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Anil Ray
दिल में दफ़न है, मुमताज बहुत सपनों की पर कमबख्त! यह दिल, तुम पर ही मरेगा। यार तुम मुमताज से भी बहुत खूबसूरत हो सदा साथ के लिए तेरे हजार नखरे सहेगा। कही गुज़र न जाये, यें जवानी ख्यालातों में साला! पंडित को बुला ले, मैं शादी करेगा। ©Anil Ray 💞 💖//एक-दूसरे के लिए मरते रहे//💖 💞 केवल दो वक्त रोटी के लिए आसमां उठाये रखा हम अनजान पानी पर दिनरात पापड़ बेलते रहे। कार्यालय में ठंडा खा
AK__Alfaaz..
वो, संतोष का, जल मिलाकर, आटा गूँथती है, रसोई में, फिर.., समर्पण की, लोईयां काटकर, बेलती है रोटियां, जैसे, धरती के गर्भ में, भूकंप बेलते हैं, उदर उसका, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #चार_कोस_दहलीज़ वो, संतोष का, जल मिलाकर आटा गूँथती है,
AK__Alfaaz..
मै, रोज गूँथती हूँ, नैनों के जल से, पहाड़ सा हृदय अपना, आटे की तरह, अपनी देह की रसोई में, काटती हूँ, अपने उदर में, सुख-दुःख की एक बराबर लोईयां, और.., बेलती हूँ, सूरज व चाँद सी गोल रोटियाँ, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #जूठन मै, रोज गूँथती हूँ, नैनों के जल से, पहाड़ सा हृदय अपना,
AK__Alfaaz..
स्त्रियाँ, बाँधती हैं, बालों में अपने, कल्पना का जूड़ा, एवं.. पिरो लेती हैं, जूही के फूलों सा प्रेम, व.. नम नैनों की कोरों पर, सजाती हैं, ख्वाहिशों के काजल की, इक पतली सी धार, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे.. #पहला_अक्षर स्त्रियाँ, बाँधती हैं, बालों में अपने, कल्पना का जूड़ा,
AK__Alfaaz..
इक दिन मैंने, पत्थर पर इक पौधा उगा देखा, उसके सुर्ख रक्तिम फूल, चमक रहे थें, ओस की बूँदों में, पेड़ की ओट से झाँकती, सुनहरी सिंदूरी किरणों के सहारे, कौतूहलवश मैंने भी, घर के आँगन की मिट्टी खोदी, व..उसमे लाकर रोप दिए, कुछ गोल पत्थर, कुछ तिकोने, और.. कुछ अनगढ़ से पत्थर, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #पत्थर.. इक दिन मैंने, पत्थर पर इक पौधा उगा देखा, उसके सुर्ख रक्तिम फूल, चमक रहे थें,
AK__Alfaaz..
धैर्य की ओखली मे, विश्वास के धान डालकर, वो कूटती है, फिर..किस्मत के सूपे मे, खुशियों के चावल रखकर, फटकती है, बीनती है , गम के कंकर, और.. निकालती है, निराशा के घुन, व..प्रेम के जल से धोकर, चढ़ाती है, त्याग के चूल्हे पर, अपनी समर्पण की हँडिया मे, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे.. #रसोई_शास्त्र.. धैर्य की ओखली मे, विश्वास के धान डालकर, वो कूटती है, फिर..किस्मत के सूपे मे,
Unconditiona L💓ve😉
हर हर गौरी — % & अपरिमीत स्वाद तेरी हाथों में मीठी ममता...!1!
deepti
छोटी-छोटी खुशियों में भी खुश हो लेती हूं, मैं औरत हूं तकलीफ भी मुस्कुराकर काट लेती हूं ! माथे की शिकन को बिंदिया से ढाँप लेती हूं, काजल के पीछे छिपा आंखों की बरसात लेती हूं ! सुन लेती हूं सब की शिकायतें पर चुप रहती हूं, अपनी शिकायतें बेलती हुई रोटियों से बांट लेती हूं ! सवाल हजारों उठते है जब कश्मकश में रहती हूं, रसोई मे रखे बर्तनों से कर सवालात लेती हूं ! कोई समझे ना समझे मुझे मैं खुद को समझ लेती हूं, अपने घर के हर एक समान से कर बात लेती हूं ! अस्तित्व एक है मेरा मैं हिस्सो मे नही बावजूद इसके, सबकी जरूरत के अनुसार खुद को बांट लेती हूं ! मैं औरत हूं हालत के अनुसार स्वयं को ढाल लेती हूं, मैं औरत हूं तकलीफ मे भी मुस्कुरा लेती हूं ! ©deepti #woman छोटी-छोटी खुशियों में भी खुश हो लेती हूं, मैं औरत हूं तकलीफ भी मुस्कुराकर काट लेती हूं ! माथे की शिकन को बिंदिया से ढाँप लेती हूं,