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Ayesha Aarya Singh
रिस-रिस कर बनते हैं रिश्ते, रिस-रिस कर सान्निध्यता पाते हैं , रिस-रिस कर,विश्वास,समर्पण, प्रेम न मिले तो, रिस-रिस कर ही बिखर जाता हैं || ©Ayesha Aarya Singh #रिस-रिस कर बनते हैं रिश्ते, रिस-रिस कर सान्निध्यता पाते हैं रिस-रिस कर,विश्वास, समर्पण,प्रेम न मिले तो रिस-रिस कर ही बिखर जाता हैं || #noj
Praveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी जख्मो पर ये विकास रिस रहा है दिल जला के उजाला दिख रहा है सूख रहे है जीवन स्रोत दाँव दाल रोटी पर चल रहा है हजारों झंझटो के बाद मेहनतों का दाम मिल रहा है चुकाते रहे शहर सजाने की कीमत वो ही शहर दोयम दर्जे का बता रहा है निहारने का हमे मौका ही नही फिर सबके विकास का भरम जग में कियो फैलाया जा रहा है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #walkingalone जख्मो पर ये विकास रिस रहा है #nojotohindi
HINDI SAHITYA SAGAR
कुछ तो टूट रहा है अंदर ही अंदर, कुछ तो बिखर रहा है अंदर ही अंदर, एक ज़ख्म रिस रहा है अंदर ही अंदर, एक तूफ़ान उमड़ रहा है अंदर ही अंदर। ©HINDI SAHITYA SAGAR #Dark कुछ तो टूट रहा है अंदर ही अंदर, कुछ तो बिखर रहा है अंदर ही अंदर, एक ज़ख्म रिस रहा है अंदर ही अंदर, एक तूफ़ान उमड़ रहा है अंदर ही अंदर। #
HINDI SAHITYA SAGAR
कुछ तो टूट रहा है अंदर ही अंदर, कुछ तो बिखर रहा है अंदर ही अंदर, एक ज़ख्म रिस रहा है अंदर ही अंदर, एक तूफ़ान उमड़ रहा है अंदर ही अंदर। ©HINDI SAHITYA SAGAR #akelapan कुछ तो टूट रहा है अंदर ही अंदर, कुछ तो बिखर रहा है अंदर ही अंदर, एक ज़ख्म रिस रहा है अंदर ही अंदर, एक तूफ़ान उमड़ रहा है अंदर ही अंद
Nisheeth pandey
गुजरी है जब से मेरे माथे से, धूप की परछांई , उस दिन से मैं रिस रहा पीली धूप से..... तुम्हारी सूरत झिलमिलाती रोशनी, तुम्हारी बातें महकी हुई तन्हाई ..... सिसकियां चरागां है गुजरे हुए चोटों की यादों से..….. @निशीथ ©Nisheeth pandey #surya गुजरी है जब से मेरे माथे से, धूप की परछांई , उस दिन से मैं रिस रहा पीली धूप से... .. तुम्हारी सूरत झिलमिलाती रोशनी, तुम्हारी बातें
CharanJeet Charan
वहाँ उस दश्त में वैसे तो सब सूखा हुआ था मगर कुछ दूर इक सोते से पानी रिस रहा था कहा था उसने आना है तो बस लेकिन वहाँ पर सभी थे अजनबी मेरे लिए सब कुछ नया था चलो अच्छा है उसको आज भी इसका यक़ी है वहाँ उस रोज़ मेरी आँख में कुछ गिर गया था वो जब ये कहते कहते रुक गई सब ठीक है बस मेरा मन तो था उससे बोल दूँ मैं क्या बुरा था ? गणित कमज़ोर था मेरा मगर इतना नहीं था घटाकर आ गया उसको मैं जिसको जोड़ना था वो इक सपना कि जिसमें मैं था वो थी और हम थे बिछड़ते वक़्त वो इक साँप बनने लगे गया था ? जुदा होते ही उससे बढ़ गई इस तौर हिद्दत बुझी सिगरेट थी हाथों में और मैं जल रहा था ©CharanJeet Charan वहाँ उस दश्त में वैसे तो सब सूखा हुआ था मगर कुछ दूर इक सोते से पानी रिस रहा था कहा था उसने आना है तो बस लेकिन वहाँ पर सभी थे अजनबी मेरे