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रिंकी✍️
फूलो की गुलाब से गपशप ऐ गुलाब क्या है तुझमे , जो मुझमे नही। तुझमे तो है कांटे की चुभन, फिर भी क्यो तू सबको पसन्द। मेरी खुशबू को वाह वाही तो मिलती है। मगर तेरे आते वो भी चली जाती है। जलते है हम तुझसे, तू है कई राज समेटे हुए। तू दर्द भी है , तू दबा भी , तू प्यार भरे अल्फाज़ो को खुद में लपेटे हुए। कभी खूबसूरत कदमो के नीचे लेटे हुए। तुझसे जलते है , लेकिन बेफिक्र है। किसी के दिल टूटने से बिखरते नही। कोई हमे पैरो से कुचलते नही। फूलो की गुलाब से गपशप ऐ गुलाब क्या है तुझमे , जो मुझमे नही। तुझमे तो है कांटे की चुभन, फिर भी क्यो तू सबको पसन्द। मेरी खुशबू को वाह वाही त
फूलो की गुलाब से गपशप ऐ गुलाब क्या है तुझमे , जो मुझमे नही। तुझमे तो है कांटे की चुभन, फिर भी क्यो तू सबको पसन्द। मेरी खुशबू को वाह वाही त #दिलनहींमानता #यकदीदी #यकबाबा #यकभाईजान #यकहिंदीकोट्स #गुलाब_का_फूल
read moreBhupendra Rawat
युद्ध कोई समाधान नही बल्कि अंत है,मानवता की शुरुआत का, शांति स्थापित करने और मानवता को बचाने के लिए बनाए गए नियमों की धज्जियां उड़ाने का इतिहास साक्षी है,आजतक शांति स्थापित करने के लिए लड़े गए युद्धों का परिणाम सदैव रहा है,मुर्दों का टिला अपनी जीत का ध्वज़ रोहण करने के लिए पार करना पड़ता है मर्दों से भरा हुआ लबालब एक लंबा मार्ग। वही मार्ग जहाँ शैय्या पर लेटे हुए लोग बन चुके है शांति के प्रतीक। भूपेंद्र रावत 17।08।2021 ©Bhupendra Rawat युद्ध कोई समाधान नही बल्कि अंत है,मानवता की शुरुआत का, शांति स्थापित करने और मानवता को बचाने के लिए बनाए गए नियमों की धज्जियां उड़ाने का इति
युद्ध कोई समाधान नही बल्कि अंत है,मानवता की शुरुआत का, शांति स्थापित करने और मानवता को बचाने के लिए बनाए गए नियमों की धज्जियां उड़ाने का इति #कविता #LookingDeep
read moreRituRaj Gupta
ये लड़ाई है, आम आदमी और राजनेताओं के बीच की, ख़ुद को सर्वश्रेष्ठ साबित करने के लिए, दोनों लड़ पड़े, वाकयुद्ध में, एक सड़क पर, दिनों तक बैठा हुआ, एक अपनी रजाई में लेटा हुआ, भूख प्यास से बेहाल, .. .. Please read rest in caption. ग़ुरूर ------ ये लड़ाई है, आम आदमी और राजनेताओं के बीच की, ख़ुद को सर्वश्रेष्ठ साबित करने के लिए, दोनों लड़ पड़े, वाकयुद्ध में, एक सड़क पर, दिनों
ग़ुरूर ------ ये लड़ाई है, आम आदमी और राजनेताओं के बीच की, ख़ुद को सर्वश्रेष्ठ साबित करने के लिए, दोनों लड़ पड़े, वाकयुद्ध में, एक सड़क पर, दिनों #kavita #roshni #dilsediltak #compromise #padhnelikhnewale #पढ़नेलिखनेवाले #rishtonkisamjh
read moreJALAJ KUMAR RATHOUR
मोहल्ले वाले बड़े भैया, पार्ट-१ शर्मा जी के बड़े बेटे को, मेरे साथ के और मुझसे छोटे मोहल्ले के सभी लड़के बड़े भैया कहकर बुलाते थे। बड़े भैया बचपन से ही पढ़ने में तेज थे। अपने स्कूल में टॉप करने के बाद उन्होंने किसी सरकारी कॉलेज से इंजीनियरिंग की थी। उस रोज 28 जून का दिन था। जब मेरा प्रवेश शहर के एक प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेज में हुआ था। मैं भैया को बताने उनके घर पर गया था। भैया अपने छत वाले रूम में लेटे हुए थे। मुझे देख बोले "क्या टॉपर कौन सा कॉलेज मिला इंजीनियरिंग में ", " भैया अपना एच. बी. टी. आई. ही मिल गया " मैंने बोला। भैया खुश होते हुए अपने कमरे की टंगी तस्वीर की ओर देखने लगे और बोले "कभी मैंने भी इसी कॉलेज की परीक्षा में टॉप किया था" फिर उदास होकर मेरे पास बैठे गए....... ... #जलज कुमार #Yaari मोहल्ले वाले बड़े भैया, शर्मा जी के बड़े बेटे को, मेरे साथ के और मुझसे छोटे मोहल्ले के सभी लड़के बड़े भैया कहकर बुलाते थे। बड़े भैया
Prem Nirala
हाँ, मानता हूँ, कि वो दुःख की घड़ी तुम्हारे लिए भी होंगी, लेकिन शायद कुछ पल के लिए ही! तुम्हारा केह देना हर एक किसी को, कि अब वो नहीं रही, जितना आसान था ये सब तुम्हारे लिए, ये उतना ही मुश्किल, जितना मेरे बाबा के लिए एक टक से अर्थियों पर अपनी धर्मपत्नी को लेटे हुए देखना, कहाँ पता था मेरे बाबा को, कि वो जो काँच की चूड़ियाँ कभी ख़रीदकर लाया करते थे, उन्हें ये कहाँ पता था, कि वो शोर, जो मशाले के सिलबट्टे पे मशाले को पिसते वक़्त जो खनखनाती थी, अब वो खनखनाती चूड़ियाँ एक दिन एकदम से खामोश सी हो जानी हैं, उन्हें ये भी कहाँ पता था, कि अब पीछे से कोई आवाज़ देना वाला नहीं रह जायेगा, उन्हें बस इतना पता था, कि अब वो कभी गुस्से में खाने से भरी थाली नहीं फेंक पाएंगे! हाँ, मानता हूँ कि वो सुहागन मरी, सुहागन मरना ये उनके नसीब में था, लेकिन, अपना हाथ छुड़ाकर उनके हाथ में लाठीयाँ पकड़ा देना, ये कहाँ तक सही था, मुझे नहीं लगता हैं, कि इतना आसान होता होगा, एक बाप के लिए अपने बेटे से ये कह देना, कि माँ को अब चिता के हवाले कर दो, आप यकीन मानिये, एक मरा पैदा हुआ बच्चा उतना तकलीफ़ नहीं देता होगा, जितना एक मर्द के लिए अपनी पत्नी को चिताओं पर जलते देखना! __प्रेम__निराला__ हाँ, मानता हूँ, कि वो दुःख की घड़ी तुम्हारे लिए भी होंगी, लेकिन शायद कुछ पल के लिए ही! तुम्हारा केह देना हर एक किसी को, कि अब वो नहीं रही, ज
हाँ, मानता हूँ, कि वो दुःख की घड़ी तुम्हारे लिए भी होंगी, लेकिन शायद कुछ पल के लिए ही! तुम्हारा केह देना हर एक किसी को, कि अब वो नहीं रही, ज
read moreVandana
क्या काश वो होता, क्या आहा वो ऐसा होता, क्या काश वो होता क्या आहा वो ऐसा होता,, क्या सब कुछ होता तो बचपना अधूरा रह पाता,, सब कुछ प्राप्त होने में वह एहसास मिल पाते वो नंगे पैर दौ
क्या काश वो होता क्या आहा वो ऐसा होता,, क्या सब कुछ होता तो बचपना अधूरा रह पाता,, सब कुछ प्राप्त होने में वह एहसास मिल पाते वो नंगे पैर दौ #YourQuoteAndMine #yqkanmani
read morePriya Kumari Niharika
मुलायम हथेलियों के छाले, चोट खाई कोमल एड़ीयाँ, फटे हुए नाजुक होंठ, केश सूखे घास का मैदान, दूधिया सफेद बर्फ सी आंखें, मरुस्थल सा मासूम चेहरा, के बावजूद प्रथम रश्मि सी मुस्कान, अभिनय नहीं,संकेत हैं, यथार्थ और जिजीविषा के समन्वय की, मटमैले, मलिन चिथड़ों में सवरा, अभावों से निर्मित पतली अस्थियों का ढांचा, कबाड़ का भार लादे महज सात साल की उम्र में, उम्र से आगे और बचपन से दूर, निकल पड़ा है, टुकड़ों की तलाश में, हालात और कुत्ते दोनों से लड़ने, पर मायूसी उसे छू ले, उसमें इतना साहस कहां, नन्हे नन्हे कदमों में जैसे पहिए लगे हों न थकते हैं, न रुकते है, और प्यारी प्यारी आंखें, इमारतों की ऊंचाई को आंकते हुए, न दुखते हैं न झुकते हैं, पर जाड़े और बरसात के दिनों, गुदड़ी पर लेटे हुए, बढ़ जाती है उसकी धड़कन, ठिठुर जाती है उसकी अस्थियां, कांपती है उसकी मांसपेशियां, और लड़खड़ा जाते हैं उसके शब्द, कभी ज्वर से पीड़ित, तो कभी क्षुधा से व्याकुल, अस्थिर निर्बल और बीमार जान पड़ती है उसकी काया, रूठना भी उसे कभी आया नहीं, जिद्द से उसने कभी कुछ पाया नहीं, हालात ने सिखाया जीवन जीने की कला, इसलिए संघर्ष से कभी वह घबराया नहीं कचरे से कल ही उसे एक कलम मिली थी, उसकी खुशी का तनिक भी ठिकाना न था नन्हें-नन्हें पलकों में सपने को संजोए, धरती पर लेट आसमा की गहराई में खोए साहेब लोगों की जेब में इसी कलम को तो देखा था उसने सड़क पर चलती गाड़ियों के भीतर आज स्याह रात में उसे जुगनू की रोशनी मिली है कल क्या पता, प्रभात का अर्क उसका हो ©Priya Kumari Niharika मुलायम हथेलियों के छाले, चोट खाई कोमल एड़ीयाँ, फटे हुए नाजुक होंठ, केश सूखे घास का मैदान, दूधिया सफेद बर्फ सी आंखें, मरुस्थल सा मासूम च
मुलायम हथेलियों के छाले, चोट खाई कोमल एड़ीयाँ, फटे हुए नाजुक होंठ, केश सूखे घास का मैदान, दूधिया सफेद बर्फ सी आंखें, मरुस्थल सा मासूम च #कविता
read moreVandana
मैं और मेरी दीवारें,,अक्सर आपस में बातें करते,,, पूरा कैप्शन में,,, था खाली उदास सा दिन और मेरा कमरा कभी उसको मैं देखूं,,कभी वो मुझ को देखें,,, मैं मुस्कुराओ वो भी मुस्कुरा जाय मेरे संग मेरे पैर थिरके तो वो
था खाली उदास सा दिन और मेरा कमरा कभी उसको मैं देखूं,,कभी वो मुझ को देखें,,, मैं मुस्कुराओ वो भी मुस्कुरा जाय मेरे संग मेरे पैर थिरके तो वो #rain #yqbaba #yqdidi #YourQuoteAndMine #collabwithme #aestheticthoughts #yqaestheticthoughts #ATrainwindow
read moreN S Yadav GoldMine
{Bolo Ji Radhey Radhey} अर्जुन ने महाभारत युद्ध में युधिष्ठिर को मारने के लिए क्यों उठाई तलवार :- महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित ‘महाभारत’ एक बहुत ही विस्तृत ग्रन्थ है जिसमें अनेकों अनेक कहानियां है। आम जन इनमे से अनेक कहानियों और प्रसंगों से अवगत है लेकिन बहुतों से अनजान है। आज हम आपको महाभारत का एक ऐसा ही प्रसंग बताते है जब अर्जुन ने अपने ज्येष्ठ भ्राता युधिष्ठिर को मारने के लिए हथियार उठाए थे। आइए जानते है आखिर अर्जुन ने ऐसा क्यों किया और इसका परिणाम क्या निकला। महाभारत काल की यह कथा हमें वह समय याद कराती है जब कुरुक्षेत्र युद्ध चल रहा था। यह युद्ध का 17वां दिन था और राजकुमार युधिष्ठिर तथा कर्ण के बीच युद्ध हो रहा था। सभी को इस युद्ध से बेहद उम्मीदें थीं कि तभी शस्त्र विद्या में माहिर रहे कर्ण ने युधिष्ठिर पर एक ज़ोरदार वार किया। एक के बाद एक करके कर्ण के सभी वार युधिष्ठिर पर भारी पड़ते गए और वह बुरी तरह से घायल हो गया। अब कर्ण के पास एक मौका था कि वह युधिष्ठिर को मारकर पाण्डवों की नींव हिलाकर रख दे, लेकिन उसने यह मौका हाथ से जाने दिया। आखिर क्यों? कर्ण ने युधिष्ठिर पर सिर्फ इसलिए वार नहीं किया क्योंकि उसने पांडवों की माता कुंती को यह वचन दिया था कि चाहे कुछ भी हो जाए, वह उनके किसी भी पुत्र को जान से नहीं मारेगा। और यही कारण था कि ना चाहते हुए भी कर्ण ने युधिष्ठिर को जीवित ही जाने दिया। जब अनुज नकुल तथा सहदेव ने अपने ज्येष्ठ भ्राता राजकुमार युधिष्ठिर की यह हालत देखी तो शीघ्र ही उन्हें तंबू में ले गए, जहां उनकी मरहम-पट्टी के सभी इंतज़ाम किए गए। जब तीनों भाई तंबू में थे तो बाकी दो भाई अर्जुन तथा भीम अभी भी युद्ध में शत्रुओं की सेना से संघर्ष कर रहे थे। अचानक ही अर्जुन को राजकुमार युधिष्ठिर की अनुपस्थिति का एहसास हुआ और उन्होंने भीम से इस बारे में पूछताछ की। तब भीम ने बताया कि किस तरह से कर्ण तथा युधिष्ठिर के बीच हुए द्वंद युद्ध में भ्राता युधिष्ठिर घायल हो गए, जिसके बाद उन्हें विश्राम करने के लिए ले जाया गया है। तभी भीम ने अर्जुन से कहा कि वह शत्रुओं को अकेले ही संभाल लेंगे और अर्जुन से आग्रह किया कि वे भ्राता युधिष्ठिर के पास जाएं और उनके स्वास्थ्य का ब्योरा लें। आज्ञानुसार राजकुमार अर्जुन उस तंबू की ओर चले दिए, जहां युधिष्ठिर घायल आवस्था में पीड़ा से जूझ रहे थे। तंबू में लेटे हुए युधिष्ठिर ने अचानक ही अपने अनुज को अपनी ओर आते हुए देखा। अर्जुन को देख उनकी खुशी का ठिकाना ना रहा। वह समझ गए कि हो ना हो अर्जुन युद्ध में कर्ण पर विजय प्राप्त कर उनके पास खुशखबरी लेकर आ रहे हैं। वह अंदर ही अंदर बेहद गर्व महसूस कर रहे थे कि उनकी इस हालत के लिए जिम्मेदार व्यक्ति को उनके अनुज ने दंड दे दिया है और अवश्य ही अर्जुन ने कर्ण को मार दिया होगा। लेकिन युधिष्ठिर सत्य से अनजान थे। तंबू में प्रवेश करते ही अर्जुन ने ज्येष्ठ भ्राता को प्रणाम किया और उनसे उनके स्वास्थ्य के बारे में पूछा। लेकिन इससे ज्यादा तो युधिष्ठिर इस बात को सुनने के लिए ज्यादा उत्तेजित हो रहे थे कि अर्जुन ने कर्ण को मारा या नहीं। लेकिन तभी राजकुमार अर्जुन द्वारा वहां आने का असली कारण व्यक्त किया गया। उन्होंने बताया कि कैसे भीम ने युधिष्ठिर के घायल होने की खबर सुनाई जिसके बाद वह दौड़े-दौड़े उनकी स्थिति का ब्योरा लेने आ गए। अर्जुन के मुख से सच्चाई सुनते ही युधिष्ठिर अपना आपा खो बैठे। वह सच उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचा रहा था। उन्हें ऐसा महसूस हुआ मानो कोई उनके सम्मान को तीर के समान चीरता हुआ जा रहा हो। वे बेहद क्रोधित हो उठे और बोले, “तुम यहां केवल मेरे घावों के बारे में पूछने आए हो या फिर उन्हें और कुरेदने आए हो? तुम किस प्रकार के अनुज हो जो अब तक अपने ज्येष्ठ भ्राता के अपमान का बदला नहीं ले सके।“ युधिष्ठिर के इन कटु वचनों को सुनकर अर्जुन बेहद शर्मिंदा महसूस कर रहे थे, लेकिन युधिष्ठिर का क्रोध शांत नहीं हो रहा था। वे आगे बोले, “यदि तुम मेरे लिए इतना भी करने में असमर्थ हो तो तुम्हारे इस गांडीव अस्त्र का कोई लाभ नहीं है। उतार कर फेंक दो इसे।“ अपने प्रिय गांडीव अस्त्र की निंदा सुनते ही अर्जुन के मुख पर निराशा वाले भाव पल में ही क्रोध के साथ बदल गए। वह संसार में किसी से भी किसी भी प्रकार की निंदा सुन सकते थे, लेकिन उनके गांडीव के बारे में कोई एक भी अपशब्द बोले, यह उन्हें बर्दाश्त नहीं था। दरअसल यह अर्जुन द्वारा लिए गए एक वचन का हिस्सा था, जिसके अनुसार कोई भी अपना या पराया व्यक्ति यदि उनके पवित्र एवं प्रिय गांडीव अस्त्र के बारे में बुरे वचन बोलेगा, तो वह उसका सिर कलम कर देंगे। यही कारण था कि युधिष्ठिर द्वारा गांडीव की निंदा करते ही अर्जुन ने अगले ही पल अपना गांडीव उठाया और क्रोध भरी आंखों से युधिष्ठिर को मारने के लिए आगे बढ़े। तभी श्रीकृष्ण वहां पहुंचे और अर्जुन के इस व्यवहार को देखते ही उन्हें रुकने की आज्ञा दी। श्रीकृष्ण राजकुमार अर्जुन का यह रूप देखकर बेहद अचंभित हुए। वे समझ नहीं पा रहे थे कि आखिरकार ऐसी क्या बात हुई जो अर्जुन अपने ही प्रिय भाई युधिष्ठिर के प्राण लेने को तैयार हो गए। तत्पश्चात अर्जुन ने उन्हें घटना का सार बताया और फिर श्रीकृष्ण को समझ आया कि आखिर बात क्या थी। उस समय भगवान कृष्ण ने अर्जुन को समझाया और बोले, “हे अर्जुन! मैं तुम्हारे अपने गांडीव के संदर्भ में लिए गए वचन का सम्मान करता हूं। वचनानुसार तुम्हें अपने ही ज्येष्ठ भ्राता को मार देने का पूरा हक है, परन्तु धार्मिक संदर्भों में यह पाप है।“ लेकिन दूसरी ओर अर्जुन भी अपने वचन से मजबूर थे। उनकी मंशा को और गहराई से समझते हुए श्रीकृष्ण बोले, “अर्जुन, यदि तुम्हे अपने वचन को पूरा करना है तो इसका एक अन्य साधन भी है। माना जाता है कि अपने से बड़ों का अनादर करना उन्हें मृत्यु दंड देने के समान होता है। यदि अभी तुम अपने ज्येष्ठ भ्राता का अपमान करो तो तुम्हारा वचन पूरा हो जाएगा।“ श्रीकृष्ण की आज्ञानुसार अर्जुन ने अगले ही पल युधिष्ठिर का तिरस्कार किया। अपने द्वारा किए गए इस अनादर को अर्जुन सहन ना कर सके और इस बार अपने ही प्राण लेने के लिए उन्होंने अपनी तलवार उठा ली। लेकिन भगवान कृष्ण ने उन्हें ऐसा करने नहीं दिया। उन्होंने अर्जुन को बताया कि कैसे खुद के प्राणों का अंत करना यानी कि आत्मदाह करना शास्त्रों में अधर्म माना जाता है। और पाण्डवों द्वारा अधर्म के मार्ग पर चलना एक बहुत बड़ा पाप एवं अन्याय साबित होगा। इसीलिए उसे धर्म का मार्ग चुनना चाहिए। इसके साथ ही श्रीकृष्ण ने कहा कि आत्मप्रशंसा, आत्मघात के समकक्ष है। इसलिए तुम दूसरों के सम्मुख अपनी वीरता की खुलकर तारीफ़ करो, जिससे तुम्हारा वचन पूरा हो जाएगा। श्रीकृष्ण के इन वचनों को सुन धीरे-धीरे राजकुमार अर्जुन का क्रोध शांत हुआ और उन्होंने खुद के सिर पर रखी उस तलवार को नीचे उतार कर फेंक दिया। इस प्रकार भगवान कृष्ण के निर्देशों से राजकुमार अर्जुन का वचन पूरा हुआ और साथ ही वह किसी भी प्रकार का अधर्म करने से बच गए। जय श्री कृष्ण।। ©N S Yadav GoldMine #CityWinter {Bolo Ji Radhey Radhey} अर्जुन ने महाभारत युद्ध में युधिष्ठिर को मारने के लिए क्यों उठाई तलवार :- महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित ‘म
#CityWinter {Bolo Ji Radhey Radhey} अर्जुन ने महाभारत युद्ध में युधिष्ठिर को मारने के लिए क्यों उठाई तलवार :- महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित ‘म #जानकारी
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