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ashutosh anjan

ये ग़ज़ल मेरी पसंदीदा है, मुझे नही लगता इससे अच्छा कुछ लिखा है मैंने क्योंकि ये मेरे दिल के काफ़ी क़रीब है।बचपन सबका ख़ास होता है,मेरा भी है। पढ़ के बताइए कैसी है? 🙏🏻❣️ #कोराकाग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़ #रमज़ान_कोराकाग़ज़ #kkr2021 #kkबचपन #yqdidi #yourquote

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बचपन (ग़ज़ल)
वो किताबें पेंसिल खिलौनें कोई लौटाने तो आए,
चिल्लर ज़्यादा क़ीमती है कोई बताने तो आए।

ना क्रिकेट ना स्कूल ना वो बचपन के दोस्त रहे,
कोई लगाकर गले बचपन याद दिलाने तो आए।

सबसे हसीं मोड़ ज़िंदगी का जैसे कल की बात थी,
कोई पकड़कर हाथ मेरा फ़िर साथ निभाने तो आए।

जेबें खाली दिल बड़ा वो मासूमियत कहाँ बचीं,
हम ख़ुद से नाराज़ है फिर कोई मनाने तो आए।

चल चलकर हज़ारों मील थक चुका हूँ 'अंजान' ,
लौटना चाहता हूँ गोद में बस माँ बुलाने तो आए। ये ग़ज़ल मेरी पसंदीदा है, मुझे नही लगता इससे अच्छा कुछ लिखा है मैंने क्योंकि ये मेरे दिल के काफ़ी क़रीब है।बचपन सबका ख़ास होता है,मेरा भी है। पढ़ के बताइए कैसी है? 🙏🏻❣️
#कोराकाग़ज़ 
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अभिलाष सोनी

बचपन (#kkबचपन) 25 अप्रैल 2021 ************************ Pic Credit :- Pinterest बचपन की कुछ प्यारी यादें, मुझको बड़ा सताती हैं। जाने क्यूँ रह रह कर मुझको, दोस्तों की याद आती है। हर पल मस्ती, हर पल झगड़ा, पर न कभी अलग हुए।

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//बचपन//
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बचपन की कुछ प्यारी यादें, मुझको बड़ा सताती हैं।
जाने क्यूँ रह रह कर मुझको, दोस्तों की याद आती है।

हर पल मस्ती, हर पल झगड़ा, पर न कभी अलग हुए।
ये कहानी है बड़ी सुहानी, पर आँख में आँसू लाती है।

बारिश में यूँ भीगा करते, कागज की नाव चलाते थे।
डर के कारण घर में हम, बस दबे पाँव ही जाते थे।

पापा की डाँट, माँ का गुस्सा, हँसकर ही सह जाते थे। 
लेकिन कभी हम धोखे से भी, जुबान नहीं चलाते थे।

जाने कहाँ गई वो रहमत, क्यूँ लौट के न वो आती है।
जाने क्यूँ रह रह कर मुझको, बचपन की याद सताती है। बचपन (#kkबचपन) 25 अप्रैल 2021
************************
Pic Credit :- Pinterest

बचपन की कुछ प्यारी यादें, मुझको बड़ा सताती हैं।
जाने क्यूँ रह रह कर मुझको, दोस्तों की याद आती है।

हर पल मस्ती, हर पल झगड़ा, पर न कभी अलग हुए।

DR. SANJU TRIPATHI

बचपन 

बचपन की यादों में खोकर, मेरा मन आज भी बच्चे जैसा ही बन जाता है। 
याद करता है वह शैतानियां, वह नादानियां फिर उसी में खोकर रह जाता है।

बारिश में भीग कर नहाना, वह मां-पापा की डांट खाना बड़ा याद आता है।
दादी-नानी से किस्से-कहानियां सुनना, वो करना अठखेलियां अब भी भाता है।

खेलने-कूदने के लिए,पढ़ाई से जी चुराना,वो बहाने बनाकर घूमना याद आता है।
स्कूल ना जाने को पेट दर्द का बहाना बनाना, फिर समोसे खाना याद आता है।

क्लास से बाहर बैठने के लिए होमवर्क ना करके ले जाना बैठ कर गप्पे लड़ाना,
दोस्तों की टोली संग मौज-मस्ती करना समय बिताना, सताता है गुजरा जमाना।

भेदभाव रीति-रिवाजों से अलग, अपनी छोटी सी दुनियां में खोये रहना सुहाता था।
चेहरे पर मासूमियत थी, दिल में ना कोई बैर था, बस केवल दोस्ती निभाना आता था।
 25/04/2021

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Writer1

मां बाप के लाड प्यार में खिलता रहा बचपन,
राजकुमारी मुझे बताओ खुश होती थी मन ही मन,

चांद तारों की सैर रोज़ कराती थी, मां जब लोरी गा सुनाती थी,
वो बाबा से जिद पे अड़ना,   हर बात मानी जाती थी,

जिम्मेदारियों से मुक्त थे , खुला आसमान के नीचे बसते थे,
खिल उठता था बचपन जब पीपल के पेड़ पर झूला झूलते थे,

चोट लगने पर गोद मिलती थी हमारा हर दर्द कम होता तो खुशियां खिलती थी,
वह प्यार की थपकी से  उम्मीदों को जैसे हवा मिलती थी,

वह वलवले  जोश से भरे , कुछ कर दिखाने की चाह, 
लहू  में उबाल था के मक्तल ए जाँ की भी ना थी हमें परवाह,

ज्यों-ज्यों बचपन खोता गया, त्यों त्यों मुस्कराहट खोती गई,
जो खिल उठते थे चेहरे कभी नन्ही मुस्कुराहटों से, अब किसी नजर में वह प्यार नहीं,

ना पहले जैसी किलकारियां, डरता रहता मन,
उन्मुक्त नीला नभ देख के मन मयूरा ना नाचे देखके वहिशीपन,

हैवानियत के संसार में, कहीं खो ना जाएं भोलापन,
तृणावर्त प्रवृत्ति का आभास है अब‌ सहमा सा ख़ामोश है बचपन।   रचना: 14
25.04.2021
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