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ashutosh anjan

दिल के उलझें बिखरें तारों को  सुलझाऊँ  कैसे,
नज़दीकियाँ  हमारें  दरमियाँ फ़िर  बढ़ाऊँ कैसे।

बहती नदी सा वक़्त  अब इम्तिहानों  में गुज़रता है,
बिन इम्तिहाँ के नाव  दिल की  पार लगाऊँ कैसे। 

सुना है! क़दम बस  महफिल में पड़ते  है  उनके,
इक  पल में  अपनी तरबियत  भूल  जाऊँ कैसे।

तन्हाई  से  रुसवाईयाँ  भी  बहुत  है  मुझें  मग़र,
सर-ए-बज़्मो  दिलचस्पी  बढाऊँ तो  बढाऊँ कैसे।

अजी! मोबाइल  के ज़मानें  में कौन  मांगता है पता,
अब ख़त लिखकर फिर हाल-ए-दिल बताऊँ  कैसे।

उसके हुस्न की जादूगरी से सिल जाते है लब मेरे,
'अंजान'अपनी कहानी मंज़िल तक पहुँचाऊँ कैसे। बहती नदी सा वक़्त(ग़ज़ल)

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Dr Upama Singh

            “बहती नदी सा वक़्त”
             अनुशीर्षक में

बहती नदी सा वक़्त
कहां है ठहरता किसी के लिए
जैसे नदी का पानी बहता रहता
वही पानी दुबारा नहीं छू सकते
जो धारा नदी की बह चुकी 
वो फिर लौट कर नहीं आएगी
ठीक उसी तरह वक़्त भी 
किसी के लिए नही ठहरता
नदी की धारा की तरह 
वक़्त भी अविरल चलती रहती है। #kkबहतीनदीसावक़्त
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Neha Pathak

*बहती नदी सा वक़्त* 
बहती नदी सा वक़्त किनारे पे मेरा घर है।
कभी ज्वार-भाटा आएगा बस यही डर है।

मैं हिम्मत हूँ और तू मेरी ताक़त है।
लहरों की हर आहट पर मेरी नज़र है।

मैं तैर कर निकल जाऊँगी उस पार साथी।
जिस पार मेरी ख़्वाहिशों का नगर है।

क़सम खाई है हमने वक़्त के साथ चलने की।
अब ना रात उतनी है और ना दूर सहर है।

'नेहा' तू सफ़र है चाहतों का ख़ुशियों का दर है।
दुनिया का क्या मुझे तो अपनी ख़बर है। #कोराकाग़ज़
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Rimjhimシ︎

कोशिश बहुत करी रोकने की 
लेकिन उसने एक ना सुनी 
पकड़ कर रखी तारिख 
लेकिन उसने खिसका दिया पन्ना 
डाँटा बहुत गुस्से में 
उसने भी अपनी अकड़ दिखाई 
समझाया उसे जी जान लगाकर 
लेकिन वो ढीठ था 
सबके पसीने छूट गए 
लेकिन वो ना रुका ना थमा 
बहती नदी सा बहता चला गया 
कोई कर भी क्या सकता था 
आखिर वो समय था  #kkबहतीनदीसावक़्त 
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Divyanshu Pathak

बहती नदी सा वक़्त ---------------------- कल! आज और फिर कल बन जाता है। जैसे बुलबुला पानी से जल बन जाता है। यहाँ बहुत आए और बहुत से चले गए। कभी तन्हा तो कभी कारवां बन जाता है।

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बहती नदी सा वक़्त
----------------------
कल! आज और फिर कल बन जाता है।
जैसे बुलबुला पानी से जल बन जाता है।

यहाँ बहुत आए और बहुत से चले गए।
कभी तन्हा तो कभी कारवां बन जाता है।

बहती नदी सा वक़्त छोड़ता निशाँ अपने!
शान्त रहता है तो कभी ज्वार बन जाता है।

इस वक़्त के कई पहलू हमने देखे हैं।
कभी गांधी तो कभी बोस बन जाता है।

किनारे पर बैठ कर रेत से खेलते रहते हो!
इंसान तो वक़्त की कठपुतली बन जाता है।

तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा वक़्त है।
'पंछी' वही है जो अहिंसा परमो धर्म् बन जाता है। बहती नदी सा वक़्त
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कल! आज और फिर कल बन जाता है।
जैसे बुलबुला पानी से जल बन जाता है।

यहाँ बहुत आए और बहुत से चले गए।
कभी तन्हा तो कभी कारवां बन जाता है।

अभिलाष सोनी

विषय :- बहती नदी सा वक़्त (02-10-2021) बहती नदी सा वक़्त हमारा, लौट के ना आएगा दोबारा। जी लो जी भर के हर पल यहाँ, सच्चा साथी यही हमारा। मिलती नहीं सोहरत उसे, जो वक़्त से कर लेता है किनारा। बहते चलो इस वक़्त की धार में, तरक्की का है यही सहारा।

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विषय :- बहती नदी सा वक़्त (02-10-2021)
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बहती नदी सा वक़्त हमारा, लौट के ना आएगा दोबारा।
जी लो जी भर के हर पल यहाँ, सच्चा साथी यही हमारा।

मिलती नहीं सोहरत उसे, जो वक़्त से कर लेता है किनारा।
बहते चलो इस वक़्त की धार में, तरक्की का है यही सहारा।

वक़्त का परिंदा रुकता नहीं, चलता रहता है निरंतर धारा।
वक़्त के साथ जो चल नहीं पाता, होता नहीं उसका गुजारा।

वक़्त बलवान, वक़्त मूल्यवान, वक़्त की चाल जैसे इशारा।
समेट लो ख़ुशियाँ वक़्त की झोली से, तोहफा यही सबसे प्यारा।

वक़्त के साथ पता चलता अपनों का और कौन है हमारा।
दिया है जिसने वक़्त पे साथ, वही सच्चा साथी हमारा। विषय :- बहती नदी सा वक़्त (02-10-2021)

बहती नदी सा वक़्त हमारा, लौट के ना आएगा दोबारा।
जी लो जी भर के हर पल यहाँ, सच्चा साथी यही हमारा।

मिलती नहीं सोहरत उसे, जो वक़्त से कर लेता है किनारा।
बहते चलो इस वक़्त की धार में, तरक्की का है यही सहारा।

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