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Anamika Nautiyal

पाँच  तत्त्व  हैं, तीन  लोक  हैं,
असंख्य जीव, असीमित व्योम है,
कहते  हैं सबके भीतर तू, पर
है तेरा विस्तार कहाँ तक, और
मैंने अब तक कितना जाना?

त्राण में तू है, प्राण में तू है,
चराचर के आघ्राण में तू है
मैं अछूता कैसे तुझसे जब
कण-कण में है व्याप्ति तेरी, और
मैंने अब तक कितना जाना?

इन प्रश्नोत्तर का सार है तुझमें,
सब चक्रों का, आधार है तुझमें
तुझ बिन जीवन निस्सार है मेरा,
समझ रहा हूँ तुझसे मैं हूँ, फिर भी,
मैंने अब तक कितना जाना? 

#life 
#lifequotes
#innervoice 
#anumika

Anamika Nautiyal

मैं लेखक नहीं

मैं डरती हूँ कटाक्ष करने से 
भय है मुझे अराजक तत्त्वों का 
मैंने आज तक जितनी भी 
पीड़ाओ को लिखा है 
उन्हें कभी अनुभव नहीं किया

मज़दूर,मज़लूम क्या कभी 
इनके क़रीब गई हूँ दुःखों को झाँकने
शोषितों के दर्द को देखा ही नहीं
दर्द क्या होता है कभी जाना ही नहीं

व्यंग्य करते समय बँधी हुई होती हूँ
एक अदृश्य डोरी से 
जो मेरी लेखनी को 
अपने कहे अनुसार खींचती रहती है

मैं प्रेरक कथन लिखती हूँ
कुछ ज्ञान की बातें बाँटती हूँ
मगर आज तक मैंने 
कितनी दफ़ा उन बातों पर अमल किया है।

मैं स्वार्थी हूँ 
बहुत अधिक मात्रा में
वाहवाही के लिए 
कुछ भी करने को तैयार हूँ। हाँ मैं लेखक नहीं

#अनाम 
#अनाम_ख़्याल 
#लेखक 
#व्यंग्य    
#innervoice  #anumika

Anamika Nautiyal

नमस्ते लेखकों❤ तैयार हो हमारी "काव्योगिता" के तीसरे पड़ाव के लिए?! अक्सर हम अपने कवितायों के जरिए से अपने आप से या कभी-कभार कल्पित चरित्रों से बात करते है। आज आपको कुछ इसी प्रकार का कार्य करना है। आपको एक ऐसी कविता लिखनी है जिसमें आपको किसी भी एक भावना से वार्तालाप करना है। कविता में 4 छंद होना अनवार्य है। जिस भावना को अपने दर्शाया है, उसका उल्लेख अनुशीर्षक में करे। हिंदी शब्दों और व्याकरण पर खास ध्यान दिया जाएगा। भाव :- प्रेम #अनाम #anumika

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पूछ बैठी मैं हृदय से एक दिन अकस्मात,
क्यों खिलते हैं प्रेम सरोवर में जलजात?
क्यों भावों का भँवर मुझको घेरता है?
क्यों नेह मेरी ओर उत्कंठा से देखता है?

लिए प्रेमभाव हृदय समक्ष आकर बोला,
प्रेम से क्यों लिप्त हूँ भेद इसका खोला। 
सुनो! कोमलांगी तुम सृष्टि को जीवन देने वाली हो,
विभिन्न रूपों में प्रेम का संचार करने वाली हो।

सर्वोच्च भाव तुझ में  प्रीति का,
तुझमे ही समावेश ह्रीति का।
तुम माँ की ममता का सार हो,
तुम अनंत का विस्तार हो।

अकाट्य दुःखों का जब तुम स्नेह से नाश करती हो,
तुम माँ भवानी सम शत्रु नाशक लगती हो।
जब घेर ले सारे कष्ट कर विषाद का आह्वान,
दे सको दुःखों को विराम ,इसीलिए है प्रेम का तुम्हारे हृदय में स्थान। नमस्ते लेखकों❤

तैयार हो हमारी "काव्योगिता" के तीसरे पड़ाव के लिए?! 

अक्सर हम अपने कवितायों के जरिए से अपने आप से या कभी-कभार कल्पित चरित्रों से बात करते है। आज आपको कुछ इसी प्रकार का कार्य करना है। आपको एक ऐसी कविता लिखनी है जिसमें आपको किसी भी एक भावना से वार्तालाप करना है। कविता में 4 छंद होना अनवार्य है। जिस भावना को अपने दर्शाया है, उसका उल्लेख अनुशीर्षक में करे। हिंदी शब्दों और व्याकरण पर खास ध्यान दिया जाएगा।

भाव :- प्रेम

Anamika Nautiyal

Special mention to this song 👇 रूद्र शिव पुरन्दरा भद्र नट युगन्धरा नमन नमन ओ गौरीनाथ शर्व अज केदारनाथ #अनाम #anumika #अनाम_ख़्याल #शंकरस्तुति

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वह पूजनीय देवों के वो रामेश्वर है,
वह गणों के रखवाले वह नागेश्वर है।

वह दुःखनाशी वह जग पालनहारी, 
वह अर्धांग गौरा का वह पिनाकधारी। 

सौम्य सुकोमल और नटराज है, 
वही भूत वही भविष्य और वही आज है।

लय  प्रलय सभी में है भीमशंकर,
त्रिशूल,डमरू ईवान्यन के अलंकार।

युग युगांतर से विद्यमान अनश्वर है,
वह सोमनाथ मल्लिकार्जुन त्र्यंबकेश्वर है। 

नमन-नमन हो धन्य जीव जो सर पर तेरा हाथ है ,
रूद्र,सोम,उमापति नमन केदारनाथ है। 
Special mention to this song 👇 


रूद्र शिव पुरन्दरा
भद्र नट युगन्धरा 
नमन नमन ओ गौरीनाथ 
शर्व अज केदारनाथ

Anamika Nautiyal

मैं चलना भूल गई हूँ अक्सर कदम ठिठक जाते हैं,
बेडियों में जकड़ा गया है मेरे क़दमों को। 
उड़ने से रोक गया है मेरे पंखों को,
फिर कोई बताए मुझे चलने और उड़ने के 
सिवाय क्या काम है इनका?

अब मेरी आँखें सपने नहीं देखा करती,
अक्सर कानों को बंद कर देती हूँ मैं।
बंदिशें लगाई जाती है मेरी सोच पर, 
तो फिर कोई मुझे बताए मन क्यों है?

सवाल पूछने का अधिकार नहीं है मुझको,
अक्सर अपना मुँह बंद कर देती हूँ मैं।
विद्रोह के लिए उठते हाथ मेरे,
हमेशा बाँध दिए जाते हैं;
क्या बाँधने के लिए ही इन्हें खोला जाता?

स्वप्न, जिज्ञासा और अभिलाषाएँ 
किसी कोने में पड़े हुए ,
मेरी ओर आशा से करते हैं कुछ सवाल।  
मेरा केवल एक ही जवाब होता है
हाँ,चलना भूल गई हूँ मैं।  Thanx for not remembering me 🙃

#अनाम_ख़्याल 
#रात्रिख़्याल 
  #anumika

Anamika Nautiyal

सावन की बिजलियाँ और तुम्हारी यादें #सावन #यादें #सरहद #सैनिक #अनाम #anumika #अनाम_ख़्याल

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मैं बिरहन में चातक बन बाट जोहती रहूँ पिया की,
तृष्णा है तो मात्र ,पूर्ण कर पाऊँ कामना हिय की।

मेरे लिखे पत्रों का क्यों तुम प्रत्युत्तर नहीं दे पाए?
कहो प्रिय तुम क्यों सावन में इस बार नहीं आ पाए?

अधीर चंचल अपने मन को मैं कैसे समझाऊँ?
बरस रहे हैं मेघ विवशता उन्हें कैसे बतलाऊँ?

तुम सीमा पर प्रहरी बन शत्रुओं से देश बचाना, 
ना सजन अब की बार तुम  लौट नहीं आना।

तुम कर लेना महसूस पहली बारिश की छुअन को ,
लगा लेना तुम हृदय से मेरे मन-मस्तिष्क की अगन को।

तुम अपने कर्तव्य पालन को भलीभाँति पूर्ण करना,
बहे जो अश्रु की धार, नैनों के कोर में ही छुपा देना।

फिर अगले बरस जब तुम लौट आओगे,
नैनों की बरसात से  ही मुझे भिगाओगे। 

मेरा हर तीज-त्योहार तब ही मनाया जाएगा,
जब लौट मेरा साजन सरहद से वापस आएगा। 
सावन की बिजलियाँ और तुम्हारी यादें 


#सावन 
#यादें
#सरहद 
#सैनिक

Anamika Nautiyal

मृत्यु मेरा वरण करने से पूर्व
जान लेना मेरी अभिलाषाएँ,
पूर्ण हैं या रिक्त रह गई
मेरी मानवीय परिभाषाएँ।

क्या निभा पाई हूँ 
उत्तरदायित्वों को भली प्रकार,
क्या कभी बनाया है स्वप्नों का संसार;
अल्प समय देना,कर सकूँ सबका आभार।

क्या हूँ मैं तुम्हें आलिंगन करने योग्य ,
क्या मेरा उद्देश्य पूर्ण हो गया है।
क्या किया है सिक्त,
मैंने लहू से लक्ष्य को।

यदि नहीं ख़री उतरती हूँ मैं ,
तुम्हारे मानदंडों पर ।
हे मृत्यु ! त्यज देना मुझे,
अनाम रहने के लिए। 
 मृत्यु पर बस नहीं चलता 🙃


#अनाम 
#अनाम_ख़्याल 
#रात्रिख़्याल 
#मृत्यु_मेरा_वरण_करने_से_पूर्व

Anamika Nautiyal

#anumika

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जिज्ञासायें और प्रश्न हज़ार 
मन में कौंधते हैं बार-बार

क्यों जन्मते हैं हम धरा पर ? 
क्या सत्य है पुनर्जन्म का विचार ?

क्यों अनेक रिश्तों के जाल ?
क्यों मात्र कुछ दिनों का व्यवहार ?

क्यों देहावसान पर विलाप ?
क्यों नवजन्म पर त्योहार ?

कहाँ से आते हैं कहाँ को लौट जाते हैं
क्या है  जिंदगी के उस पार ?

क्यों विभिन्न रूपों के बाद रहते "अनाम" ?
जानना है मुझको क्या है  जिंदगी का सार। #anumika

Anamika Nautiyal

रक्तिम आभा क्षितिज पर और कलरव खगों का, 
 उषा बेला में समय हो अलसाये दृगों का।

मरकत की भाँति सूर्य का तेजोमय मुखमंडल,
खुशबू बिखेरती है प्रकृति मानो कोई संदल।

देख दृश्य धरा का यह पुलकित औ' मनभावन,
धरा नहीं वरन सिंगार है यह स्त्री का संभावन।

इस मधुर बेला में खिल रहे पोखर में जलजात, 
भीनी सुगंध पुष्पों की कहीं नृत्य करते पात।

मंद-मंद बहती वायु करती नवजीवन संचार,
भोर समय में ही लेते हैं नव स्वप्न आकार।

धन्य!धन्य! हे प्रकृति मैं तुझ पर अपनी कविता लुटाऊँ, 
मैं "अनाम" नित्य प्रति तेरी सौंदर्य महिमा गाऊँ।  सुप्रभात 

#प्रकृति_की_सुन्दरता
 #अनाम 
#अनाम_ख़्याल 
#morningthoughts
#morningscenes          
#anumika

Anamika Nautiyal

मिट्टी में बीज का पड़ना 
अंकुरित होना, फ़सल बनना
फिर कई माध्यमों से 
गुज़रते हुए चूल्हे तक 
रोटी के रूप में पहुँचना; 
मानो प्रसाद हो ईश्वर का।

ठीक उसी तरह 
मन में विषय का अंकुर फूटना, 
देर तक विचार-विमर्श की फ़सल 
फिर शब्दों में गुँथ जाना ।
और अंत में पाठकों तक
पहुँचती है कविता,
हाँ ,यह भी तो ईश्वरीय प्रसाद ही है। 
बस यूँ ही एक विचार रोटी बनाते हुए 😄



#रोटीऔरकविता 
#ईश्वरीयप्रसाद 
#अनाम
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