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Y. B
Yasmin Bano ©Y. B मुंशी प्रेमचंद जी (धनपतराय श्रीवास्तव) की अपनी पत्नी के साथ फोटो जिसमें उन्होंने फटे जूते पहने हुए हैं। इस फोटो को देखकर महान लेखक हरिशंकर प
मुंशी प्रेमचंद जी (धनपतराय श्रीवास्तव) की अपनी पत्नी के साथ फोटो जिसमें उन्होंने फटे जूते पहने हुए हैं। इस फोटो को देखकर महान लेखक हरिशंकर प #गोदान #कामुकता #preamchand
read moreTOLCNR_Keep_Smile
सभी रूप, रंग, धर्म, जाति, वेश-भूषा और #भाषा को, सम्मान देना हमारे #हिन्दुस्तान की रग-रग में बसा है, सभी के प्रति समानता उसके कण-कण में बसा
सभी रूप, रंग, धर्म, जाति, वेश-भूषा और #भाषा को, सम्मान देना हमारे #हिन्दुस्तान की रग-रग में बसा है, सभी के प्रति समानता उसके कण-कण में बसा #nojotohindi #हिन्दी #विचार #गर्व #हिन्दीदिवस #tolcnrkeepsmile
read moreHarshita Dawar
Written by Harshita ✍️✍️ #Jazzbaat हिंदी दिवस 2020 बड़ी विविधता से भरी भाषाओं की फुलवारी है मगर हमें जिसपर नाज़ है जो वहीं मातृभाषा हिंदी हमारी रानी है बोली निकलते ही हिंदी की पहचान वहीं निराली है हिंदी है हम कसम हिंदुस्तान की ताकत वहीं सब पर भारी है एकता का स्वरूप संदेश देता अनेक वेश भूषा प्यार से भरा हर इंसान नेक बनाती है, वहीं पन्नों पर उतरा इत्र से महकता सिद्धांत से पहचान लिखवाती है, कर्म भूमि हमारी भारत का निर्माण करती वहीं हिन्दुस्तानी से हिंदी कहलाती हैं #hindidiwas #realityoflife #reality #yqbaba #yqdidi Written by Harshita ✍️✍️ #Jazzbaat हिंदी दिवस 2020 बड़ी विविधता से भरी भाषाओं की फुलवार
#Hindidiwas #realityoflife #Reality #yqbaba #yqdidi Written by Harshita ✍️✍️ #jazzbaat हिंदी दिवस 2020 बड़ी विविधता से भरी भाषाओं की फुलवार
read moreShree
कुछ तुम्हारी सुनेंगे, कुछ अपनी हम कहते हैं, खामोशियों को, कभी धड़कनों को पढ़ लेंगे। जैसे तुमको अच्छा लगे हम वैसे ही मिल लेंगे, किरदार अपने-अपने हम रंग लेंगे वेश-भूषा, थोड़े पहाड़ और थोड़ी से झरने भी चुन लेंगे, छोटे से आशियाने के पीछे बहती नदी का शोर, आंखें मूंदे पनाहों में तुम्हें लेकर हम दूर कर देंगे। सर्दियों की नर्म धूप,बारिश के बाद का इंद्रधनुष, गर्मियों में आम की मिठास, हर मौसम रमाएंगे, लोगों की दुनिया से हम थोड़ा दूर रहगुज़र करेंगे, तकनीकी थोड़ी कम सही, मद्धम रोशनी चलेगी। आपाधापी हर दिन की... भागमदौड़ भरी जिंदगी अपनी कहानियों में हम इन्हें थोड़ा शांत कर देंगे। कुछ तुम्हारी सुनेंगे, कुछ अपनी हम कहते हैं, खामोशियों को, कभी धड़कनों को पढ़ लेंगे। जैसे तुमको अच्छा लगे हम वैसे ही मिल लेंगे, किरदार अपने-
कुछ तुम्हारी सुनेंगे, कुछ अपनी हम कहते हैं, खामोशियों को, कभी धड़कनों को पढ़ लेंगे। जैसे तुमको अच्छा लगे हम वैसे ही मिल लेंगे, किरदार अपने- #YourQuoteAndMine #cascadewriters #cartoonsworld #collabwithcw #a_journey_of_thoughts #unboundeddesires #lovepoemsarebest #cwकहानियोंमेंमिले
read moreअनुज
फूलों के साथ खर पतवार बिक रहा है मीडिया से लेकर पत्रकार बिक रहा है बोली लगाने वालों फीता तुम बांध लो शहर शहर ढूंढ़ो सरकार बिक रहा है अब तो अस्पताल में बिमार बिक रहा है वोटर के वोट से अधिकार बिक रहा है फिल्मी सितारों की भी अपनी है चांदनी पैसा मिले तो ठीक वरना उधार बिक रहा है संसद के बाहर देखो हथियार बिक रहा है बिक के जो छप रहा अखबार बिक रहा है हर एक रैलियों में बदले जो वेश भूषा मंत्री जी का बदला अवतार बिक रहा है मन में उफनती टींस और ज्वार बिक रहा है बिक चुका पहले वो बार बार बिक रहा है मैं तो ये सोंच कर तब सदमे से मर गया जब घर बार से लेकर संसार बिक रहा है ©अनुज फूलों के साथ खर पतवार बिक रहा है मीडिया से लेकर पत्रकार बिक रहा है बोली लगाने वालों फीता तुम बांध लो शहर शहर ढूंढ़ो सरकार बिक रहा है अब तो
फूलों के साथ खर पतवार बिक रहा है मीडिया से लेकर पत्रकार बिक रहा है बोली लगाने वालों फीता तुम बांध लो शहर शहर ढूंढ़ो सरकार बिक रहा है अब तो #Poetry #Hindi #poem #nojohindi
read morePnkj Dixit
🌷 भारत भूमि🌷 बैठो सौहार्द के आँगन में नाता मानवता का समझे गुण धर्म प्रकृति वही पुत्र है परमात्मा का सुख-दुख सब बाँट लो हित हितार्थ का भाव यहाँ है पावैं सभी सम्मान यहाँ है प्राणी सब समान यहाँ । कल्पना विचार है , सपने हकीकत बना लें हम । उमंग और उल्लास भर कर जीवन रंग से सजा लें हम । भारत भूमि पर जन्म लिया है मानव जीवन सफल बना लें हम । भली जीवन की रेखाएँ है सीधा सच्चा चित्र बना लें हम । महापुरुषों के आदर्श लेकर दीर्घायु चरित्र बना लें हम । ऊंच-नीच और जाति धर्म का निकृष्ट भेद भुला यहाँ हम सब एक पिता की संतान यहाँ हैं । प्राणी सब समान यहाँ । चारों धाम मन के भीतर मां बाप को पूज्य बना लें हम । कुसंगति , कटु वचन त्यागकर साधु वचन अपन लें हम । भारत माता के श्रीचरणों में कर वंदन शीश नवा लें हम । राम ,नानक ,महावीर सभी का सच्चा सरल ज्ञान यहाँ । भिन्न-भिन्न भाषा-भूषा है सबका समभाव मान यहाँ । वेद ,पुराण ,स्मृतियों का होता घर-घर अध्ययन यहाँ है । पावें सभी सम्मान यहाँ है प्राणी सब समान यहाँ । ०३/०७/२०१९ 🌷👰💓💝 ...✍ कमल शर्मा'बेधड़क' 🌷 भारत भूमि🌷 बैठो सौहार्द के आँगन में नाता मानवता का समझे गुण धर्म प्रकृति वही पुत्र है परमात्मा का सुख-दुख सब बाँट लो हित हितार्थ का भ
🌷 भारत भूमि🌷 बैठो सौहार्द के आँगन में नाता मानवता का समझे गुण धर्म प्रकृति वही पुत्र है परमात्मा का सुख-दुख सब बाँट लो हित हितार्थ का भ
read moreअज्ञात
पेज-37 एक ओर मानक की सगाई की धूम दूसरी ओर बिजली के दिल दिमाग में शादी का भूत हुआ सवार... ताऊ जी सब कुछ सहन कर सकते थे मगर बिजली जो कह दे उसे पूरा करने में जान लगा देते थे.. ताऊ जी.. करीब छह फुट लम्बा भीमकाय शरीर किन्तु वृद्धावस्था ने उदर को लम्बोदर कर रख्खा था.. घुटनों तक सोलह हाथ की धोती लपेटे.. हाथ में सरसों तेल में नहाया शारीरिक कद के मुताबिक लट्ठ.. नाक से जबड़े तक गिरती फिर उठकर कानों को छूकर गालों पर दोनों ओर वृत्त निर्मित करती घणी मूछें.. जिन्हें देखते ही अच्छे अच्छों की घिग्घी बंध जाती है.. किसी की ना सुननेवाले ताऊ जी की नकेल केवल हमारे विशाल साहब ने कस रख्खी थी वरना तो मानक की सगाई बाद में पहले बिजली को बादल से मिलाना ही पड़ता.. यहाँ कथाकार ने बिजली को आते देख सबको सतर्क करने करना चाहा.. मगर आगे कैप्शन में.. ©R. K. Soni #रत्नाकर कालोनी.. पेज 37 शेष भाग. कथाकार को कौन सुन पा रहा है सबको तो गेस्टहॉउस जाकर दुल्हनियां के दीदार जो करने थे... कहीं कहीं अन्दर ही
Kaushambhi Dixit
"वो लाज़ ओढ़े बैठी रही अपने 'घराने' , मुरेड़ पर कि ज़मीर बिक गया उन इज़्ज़तदारों का , उसके 'कोठे' की चौखट पर" •(caption)• माँ, बहन, बेटी, सखी, प्रेयसी, पत्नी और न जाने कितने रूप हैं स्त्री के । प्रत्येक रूप में वह सृष्टि की और समाज की पूरक है ,कहने भर मात्र ही स
माँ, बहन, बेटी, सखी, प्रेयसी, पत्नी और न जाने कितने रूप हैं स्त्री के । प्रत्येक रूप में वह सृष्टि की और समाज की पूरक है ,कहने भर मात्र ही स #yqdidi #वैश्या #prostitute🖤
read moreAprasil mishra
"उदारवाद बनाम रुढ़िवाद : एक जीवट समावेशी संस्कृति के सन्दर्भ में " 1.सांस्कृतिक अंतर्परिवर्तन- संस्कृति के बाहर किसी अन्य में संस्कृति में होने वाले बदलाव. 2.सांस्कृतिक अंत:परिवर्तन- किसी संस्कृति के भीतर हो