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Devesh Dixit
आंजनेय (दोहे) आंजनेय भी नाम है, कहलाते हनुमान। निगल लिए श्री सूर्य को, बचपन में फल जान। दंड इंद्र ने है दिया, हन पर मारी चोट। देवों ने तब वर दिया, ले कर उनको ओट। हैं भक्त प्रभू राम के, महाबली हनुमान। लाँघ सिंधु भी वो गये, ह्रदय राम को जान। संकट भक्तों के हरें, करें दुष्ट संहार। जो भजते प्रभु राम को, लेते हनुमत भार। भय की कभी न जीत हो, सुख की हो भरमार। हनुमत कृपा करें तभी, और बनें आधार। ................................................................. देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #आंजनेय #दोहे #nojotohindi #nojotohindipoetry आंजनेय (दोहे) आंजनेय भी नाम है, कहलाते हनुमान। निगल लिए श्री सूर्य को, बचपन में फल जान। दं
Shivkumar
नवरात्रि का दूसरा दिन है , मां ब्रह्मचारिणी का l मां दुर्गा को दूसरा रुप है , मां ब्रह्मचारिणी का ll तपस्विनी माता , सात्विक रुप धारण करती है l पूजा करने से भक्तों के , सारे कष्ट को वो हरती है l श्वेत वस्त्र मां धारण करती , तपस्या सदा ही वो करती है l तपस्या करने से , सारी सिद्धियां भक्तों को वो देती है ll दूध चावल से बना भोग , मां बड़ा प्रिय वो लगता है l खीर,पतासे, पान, सुपारी , मां को बहुत चढ़ाते हैं ll स्वच्छ आसन पर बैठकर , मां का करें ध्यान l मंत्र जाप करने से , माता कल्याण करती है ll राजा हिमाचल के यहां , माता उत्पन्न हुई थी l विधाता उनके लिए , शिव-संबंध रच रखे थे ll वह पति रुप में , भगवान शिव को चाहती थी l घोर तपस्या करने , वह फिर जंगल में चली गई ll भोलेशंकर , मां के तपस्या जब प्रसन्न हुए मनवांछित वर देने के लिए हो गए तत्पर ll तपस्विनी रुप में , मां को देखकर बोले शिवशंकर l ब्रह्मचारिणी नाम से , विख्यात होने का दिए वर ll ©Shivkumar #navratri #navaratri2024 #navratri2025 नवरात्रि का दूसरा दिन है , मां #ब्रह्मचारिणी का l मां #दुर्गा को दूसरा रुप है , मां ब्रह्मचारि
Sangeeta Kalbhor
जगलेल्या क्षणांनी जागवून ठेवणे बरे नव्हे नाव प्रीतीचे गाव प्रीतीचे उमजून रडवणे खरे नव्हे कशाला हवा मार्ग परतीचा श्वास अनावर होताना लागावा की ठसका उगा ओरखडा मनावर करताना मुजून जातात खुणा व्रणाच्या घाव परी ठरलेला का म्हणून सोडावा हात हातात एकदा धरलेला सोडावा की स्वाभिमान नात्याला ह्रदयी कोरताना पाझरतील नयन आपसूकच प्रीत उरी स्मरताना जगलेल्या क्षणांनी व्हावे समजूतदार नको हट्ट उगा वाईट काळातही जगलेला क्षणच वाटतो की हो सगा काळ येवो कितीही सरसावून क्षणच होतात ढाल मनोदशा बदलायला क्षणांचीच तर ओढावी लागते शाल जगलेल्या क्षणांचा व्हावा जागर नाद मनी घुमवावा पडत्या क्षणांत असता आपण जगलेला क्षण आठवावा..... मी माझी..... ©Sangeeta Kalbhor #boatclub जगलेल्या क्षणांनी जागवून ठेवणे बरे नव्हे नाव प्रीतीचे गाव प्रीतीचे उमजून रडवणे खरे नव्हे कशाला हवा मार्ग परतीचा श्वास अनावर होतान
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- बिना घर के भी हम डटकर खड़े हैं कहें किससे कि अब मर कर खड़े हैं ।।१ हमारे सामने गिरधर खड़े हैं । सकल संसार के रहबर खड़े हैं ।।२ करें कैसे तुम्हारा मान अब हम । पलटकर देखिए झुककर खड़े हैं ।३ डरूँ क्यूँ आँधियों को देखकर मैं । अभी पीछे मेरे गुरुवर खड़े हैं ।।४ मसीहा जो बताते थे खुदी को । वही अब देख बुत बनकर खड़े हैं ।।५ अभी तुम बात मत करना कोई भी । हमारे साथ सब सहचर खड़े हैं ।।६ मिली है योग्यता से नौकरी यह । तभी तो सामने तन कर खड़े हैं ।।७ पकड़ लो हाथ तुम अब तो किसी का । तुम्हारे योग्य इतने वर खड़े हैं ।।८ निभाओ तो प्रखर वादा कभी अब । अभी तक देखिए छत पर खड़े हैं ।। २६/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- बिना घर के भी हम डटकर खड़े हैं कहें किससे कि अब मर कर खड़े हैं ।।१ हमारे सामने गिरधर खड़े हैं ।
||स्वयं लेखन||
ॐ नमः पार्वती पतेय हर हर महादेव! एक केशर विलेपित कोमल कमल राजकन्या, शोभित न्यारी ललित ललाट, दिव्य छविधारी गौरी प्यारी। दूजे शोभित हैं भभूत,विषधर नीलकंठ मुंडमाल से भरा कंठ, धारण किए चंद्र चमक रहा मस्तक, जटाधारी केश,भाल त्रिनेत्र बर्फाच्छादित निवास क्षेत्र। पर्वतपुत्री शोभित न्यारी कनक बसन कंचुकी सजाए, स्वर्ण आभूषण शोभा भाए, हृदय में शिव को बसाए, एक ही हठ वर बने शिवशंकर जाती कैलाश शिखर निष्ठावान प्रेम संकल्प लिए शैल सुता पूजती शिवलिंग, अन्न जल त्याग प्रेमरस भींग, वैरागी शिव के हृदय में कर प्रेम जागृत, किया शक्ति ने स्वयं को समर्पित। ©||स्वयं लेखन|| ॐ नमः पार्वती पतेय हर हर महादेव! एक केशर विलेपित कोमल कमल राजकन्या, शोभित न्यारी ललित ललाट, दिव्य छविधारी गौरी प्यारी।
Dhanraj Gamare
kckfkfjfjfjfjfjfjfjfjfjfjfjfjfjfjfjfjf ©Dhanraj Gamare जेवढ्या जागतिक संस्था बघत आहेत इच्छुकांचे फोन आले पाहिजेत कारण मला ७ वर्ष मी कारभार बघितला तुमचा फक्त थातुर मातुर काम करण्यात आले मी सर्व बघ
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
प्रदीप छन्द अधारित :- गीत हिम्मत हम बच्चों की देखो , लड़ जाये चट्टान से । लिए तिरंगा हाथ में देखो , बढ़ते जाये शान से ।। हिम्मत हम बच्चों की देखो ..... नन्हें नन्हें कदम हमारे , चूम रहे अंगार को । भारत माँ के हम सपूत हैं , छोड दिए घर द्वार को ।। इसकी रक्षा धर्म हमारा , चाहे जायें जान से । हिम्मत हम बच्चों की देखो .... वीर शिवा के हम बच्चे हैं , सीना है फौलाद का । सीख मिली सुखदेव भगत से , लगा तिलक आजाद का ।। धूल चटाने दुश्मन को हम , आयेंगे शमशान से । हिम्मत हम बच्चों की देखो .... वीर शहीदों की मिट्टी है , अपने हिंदूस्तान की । वक्त पड़े तो जाँ हाजिर है , देखो यहीं जवान की ।। तुम्हें हराने को हम वर भी , लायेंगे भगवान से । हिम्मत हम बच्चों की देखो .... हिम्मत हम बच्चों की देखो , लड़ जाये चट्टान से । लिए तिरंगा हाथ में देखो , बढ़ते जाये शान से ।। २९/०२/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR हिम्मत हम बच्चों की देखो , लड़ जाये चट्टान से । लिए तिरंगा हाथ में देखो , बढ़ते जाये शान से ।। हिम्मत हम बच्चों की देखो ..... नन्हें नन्हे
Jitendra Singh
वर दे, वीणावादिनि वर दे! 🌷प्रिय स्वतंत्र-रव🌷 🌷अमृत-मंत्र नव🌷 🙏भारत में भर दे!🙏 🍀☘️🍃🌿🌱☘️🍀 💗🙇♂️🙇♂️💗 ©Jitendra Singh #वर देVivek Kumar abhishek sharma Dil se duniya tak rasmi Kartik kumar sonwani
Bharat Bhushan pathak
ज्ञानदायिनी मातु विमले,शारद माँ हमको वर दे। मूढ़ बहुत हैं हम सब माते,वरदहस्त हमपर धर दे।। श्वेतपद्म पर रहने वाली,अमृत ज्ञान वर्षण कर दे। अज्ञान व्रण में सब हैं तड़पे,पीड़ा अम्बे तू हर ले।। ©Bharat Bhushan pathak #SaraswatiPuja ज्ञानदायिनी मातु विमले,शारद माँ हमको वर दे। मूढ़ बहुत हैं हम सब माते,वरदहस्त हमपर धर दे।। श्वेतपद्म पर रहने वाली,अमृत ज्ञान
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
heart जन्मदिवस पे आपके , फूलों की बरसात । लाये सब उपहार में , खुशियों की सौगात ।।१ जीवन के इस मंच पे , बन जाये फिर बात । अपने पन की जब यहाँ , हो जाये शुरुआत ।।२ आज हृदय में प्रेम का , गूँज रहा संगीत । जन्मदिवस में पास ही , बैठा है मनमीत ।।३ जन्मोत्सव पर आपके , झूम रहा परिवार । छन्द विधाओं से सभी , देते हैं उपहार ।।४ जीवन के हर क्षेत्र में , रहे आप उत्तीर्ण । जन्मदिवस पर दूँ दुआ , बनिए आप प्रवीण ।।५ जन्मदिवस पर ये प्रखर , कहता मन की पीर । जाकर पहले पोछिए , निर्धन के अब नीर ।।६ जिनका भोलेनाथ ने , आकर किया प्रचार । वह अपने प्रभु राम जी , जग के पालनहार ।।७ लेकर कपि अवतार जो , किए राम की भक्ति । ऐसी तो इंसान में , कहीं न देखी शक्ति ।।८ बनकर भक्त प्रसिद्ध है , जग में अब हनुमान । संकट सबके हर रहे , पाकर वर भगवान ।।९ अपनी खातिर छोड़ दे , जीना ए इंसान । तुझको ही रब ने दिया , सुनो बुद्धि औ ज्ञान ।।१० भक्त बना भगवान है , देखो कृपा महान । ऐसी भक्ती कर सके , कौन यहां इंसान ।।११ बने भक्त भगवान भी , लीला रची महान । भक्ती रस मैं भी पियूँ , बन बैठे इंसान ।।१२ शिक्षा ये व्यापार की , करना चाहो बन्द । करो पढ़ाई धर्म की , हो जायेगी मन्द ।।१३ दो ओ दो का ज्ञान ही , सुनो लगाए पार । प्यार भरा जीवन मिले , रहता उच्च विचार ।।१४ ०२/०२/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR जन्मदिवस पे आपके , फूलों की बरसात । लाये सब उपहार में , खुशियों की सौगात ।।१ जीवन के इस मंच पे , बन जाये फिर बात । अपने पन की जब यहाँ ,