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Shashi Bhushan Mishra
मन को लाया हूँ समझाकर, जीत न होगी गाल बजाकर, क्रोध हानिकारक होता है, रखना पड़ता है फुसलाकर, बच्चों सा जिद पे अड़ जाये, करना शांत उसे बहलाकर, अहसासों में कमी देखकर, करना पड़ता प्रेम जताकर, ओझल हुए सितारे जग से, गया न कोई पता बताकर, सच्चा दोस्त साथ ही रहता, देखो तुम इसको अपनाकर, अच्छा-बुरा मिले किस्मत से, आते लोग भाग्य लिखवाकर, कर सत्कर्म जगत में 'गुंजन', पायेगा दुःख-दर्द सताकर, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #जीत न होगी गाल बजाकर#
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
गीत :- यहाँ श्री राम स्वागत में सुनों हनुमान आये हैं । सुना है और ये हमने विभीषण साथ आये हैं ।। यहाँ श्री राम स्वागत में .... बजाकर ढोल अब हम तो खुशी के गीत गायेंगे । चरण उनके जिधर भी हो उधर हम सिर झुकायेंगे । खुशी की यह लहर ऐसी बताएं क्या तुम्हें अब हम । अयोध्या को सजाने तो यहाँ नल नील आये हैं ।। यहाँ श्री राम स्वागत में.... बुहारू राह मैं अब तो जिधर से राम जी गुजरे । करेंगे मिल सभी वंदन बिछाऐ आज हम नजरे ।। चरण उनके पखारूँ मैं यही अरमान दिल में है । दिवस वो आ रहा देखो जिसे मन में बसाये हैं यहाँ श्री राम स्वागत में .. अयोध्या हो गई दुल्हन खबर प्रभु राम की पाकर । नहीं तुमने सजी देखी अयोध्या आज तो जाकर ।। वही के आप फिर होगे झलक उसकी सुनों पाकर । वही से राम जी सबके सुनों दिल में समाये हैं ।। यहाँ श्री राम स्वागत में सुनों हनुमान आये हैं । सुना है और ये हमने विभीषण साथ आये हैं ।। ०६/०१/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :- यहाँ श्री राम स्वागत में सुनों हनुमान आये हैं । सुना है और ये हमने विभीषण साथ आये हैं ।। यहाँ श्री राम स्वागत में .... बजाकर ढोल अब
#suman singh rajpoot
इंसान चीज नहीं, जिसे ठोक बजाकर योग्य या अयोग्य समझा जाय। कोई पल भर में समझ आ जाता है कोई समझ आकर, पलकों से बह जाता है। कोई डरावनी ख़्वाब की तरह कोई सुबह की ख़्वाब की तरह होता है। इन्सान चीज नहीं जिसकी कीमत जानकर योग्य या अयोग्य समझा जाय। ©#suman singh rajpoot #landscape इंसान चीज नहीं, जिसे ठोक बजाकर योग्य या अयोग्य समझा जाय। कोई पल भर में समझ आ जाता है कोई समझ आकर, पलकों से बह जाता है। कोई डरावन
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
गगरी हाथों में लिए , पनघट रही निहार । प्यासे होगें घर पिया , करती रही विचार ।। करती रही विचार , नीर है मैला कुचला । दूजा नही उपाय , जल का स्तर है निचला ।। यही आज है व्याधि , शहर हो या हो नगरी । लिए हाथ में नार , देख लो खाली गगरी ।। पायल झुमका औ कड़ा , पहने दिखती नार । अलकें कुछ लटकी हुई , लगता करे विचार ।। लगता करे विचार , नीर बिन खाली गगरी । जाए वह किस घाट , घाट तो इक ही नगरी ।। सूख-सूख कर आज , गला है पिय का घायल । कैसे करूँ निहाल , बजाकर मैं अब पायल ।। ११/०८/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गगरी हाथों में लिए , पनघट रही निहार । प्यासे होगें घर पिया , करती रही विचार ।। करती रही विचार , नीर है मैला कुचला । दूजा नही उपाय , जल का स्
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
कुण्डलिया वेणु बजाकर राधिका , कान्हा करें प्रसन्न । कान्हा भोले हैं बने , पीछे बैठे सन्न ।। पीछे बैठे सन्न , वेणु राधा की सुनके । कहतें बैठो संग , गरुण से अब वह हँसके ।। झूमेंगी अब बेल , आज फिर धूम मचाकर । राधे रानी आज , सुनाती वेणु बजाकर ।। १७/०३/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR कुण्डलिया वेणु बजाकर राधिका , कान्हा करें प्रसन्न । कान्हा भोले हैं बने , पीछे बैठे सन्न ।। पीछे बैठे सन्न , वेणु राधा क
Mahima Jain
\\ आज़ाद भारत की पहली सुबह // (पढ़े अनुशीर्षक में) दिनांक - 15 अगस्त 1947 आज सुबह हमने एक आजादी देश में सांस ली। कल आधी रात को ही आजाद भारत का एलान हो चुका था। खुशी में रात भर मुझे नींद ही न
Krish Vj
नशे में गाड़ी ना चलाएं 🎀 देख भाई देख 🎀 #collabwithकोराकाग़ज़ 🎀 आज की प्रतियोगिता (Challenge-216) "आपकी कशिश" को जीतने के लिए "देख भाई देख" पर कोलाब करना अनिवार्य
sanjay sheoran
जीने का शौक़ नही या मरने का ख़ौफ़ नही। 🎀 देख भाई देख 🎀 #collabwithकोराकाग़ज़ 🎀 आज की प्रतियोगिता (Challenge-216) "आपकी कशिश" को जीतने के लिए "देख भाई देख" पर कोलाब करना अनिवार्य
sanjay sheoran
मरने को बेकरार है क्या किसी अपने से तकरार है। 🎀 देख भाई देख 🎀 #collabwithकोराकाग़ज़ 🎀 आज की प्रतियोगिता (Challenge-216) "आपकी कशिश" को जीतने के लिए "देख भाई देख" पर कोलाब करना अनिवार्य
AK__Alfaaz..
इक रोज भावनाओं के सागर से, इक दिव्यजन्मा, अपनी दैवीय देवप्रभा लिए, प्रकट भयी, धूप की केसरिया चूनर ओढ़े, भूमि पे, साथ वो लायी, स्नेह की सीपीयों मे बंद, आनंद के श्वेत मोती, व.., कुछ चमकती दूधिया कौड़ियां, और.., कान्हा का पांचजन्य शंख, इक रोज भावनाओं के सागर से, इक दिव्यजन्मा, अपनी दैवीय देवप्रभा लिए, प्रकट भयी, धूप की केसरिया चूनर ओढ़े, भूमि पे, साथ वो लायी,