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Krish Vj

मैं आज 'बचपन' की कहानी सुनाता हूँ चलो आज तुम्हें, ज़िंदगी से मिलाता हूँ हाँ माँ-बाप का लाडला मैं कहाता हूँ जीवन का आनंद, मैं उन्हीं से उठाता हूँ हँस कर जी ज़िंदगी बचपन में ''कृष्णा'' रोकर सारी 'क़ायनात' को मैं रुलाता हूँ #कोराकाग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़ #विशेषप्रतियोगिता #KKPC27 #kkप्रीमियम #कोराकाग़ज़प्रीमियम #प्रीमियमग़ज़ल

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ग़ज़ल :- "बचपन" 

पूर्ण ग़ज़ल अनुशीर्षक में पढ़े!! 

मैं आज  'बचपन' की कहानी सुनाता हूँ
चलो आज  तुम्हें, ज़िंदगी से मिलाता हूँ...  मैं आज  'बचपन' की कहानी सुनाता हूँ
चलो आज  तुम्हें, ज़िंदगी से मिलाता हूँ

हाँ  माँ-बाप  का लाडला   मैं कहाता हूँ
जीवन का आनंद,  मैं उन्हीं से उठाता हूँ

हँस कर जी ज़िंदगी बचपन में  ''कृष्णा''
रोकर सारी  'क़ायनात' को मैं रुलाता हूँ

Nitesh Prajapati

बचपन (ग़ज़ल)

आया था एक हसीन पड़ाव बचपन का,
बहुत जिया उसे हमने, पर वक़्त के साथ वह बचपन खो गया। 

ना जिम्मेदारी का बोझ, ना भविष्य की कोई चिंता, 
जब रहती थी हमारी पुतलियाँ भी सफेद,लेकिन आज वह आँखे कहीं खो गई। 

रहते थे तब हम अपनी मस्ती में ही, स्कूल जाना    
खेलना लड़ना और झगड़ना, लेकिन आज वह दोस्त कहीं खो गए। 

बचपन में भी जहांँ हमारी स्कूल थी,आज भी वही है,         
लेकिन आज मेरे बचपन की परी कहीं खो गई।

रखी है आज भी मैंने संभाल के बचपन की वह चीजें, 
वो चीज़े नहीं यादें है मेरी पर बढ़ती उम्र के साथ वो वक़्त कहीं खो गया। 

बारिश तब भी आती थी, आज भी आती है, 
लेकिन आज बारिश के साथ मेरे बचपन के काग़ज की कश्ती कहीं खो गई। 

-Nitesh Prajapati 





 रचना क्रमांक :-2

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Tarot Card Reader Neha Mathur

KKPC27 कोरा काग़ज़ दूसरा चरण:- ग़ज़ल शीर्षक:- बचपन ख्वाब में जो पुराना वो बचपन दिखा फिर हमें खिलखिलाता वो बचपन दिखा #कोराकाग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़ #विशेषप्रतियोगिता #kkप्रीमियम #कोराकाग़ज़प्रीमियम #प्रीमियमग़ज़ल

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कोरा काग़ज़
दूसरा चरण:-ग़ज़ल
शीर्षक:- बचपन

ख़्वाब में जो पुराना वो बचपन दिखा
फ़िर हमें खिलखिलाता वो बचपन दिखा

मनचली सी वो तितली को हाथों में फिर
बांध कर मुस्कुराता वो बचपन दिखा

काग़ज़ी नाव को हमें बरसात में
दूर तक ही बहाना वो बचपन दिखा

जुगनुओं का वही चांदनी रात में
झील में झिलमिलाता वो बचपन दिखा

वो नदी और तालाब के 'नीर' में
मौज में छपछपाता वो बचपन दिखा। KKPC27
कोरा काग़ज़
दूसरा चरण:- ग़ज़ल
शीर्षक:- बचपन

ख्वाब में जो पुराना वो बचपन दिखा
फिर हमें खिलखिलाता वो बचपन दिखा

DR. SANJU TRIPATHI

बचपन की यादों में (गज़ल)

बचपन की यादों में खोकर, मेरा मन आज भी बच्चे जैसा ही बन जाता है। 
याद करता है वह शैतानियां, वह नादानियां फिर उसी में खोकर रह जाता है।

बारिश में भीग कर नहाना, वह मां-पापा की डांट खाना बड़ा याद आता है।
दादी-नानी से किस्से-कहानियां सुनना, वो करना अठखेलियां अब भी भाता है।

खेलने-कूदने के लिए, पढ़ाई से जी चुराना, वो बहाने बनाकर घूमना याद आता है।
स्कूल ना जाने को पेट दर्द का बहाना बनाना,और फिर समोसे खाना याद आता है।

क्लास से बाहर बैठने के लिए होमवर्क ना करके ले जाना बैठ कर गप्पे लड़ाना,
दोस्तों की टोली संग मौज-मस्ती करना समय बिताना, सताता है गुजरा जमाना।

भेदभाव रीति-रिवाजों से अलग,"एक सोच" को अपने में  ही खोये रहना सुहाता था।
चेहरे पर मासूमियत थी, दिल में ना कोई बैर था, बस केवल दोस्ती निभाना आता था।

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DR. SANJU TRIPATHI

तेरी तलब (ग़ज़ल)

बेस्वाद सी जिंदगी को मेरी जब से तेरे प्यार का स्वाद लग गया,
पल में सारे समां के साथ साथ जिंदगी का जायका बदल गया।

जीने लगे तेरे ही ख्वाबों खयालों में रात और दिन शाम-ओ-पहर,
तेरे तसव्वुर के सिवा जिंदगी में कोई भी ख्वाब बाकी ना रह गया।

तेरी तलब ऐसी लगी है कि मेरी सारी की सारी दुनियाँ बदल गई,
हर पल हर घड़ी खुदा से दुआओं में तुझे ही मांगने दिल लग गया।

कट रही थी मेरी जिंदगी तन्हाइयों में तूने शहनाइयों से सजा दी,
चाहने लगे दिल-ओ-जान से ज्यादा जाने तू कैसा जादू कर गया।

तेरे बिना जिंदगी जीने की "एक सोच" कभी सोच भी नहीं सकती,
तेरा नाम दिल के साथ-साथ हाथों की लकीरों पर भी लिख गया। #KKPC27
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#कोराकागज

id default

वो बचपन पुराना,
वो मिरी बचपन की यादें वो आशियाँ पुराना 
काश फिर मिल जाएं मुझे, 

वो दर-ओ-दीवारे वो रिश्ते पुराने काश फिर 
मिल जाएं मुझे, 

वो रौनक ए ज़माना वो अपने ख़्वाबों में रहना 
काश वो नासमझी फिर मिल जाएं मुझे, 

वो सड़के पुरानी वो बगीचा पुराना वो बीता हर 
लम्हा वो खेल-पुराने काश फिर मिल जाएं मुझे, 

भूला कर भी न भूला पाएं वो जज़्बा पुराना वो
मरहम पुराना काश फिर मिल जाएं मुझे, 


वो बुलंद अल्फ़ाज़ों का शोर पुराना वो हर दर्द-
ए-सैलाब को हँसी में उड़ाना वो बेफिक्ररी काश 
फिर मिल जाएं मुझे, 


 दूसरी रचना ग़ज़ल 
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वो बचपन पुराना
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#tarunasharma0004


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