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Anamika Nautiyal
कभी-कभी अचानक से बहुत रोने का मन होता है पता नहीं क्यों पर सारी उदासियाँ एक साथ याद आने लगती हैं इतना कि सालों पहले चुभा हुआ काँटा भी याद आने लगता है नहीं जानती कि यह कौन सी अवस्था है विज्ञान की भाषा में इसे क्या कहा करते हैं पर तब भावनाओं के भँवर में डूबते हुए को सहानुभूति के तिनकों का सहारा चाहिए होता है और आज सबसे व्यस्ततम समय में कौन किसका सहारा बनना चाहेगा तब आँसुओं के रूप में निकल कर हमें गले लगाती है कविताएँ! #अनाम_कविताएँ
Anamika Nautiyal
अंतस की सारी भावनाओं को टटोलकर अपने शब्दकोश से कुछ शब्द ढूँढ रही हूँ सुनो मैं कोई कविता लिख रही हूँ क्या लिखूँ कि सब तो पहले से है प्रेम दिवस भी रूठा सा है तुम्हारी अनुपस्थिति से प्रिय सब फीका फीका सा है
अंतस की सारी भावनाओं को टटोलकर अपने शब्दकोश से कुछ शब्द ढूँढ रही हूँ सुनो मैं कोई कविता लिख रही हूँ क्या लिखूँ कि सब तो पहले से है प्रेम दिवस भी रूठा सा है तुम्हारी अनुपस्थिति से प्रिय सब फीका फीका सा है
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सोचकर लिखी कविताएँ याद है सारी मुझे बगैर सोचे जो लिखा जेहन में ना रहा मेरे तुम्हारे सामने आने के बाद भी सिलसिला नहीं थमा मैं जो सोच कर आया था वह घर ही भूल गया हकलाती रही ज़ुबान और काँपते रहे मेरे हाथ धड़कने अमरबेल की तरह ऊपर जाती रही फिर तुम कहते हो कि मैं चुप रहा तुम मेरी स्मृतियों की कविता हो जिसे मैं स्वयं कहने देता हूँ और सुनता हूँ सुखद संगीत! कितना सहल है मेरा तुम दोनों के प्रति प्रेम मेरा प्रेम मुझे ममता लगने लगा है जो दोनों दोनों को बराबर सींच रहा है या कभी तुम दोनों में भेद ही नहीं कर पाया फिर भी तुम परदेस में रहने वाले बच्चे हो जो कभी कभी मुझसे मिलने आते हो कविता तो सदैव मेरे पास रहती है तुम्हारे स्वरूप में। #अनाम_ख़्याल #अनाम_कविताएँ
Anamika Nautiyal
मेरी स्याही लड़ती है मेरे आँसुओ से जो गोल गोल बूँदों सदृश उभर आते हैं पलकों की सीपी में उनका स्वाति आने से पूर्व मैं उन्हें भीतर धकेल देती हूँ मैं नहीं बल्कि मेरी कविताएँ जो उस स्याही से लिखी है जो खुशियों के वक्त मैंने समेट कर रखी थी मुझे समझ नहीं आता कि लोग मुझे क्यों पूछते हैं कि तुम क्यों लिखा करती हो मैं तो अत्यंत लोलुप हूँ किसी के लिए कैसे लिख सकती हूँ मैं स्वयं के लिए लिखती हूँ अपने आँसुओं के लिए और अनकही बातों के लिए जो अपनी कविताओं के सिवाय किसी और से नहीं कह पाई। #अनाम_ख़्याल #अनाम_कविताएँ
Anamika Nautiyal
एक अरसे बाद... एक अरसे के बाद जब मैं मिलूंगीं उससे कुछ देर तक ख़ामोशी छाई रहेगी हमारे दरमियाँ । दो सखियों की तरह मिलना होगा हमारा
एक अरसे के बाद जब मैं मिलूंगीं उससे कुछ देर तक ख़ामोशी छाई रहेगी हमारे दरमियाँ । दो सखियों की तरह मिलना होगा हमारा
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कविताओं के विषय की खोज में हम चले जाते हैं संसार की यात्रा पर। यहाँ से वहाँ विषयों को लिखने के लिए टटोलना लेखक बिना कहीं जाए हुए संसार की यात्रा कर देता है। #अनाम_ख़्याल #रात्रिख़्याल #संसार #लेखक #क्षणिका #यात्रा #latenightthoughts #अनाम_कविताएँ
यहाँ से वहाँ विषयों को लिखने के लिए टटोलना लेखक बिना कहीं जाए हुए संसार की यात्रा कर देता है। #अनाम_ख़्याल #रात्रिख़्याल #संसार #लेखक #क्षणिका #यात्रा #LatenightThoughts #अनाम_कविताएँ
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कवि का रोना सामान्य नहीं होता कवि के अश्रुओं के साथ बहती है कविताएँ और वह कविताएँ पीले पन्नों पर अपना स्थान ले लेती है चिरकाल तक जीवित रहने के लिए। सामान्य नहीं होता कवि का रुदन Pc:- REST ZONE #अनाम #अनाम_ख़्याल #कवि_का_रुदन #अश्रु #कविताएँ #restzonewallpaper #anumika #अनाम_कविताएँ
सामान्य नहीं होता कवि का रुदन Pc:- REST ZONE #अनाम #अनाम_ख़्याल #कवि_का_रुदन #अश्रु #कविताएँ #restzonewallpaper #anumika #अनाम_कविताएँ
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मेरे मन से निकले भावों का दूसरे के मन तक हो संचार, जिसमें हो सामाजिक चिंतन और आचार व्यवहार निश्छल,निष्पक्ष भाव हो जिसका पुष्पगुच्छ-सी जिसमें समावेश हर भावना का जीवन के रेगिस्तान में जो सुकून की अनुभूति कराए हाँ, थोड़ी सागर की लहरों जैसी चंचलता दिखाए विद्रोह का भाव हो उसके भीतर व्यंग्य का स्वाद हो थोड़ा बाहर छंद ,अलंकरणों से कहाँ कर पाऊँगी मैं उसे सुसज्जित सीधी ,सरल हो मगर खूबसूरत मेरी माँ की तरह साहस हो भारतीय स्त्री की तरह उस में क्रोध अन्याय के प्रति हो जिस में मेरी कविता हो ऐसी जो एक 'अनाम' तृप्ति से भर दे मुझे, और मेरे मरण के पश्चात भी जीवित रहे अनंत काल तक। #anumika #अनाम_कविताएँ
Anamika Nautiyal
मैं बहुत डरती हूँ उस पल से नहीं ,मैं किसी सुनामी या भूकंप से नहीं डर रही ना मुझे डर है यम का ना मैं डरती हूँ इस पृथ्वी के, इस ब्रह्मांड के नष्ट हो जाने से ये नदी,यह नाले,यह पर्वत सब आफ़त बन टूट पड़े मेरे ऊपर। वज्रपात हो जाए इन पहाड़ों का मेरे ऊपर रेगिस्तान की धूल में मिल जाऊँ मैं कहाँ डरती हूँ भला इनसे हो जाऊँ मैं निश्वास सूख जाए मेरे भीतर का प्राण हो जाने दो मुझे चेतना शून्य। मेरा डर है केवल उस दिन के लिए , जब हो जाएँगी मेरी सारी कल्पनाएँ ख़त्म। मेरा भय है केवल, उस दिन के लिए जब; मेरे पास शब्द नहीं होंगे मेरी अंतिम कविता के लिए। मैं बहुत डरती हूँ उस पल से नहीं मैं किसी सुनामी या भूकंप से नहीं डर रही ना मुझे डर है यम का मुझे तुमसे बिछड़ने का भी डर कहाँ सताता है ना मैं डरती हूँ इस पृथ्वी के, इस ब्रह्मांड के नष्ट हो जाने से
मैं बहुत डरती हूँ उस पल से नहीं मैं किसी सुनामी या भूकंप से नहीं डर रही ना मुझे डर है यम का मुझे तुमसे बिछड़ने का भी डर कहाँ सताता है ना मैं डरती हूँ इस पृथ्वी के, इस ब्रह्मांड के नष्ट हो जाने से
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