्योकि मेले से आते अंधेरा हो जाएगा/ लौंद बाजार में  मेला लगती है, जहाँ बहुत भिङ रहती है / सबसे ज्यादा बच्चे खुश दिखाई पङ रहे है / बिरू भैया अपने बाबा से 50 रू मांग रहें है / वे बैठके में जाकर अपने पैसे को बार गिण रहे है और बार-बार एक कोने में बैठे बिक्की से पूछ रहें है तुम्हारे पास कितने पैसे है / तुम आज क्या-क्या खरिदोगे / मै तो चार घोङे और दिवाली के लिए पटाखे खरिदुगा / बिक्की बेचारा एक कोने में बैठकर दादी के गोयठे बिकने का इंतजार कर रहा है, दादी ने कहें है कि जो भी आज गोयठा बेचुगी, सब तुम सभी भाईयों को दे दुगीं / तभी एक गोयठा लेने के लिए एक औरत आती है और वह बहुत खुश होता है और वह दौङते हुए दादी को बुलाता है / वह आठ-दस साल का दुबला-पतला लङका है जिसका बाप इसी वर्ष सुरत में मृत्यू हो गई / वह पाँच-छ्ः सालो से उन्हे नही देखा था /माँ छत पर से कुछ दिन पहले गिरी थी जिससे उसे कमर के दर्द के कारण नहीं उठ पा रही थी / बिक्की के छोटे भाईलोग कचहरी के मेले में लालमी(बङा संतरा)बेचने में व्यस्त हैं वे किसी दुसरे के लालमी को एक रुपए के लिए दिन भर बैठा है/
      बिक्की के पास नये कपङे भी नहीं है/ वह मेले में नहीं जाना चाहता हैं परन्तु दादी ने चाचा वाले फैल-फाल कपङे पहनाकर रमेश चाचा के साथ कर देते है/ दादी ने उसे 10 रूपए दिए है और कहें की बेटा एकर मिठाई लेके खा लेना/ मेले में जाने वक्त कभी धिरू चाचा, जो उसी के उम्र के हैं, उनसे पूछता कि आप क्या खरिदेगें तो कभी गौतम, कारू, अनूज, राहुल…से/ कभी-कभी दौङते हुए बिरू भैया के पास जाकर पूछता और वहीं जाकर रूक जाता और सबका आने का इंतजार करता / सभी बच्चे तरह-तरह के बातें करते हुए जा रहे है / सङक पर भिङ बहुत रहने के कारण कुछ बच्चें दुसरे के टिक खिंचकर छूप जाते हैं / 
          कुछ बच्चे मेले  से लौटनें भी लगे थे / कोई घोङा, हाथी,  बंदर, मोटूसेठ, उँट….ले जा रहा था/ दिपक कहता है हम यहीं उँट खरिदेगें, तुम क्या लोगे/ बिक्की अपने दबी आवाज में बोलता मै सभी खिलौनें खरिद लूंगा, और सभी हँसते हुए आगे बढ जाते है/
     लङको का दल सभी मेले पहुँच जाते हैं /कोई कहता है यह देखो आसमान तारा है, चलो इस पर चढ कर सैर करते है/ चारो ओर छोटे-मोटे डिजली मेला का जमकङा लगा हुआ है/ कोई रस्सी से लटके हाथी, घोङा, उँट…पर 10-10 रुपए देकर बैठने जाता है /बिक्की दूर खङा सभी को देखता रहता है / 10 रूपए ही तो है उसके पास, जरा सा चक्कर खाने के लिए वह पैसे नहीं बर्वाद कर सकता है/
      अब सबलोग आ जाते है और सब अंदर बाजार मेले में प्रवेश करते है / चारो ओर मिठाइयाँ, खिलौने पटाखे की दूकाने लगी हुई है/ कोई जलेबी, कोई छेना, कोई काला जामुन खरिद कर खा रहे है लेकिन बिक्की बेचारे के पास तो केवल 10 रूपए ही जिससे तो आधा किलो जलेबी भी नहीं हो सकती, फिर वह सभी भाईयों एवं बहन के लिए क्या ले जाएगा /वह चारो ओर देखता है कि सबलोग अपने-अपने पैसे से कुछ लेकर खा रहा है और वह अभागा ललच रहा है /
      सङक के चारो ओर तरह-तरह के छोटी-छोटी दूकाने लगी है / कोई जादूई अंगूठी बेच रहा है तो कोई नकली गहने की दूकान लगाए हुए है, जहाँ लङकियाँ मोल-भाव करती नजर आ रही है तभी बिक्की की नजर दर्द की मलहम चिल्ला-चिल्ला कर बेच रहे व्यक्ति पर पङती है तो अचानक उसे मम्मी के चोट के कारण दर्द की याद आ जाती है तो वह अचानक वहाँ रूक जाता है और सभी आगे बढ जाते है/
       बिक्की वहाँ रूक कर सोचता है यदि मै इसे खरिदता हूँ तो मेरे मम्मी की दर्द खत्म हो जाएगी और वह ठीक हो जाएगी और अगले दिन वह खिर-पूङी जरुर बनाएगी, अगर मै इन पैसे से कोई समान खरिदता हूँ तो वह कुछ दिन में तो टूट-फूट जाएगी और उससे हमे क्या फायदा /
बिक्की ने दुकानदार से पूछा, यह मलहम कितने का है ? 
दुकानदार ने उसे कहा, बेटा यह तुम्हारे काम कि नहीं है /
बिक्की ने कहा, यदि मै इसे लेना चाहूँ तो,
अब दुकानदार ना भी न कह सकता था/
उसने मलहम की दाम पूछाँ /
१५ रूपए लगेगें, परन्तु बिक्की के पास तो केवल 10 रुपए ही थे /
उसने दबी हुई आवाज में दिल थाम के बोला क्या आप इसे 10 रुपए में नहीं दे सकते हो चाचा और आगे बढ गया /
दुकानदार ने उसे बुला कर कहाँ कि 10 रु तो मेरा क्रय है, मै इसे इतने में कैसे दे दू / लेकिन तुम इसका क्या करोगे/
बिक्की बोला-मै अपने मम्मी के लिए ले जा रहा हूँ और मेरे पास बस 10 रू ही है, दीजिएगा /
दुकानदार की आँखें नम हो गई और वह बोला ठिक है लाओ/
बिक्की अपने हाथ में मलहम लेकर सभी दोस्तों के साथ चलने लगता है/
कोई अपने-अपने हाथी, घोङा, बंदर, उँट…..दिखाता है, परंतु बिक्की कुछ नहीं बोलता है/
दिपक तुमने क्या लिया बिक्की- वह बोला मै दर्द की मलहम लिया हूँ जब तुम्हारा घोङा दौङते हुए गिरकर घायल हो जाएगा तो इससे ठिक हो जाएगा 
सबलोग हाँ-हाँ, हाँ-हाँ हँसते है, और फिर भी दिल थाम कर बोलता है देखना न तुमलोग मेरे पास हीं आओगें /
सबलोग गांव आ जाते है और सब अपने-अपने खिलौने के साथ अपने घर चले जाते है/
बिक्की की मम्मी दर्द छूपाते हुए बोलती तु ‘की’ लैला हमर लाल /
बिक्की अपने पॉकेट से निकालर तुरंत दे देता है, 
यह तु की लैला हमर लाल- हाय रे भगवान तु तो एकदम मूर्ख ही रह गेले / वह छाती पीट लेती है /
वह घिमी आवजो से बोलता है, यह तेरे लिए दर्द की मलहम लाया हूँ, दर्द ठिक होने के लिए/
कितने में लिया- 10 रू में 
तुम्हे तो दादी केवल 10 रुपए ही दिए थे, तो तुमने कुछ भी नही खाया/
 मम्मी की आवाज एकदम नम हो जाती है और उसे तुरंत गले लगा लेती है और सोचती है, कितना मन इसका ललचाया होगा, दुसरो बच्चो को देखकर, इसने अपने जी को दाब कर मलहम लिया है, और आँख छूपाकर आँसू की बुंदे टपकाती है, उसी बीच दादी आ जाती है और वह भी सुनकर रोने लगती और कहती है- हे भगवान एसे दुःख किसी को न दे /MORAL: POVERTY KILLS ALL DESIRES BUT CREATS NOBLE ABILITIES        Written by: B.K.SINGH

©B K Singh 'मलहम' कहानी

Shashank Tripathi

अल्फ़ाज़ तेरा नूर तेरी पहचान हो सकता ,
मेरी ये बेजुबान अल्फ़ाज हैं।।
कभी बयाँ-ए-इश्क़ तो कभी,
तेरी ज़बान के जख्मों की ,
मलहम ये  अल्फ़ाज हैं ।। #अल्फ़ाज , #मलहम, #इश्क़

Kamlesh Kandpal

#ममता का मलहम " #प्रेरक

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मैं सिर पकड़ कर बैठ गया। जहां आज मेरा नौकरी के लिए साक्षात्कार था, वही से था यह फोन।
 मुझे यह नौकरी मिलने की बड़ी उम्मीद थी, सोचता था नौकरी करके अपने घर के काम में हाथ बटाऊंगा। तभी सिर पकड़े हुए मां ने मुझे देखा और कहा " क्या हुआ बेटे तुम्हें तो इंटरव्यू के लिए जाना था।" मां वहीं से तूफान आया था, बता रहे थे वहां पर किसी और को ले लिया है"।
 बस इतनी सी बात, तू मेरा होनहार बेटा है, आज नहीं तो कल तेरी अच्छी सी नौकरी लग जानी है,इतना मायूस क्यों होता है" मां ने मेरे सिर पर  प्यार से जो हाथ रखा था। उस ममता के मलहम का असर में आज भी महसूस करता हूँ।

©Kamlesh Kandpal #ममता का मलहम "

S K Sachin उर्फ sachit

मलहम
मन.. क्यों कुरेदते हो जख्मों को
ए जख्म तेरे खुद के हैं
इन्हें खुद पाला है तुमने
इन जख्मों को कोसना छोडो़
ए और तड़प उठेंगे
इनका दर्द
तुमसे नहीं सहा जाएगा
इन्हें अपना लो 
सीने से लगा लो
इन्हें जरूरत है तुम्हारे प्यार का
जरूरत है मलहम का
जो मलहम सिर्फ और सिर्फ
तुम्हें लगाना है !

©S K Sachin #मलहम #जख्म

#neerajchopra

Nidhi Pant

कुछ घाव हैं जो मलहम से भी नहीं भरते,भूल जाने की कोशिश में फिर हरे हो जाते हैं।माना कि भूल भी जाएं अगर तो कमबख्त दाग छोड़ जाते हैं।फिर से शुरुआत होती है भूलने भुलाने की,जब तक घावों के दाग नहीं जाते। #घाव #मलहम  #दाग #कशमकश
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