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Neha Pathak
*तेरे होंठों की तलब* उम्र के दराज़ पर बस कुछ ही साँस बाकी है वो भी ना बीत जाएं कोई ऐसी बात कीजिए! हसरतें तो जैसे दिन पे दिन बढ़ती ही जा रही, घेर न ले हमें नींद, नींद से ऐसी बग़ावत कीजिए! कोई तूफ़ान उठ रहा साँसों में होश मेरे गुम हुए जा रहे, थम जाए ये तूफ़ाँ बाहों में ले लीजिए.. बूंद बूंद पिघल रही हूँ, तेरे होंठों की तलब में जिस्मों की प्यास बुझे ऐसी कोई हरक़त कीजिए! तड़प रहा मेरा तन-मन अब जिस्मों से रूह के मिलन को, मीट जाए ये कुछ हदों की दूरियाँ.. अब ना आए कोई रुकावट हम दोनों के दरमियाँ इतने पास आओ मेरे की दो जिस्म एक जाँ होइए! ये तपिश तन की और ये प्यास होंठों की बस तुम्हें छुने को है सनम लग जाओ सीने से बुझा दो..हर एक अगन की अब रहा नहीं जाता मुझसे तुम-बिन बस अब तो अपना बना ही लीजिए! हाँ मैंने माना कि मैं सीमाओं के पार जा नहीं सकती, और ना तुम अपने दिल को समझा पाते हो, आख़िर कब तक इम्तिहान इश्क़ की हो, ऐ ख़ुदा अब ना हमें दूर रहने की सज़ा दीजिए! तुम्हीं हो हमराह तुम्हीं मेरे मीत हो, हर सफ़र के हमसफ़र मेरे मनप्रीत हो,मेरे रोम-रोम पे पीया.. बस तेरी कहानी हो गई, चलता रहे ताउम्र ये दास्ताँ ऐसी कोई निशानी दीजिए! #कोराकाग़ज़ #kkतेरेहोठोंकीतलब #कोराकाग़ज़महाप्रतियोगिता #kkजन्मदिनमहाप्रतियोगिता #collabwithकोराकागज #yqbaba #yqdidi #हवा
💞Seema Yadav💞
*आख़िरी बार माफ कर दो * तुम्हारी नजरों में इश्क करना गुनाह है तो तुम इस गुनाह की कोई सजा दे दो मेरी नजरों ने सिर्फ तुमको ही चुना है तुम चाहो तो उम्र भर की चौकीदारी दे दो तुम्हें लगता है मैंने गलत किया है तो तुम मुझे आख़िरी बार माफ कर दो #कोराकाग़ज़ #collabwithकोराकागज #kkआख़िरीबारमाफ़करदो #kkजन्मदिनमहापोतियोगिता #जन्मदिनकोराकाग़ज़
भुवनेश शर्मा
प्रकृति की सेवा निरंतर करते चलो, परोपकार के लिए अपने हाथ बढ़ाते चलो। कर्म रूपी सूरज तुम नित्य उदय करते चलो, फल की चिन्ता किंचित मात्र भी हदय में ना रखो ऊपर वाला सब देख रहा है अपना मन सदैव पवित्र रखो। 🎀 ऊपर वाला सब देख रहा है 🎀 #collabwithकोराकाग़ज़ आज की प्रतियोगिता (Challenge-179) "तेरी मौजूदगी और तेरी गैर मौजूदगी" को जीतने के लिए "ऊपरवाला सब देख रहा है" पर कोलाब करना अनिवार्य है। दो लेखकों को मिलकर कोलाब करना हैं और कुछ अनोखा लिखने की कोशिश करनी है। ध्यान रहे यहाँ ऊपर वाले का मतलब CCTV कैमरे से है। कृपया पिन पोस्ट का नियम नम्बर-17 भी पढ़ लीजिएगा। यहाँ दूसरे लेखक को इस प्रकार काॅमेंट करना है-- ऊपर वाला सब देख रहा है 1- 2-
🎀 ऊपर वाला सब देख रहा है 🎀 #collabwithकोराकाग़ज़ आज की प्रतियोगिता (Challenge-179) "तेरी मौजूदगी और तेरी गैर मौजूदगी" को जीतने के लिए "ऊपरवाला सब देख रहा है" पर कोलाब करना अनिवार्य है। दो लेखकों को मिलकर कोलाब करना हैं और कुछ अनोखा लिखने की कोशिश करनी है। ध्यान रहे यहाँ ऊपर वाले का मतलब CCTV कैमरे से है। कृपया पिन पोस्ट का नियम नम्बर-17 भी पढ़ लीजिएगा। यहाँ दूसरे लेखक को इस प्रकार काॅमेंट करना है-- ऊपर वाला सब देख रहा है 1- 2-
read moreDR. SANJU TRIPATHI
पुनर्विवाह (कहानी) शालिनी और राजेश की शादी को ग्यारह साल पूरे होने वाले थे वे बहुत खुश थे और अपनी ग्यारहवीं सालगिरह धूमधाम से मनाने की तैयारी कर रहे थे लेकिन कुछ दिन पहले ही राजेश का एक्सीडेंट हो गया और एक ही पल में शालिनी की पूरी जिंदगी बदल गई जिस घर में खुशियों का डेरा था अब वहां राजेश की मौत का जिम्मेदार शालिनी को मानते हुए उससे बुरा व्यवहार किया जाने लगा था उसको और उसकी बेटी को हमेशा ही बुरा भला कहा जाने लगा था शालिनी ने भी चुपचाप रहकर इसको अपनी नियति मान लिया था। शेष कहानी कृपया अनुशीर्षक में पढ़ें 👇👇👇👇👇 शालिनी शालिनी कहां रह गई है अभी तक मेरा टिफिन तैयार नहीं किया मुझे ऑफिस जाने के लिए लेट हो रहा है शालिनी शालिनी क्या कर रही हो अभी तक मुझे चाय नाश्ता भी नहीं मिला है शालिनी किचन के कामों में व्यस्त थी तभी उसकी बेटी की आवाज आई मम्मी मम्मी आज मेरी स्कूल यूनिफॉर्म प्रेस नहीं की अब मैं स्कूल क्या पहन कर जाऊंगी मम्मी मम्मी की आवाज से शालिनी का ध्यान भंग हुआ और वह दौड़ कर कमरे की तरफ गई जहां उसकी बेटी प्रेस का प्लक बोर्ड में लगाने ही जा रही थी तभी मम्मी ने पीछे से आवाज लगाई रुको मैं आ रही हूं मैं करती
शालिनी शालिनी कहां रह गई है अभी तक मेरा टिफिन तैयार नहीं किया मुझे ऑफिस जाने के लिए लेट हो रहा है शालिनी शालिनी क्या कर रही हो अभी तक मुझे चाय नाश्ता भी नहीं मिला है शालिनी किचन के कामों में व्यस्त थी तभी उसकी बेटी की आवाज आई मम्मी मम्मी आज मेरी स्कूल यूनिफॉर्म प्रेस नहीं की अब मैं स्कूल क्या पहन कर जाऊंगी मम्मी मम्मी की आवाज से शालिनी का ध्यान भंग हुआ और वह दौड़ कर कमरे की तरफ गई जहां उसकी बेटी प्रेस का प्लक बोर्ड में लगाने ही जा रही थी तभी मम्मी ने पीछे से आवाज लगाई रुको मैं आ रही हूं मैं करती
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लेखन का महत्व लेखन के माध्यम से लेखक पाठकों तक अपने विचारों और भावों को सम्प्रेषित कर सकता है, इसके माध्यम से ही वह अपने भावों और विचारों को साहित्यिक रचना के रूप में प्रस्तुत कर सकता है। कृपया शेष रचना अनुशीर्षक में पढ़ें 👇👇👇👇👇 लेखन का महत्व लेखन के माध्यम से लेखक पाठकों तक अपने विचारों और भावों को सम्प्रेषित कर सकता है, इसके माध्यम से ही वह अपने भावों और विचारों को साहित्यिक रचना के रूप में प्रस्तुत कर सकता है।
लेखन का महत्व लेखन के माध्यम से लेखक पाठकों तक अपने विचारों और भावों को सम्प्रेषित कर सकता है, इसके माध्यम से ही वह अपने भावों और विचारों को साहित्यिक रचना के रूप में प्रस्तुत कर सकता है।
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बदलाव भाई के विवाह के पश्चात मीना की जिंदगी के बदलाव की कहानी कृपया अनुशीर्षक में पढ़े👇👇👇👇 बदलाव चाकू के घाव भर सकते हैं मगर शब्दों के घाव नहीं भर सकते हैं मीना बहुत ही सीधी सादी और शांत सी लड़की हुआ करती थी। मीना के घर में उसके भाई जो भी कहते थे मीना बिना कुछ सवाल जवाब किए मान लेती थी उसके पापा की पोस्टिंग ज्यादातर बाहर ही बाहर रहा करती थी और वो भी आते जाते रहते थे बाकी सब एक ही जगह रहते थे कभी उनके साथ कहीं और रहने नहीं गए इसलिए कभी उनका बहुत ज्यादा सहयोग नहीं मिला और भाई को ही अपने पिता का दर्जा देकर उनकी बात मानने लगी मीना ने कभी उनकी किसी बात पर कोई सवाल नहीं उठाया उसे लगता था
बदलाव चाकू के घाव भर सकते हैं मगर शब्दों के घाव नहीं भर सकते हैं मीना बहुत ही सीधी सादी और शांत सी लड़की हुआ करती थी। मीना के घर में उसके भाई जो भी कहते थे मीना बिना कुछ सवाल जवाब किए मान लेती थी उसके पापा की पोस्टिंग ज्यादातर बाहर ही बाहर रहा करती थी और वो भी आते जाते रहते थे बाकी सब एक ही जगह रहते थे कभी उनके साथ कहीं और रहने नहीं गए इसलिए कभी उनका बहुत ज्यादा सहयोग नहीं मिला और भाई को ही अपने पिता का दर्जा देकर उनकी बात मानने लगी मीना ने कभी उनकी किसी बात पर कोई सवाल नहीं उठाया उसे लगता था
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बचपन की यादों में (गज़ल) बचपन की यादों में खोकर, मेरा मन आज भी बच्चे जैसा ही बन जाता है। याद करता है वह शैतानियां, वह नादानियां फिर उसी में खोकर रह जाता है। बारिश में भीग कर नहाना, वह मां-पापा की डांट खाना बड़ा याद आता है। दादी-नानी से किस्से-कहानियां सुनना, वो करना अठखेलियां अब भी भाता है। खेलने-कूदने के लिए, पढ़ाई से जी चुराना, वो बहाने बनाकर घूमना याद आता है। स्कूल ना जाने को पेट दर्द का बहाना बनाना,और फिर समोसे खाना याद आता है। क्लास से बाहर बैठने के लिए होमवर्क ना करके ले जाना बैठ कर गप्पे लड़ाना, दोस्तों की टोली संग मौज-मस्ती करना समय बिताना, सताता है गुजरा जमाना। भेदभाव रीति-रिवाजों से अलग,"एक सोच" को अपने में ही खोये रहना सुहाता था। चेहरे पर मासूमियत थी, दिल में ना कोई बैर था, बस केवल दोस्ती निभाना आता था। #KKPC27 #kkप्रीमियम #कोराकागजप्रीमियम #प्रीमियमग़ज़ल #विशेषप्रतियोगिता #collabwithकोराकागज #कोराकागज
DR. SANJU TRIPATHI
तेरी तलब (ग़ज़ल) बेस्वाद सी जिंदगी को मेरी जब से तेरे प्यार का स्वाद लग गया, पल में सारे समां के साथ साथ जिंदगी का जायका बदल गया। जीने लगे तेरे ही ख्वाबों खयालों में रात और दिन शाम-ओ-पहर, तेरे तसव्वुर के सिवा जिंदगी में कोई भी ख्वाब बाकी ना रह गया। तेरी तलब ऐसी लगी है कि मेरी सारी की सारी दुनियाँ बदल गई, हर पल हर घड़ी खुदा से दुआओं में तुझे ही मांगने दिल लग गया। कट रही थी मेरी जिंदगी तन्हाइयों में तूने शहनाइयों से सजा दी, चाहने लगे दिल-ओ-जान से ज्यादा जाने तू कैसा जादू कर गया। तेरे बिना जिंदगी जीने की "एक सोच" कभी सोच भी नहीं सकती, तेरा नाम दिल के साथ-साथ हाथों की लकीरों पर भी लिख गया। #KKPC27 #kkप्रीमियम #कोराकागजप्रीमियम #प्रीमियमग़ज़ल #विशेषप्रतियोगिता #collabwithकोराकागज #कोराकागज
DR. SANJU TRIPATHI
चरित्र हर बार जमाने में पवित्रता की वेदी पर, सदा स्त्रियों को ही क्यों चढ़ाया जाता है? गलती चाहे किसी की भी रही होती हो, क्यों स्त्री के चरित्र पर संदेह किया जाता है? (👇👇शेष रचना अनुशीर्षक में पढ़े👇👇👇) चरित्र हर बार जमाने में पवित्रता की वेदी पर, सदा स्त्रियों को ही क्यों चढ़ाया जाता है? गलती चाहे किसी की भी रही होती हो, क्यों स्त्री के चरित्र पर संदेह किया जाता है? स्त्री तो होती है अप्रतिम ममता की मूरत,
चरित्र हर बार जमाने में पवित्रता की वेदी पर, सदा स्त्रियों को ही क्यों चढ़ाया जाता है? गलती चाहे किसी की भी रही होती हो, क्यों स्त्री के चरित्र पर संदेह किया जाता है? स्त्री तो होती है अप्रतिम ममता की मूरत,
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तेरे प्यार की चुनरिया तेरे ही प्यार के रंगों की ओढ़ के चुनरिया पिया मैं तो तेरे ही रंगों में रंग गई, कल तक थी तुझसे बिल्कुल अनजान, प्यार का बंधन करके तेरी हो गई। तेरे नाम की लगाई है माथे पर बिंदिया तेरे ही नाम की हाथों में मेहंदी रचाई है, लाल जोड़ा पहन के सजी हूँ आज मैं झिलमिल सितारों वाली चुनरी मंगाई है तेरी दुल्हन बनी हूँ माँग में भरकर तेरे नाम का सिंदूर सोलह श्रृँगार पूरे किये हैं बड़ी मन्नतों व दुआओं के बाद जिंदगी में यह वस्ल की चाहत की रात आई है। तेरा साथ पाकर तो जिंदगी का हर मुश्किल सफर भी हँसते हँसते कट जाएगा, तेरे प्यार की खुशियों की छाँव तले जिंदगी के सारे गम धीरे धीरे खिसक जाएंगे। श्रृंगार रस #kkकाव्यमिलन #कोराकागज काव्यमिलन #काव्यमिलन_2 #विशेषप्रतियोगिता #collabwithकोराकागज #कोराकागज
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