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Sita Prasad

महफिल ख्वाबे इश्क की


काश यह शाम थम जाए,
शाम की लाली मेरा नूर बन जाए। 

तू वहाँ है, मै यहाँ ए दिलबर,
यकायक तू यहाँ प्रत्यक्ष हो जाए। 

दूरियां बर्दाश्त नहीं हर पल,
बिन अंगीठी ही अगन लग जाए। 

एक हल्की सी है सनसहाट,
हर दस्तक मेरी धड़कन बन जाए। 

जो सामने तेरा चहरा आ गया,
अब हकीकत ख्वाब न बन जाए। 

चुटकी काटकर देखूं ज़रा,
यह महफिल ख्वाबे इश्क की थम जाए। 


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Sita Prasad

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सामाजिक विकास- विकास की पिपासा 

 ( कृपया अनुशीर्षक में पढ़ें)
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सामाजिक विकास- विकास की पिपासा

रोज़ भोर की किरणों के संग, 
मन उछल पड़ता है,
उसी जोश ने हमारे समाज को,
आज इस मुकाम पर खड़ा किया।

Sita Prasad

महिला उत्पीड़न

एक तरफ जहां महिलाएँ अपने कौशल्य से आसमान छू रही हैं दूसरी तरफ आज के इक्कीसवीं सदी में भी महिलाओं का स्थान समाज में हिला- डुला है। कहीं गर्भ मैं ही अंत, कहीं पाठशाला की समस्या। अगर पढ़ी लिखी हो, तो समस्याओं की एक नई कतार खड़ी हो जाती है। मानसिक व शारीरिक शोषण के किस्से रोज़ ही अखबारों में प्रकाशित होते हैं। एक पढ़ी लिखी महिला को कई बार द्वंद्व युद्ध का सामना करना पड़ता है जब नौकरी और परिवार, ससुराल और मैका, समाज व अपनी पसंद, कई सवालों को सुलझाना पड़ता है। मैं यहां एक टिप्पणी करना चाहूंगी कि कभी खुद को किसी का मोहताज न बनाएं, न ही खुद को किसी और से बेहतर, हर एक जब अपने बलबूते पर खुद को और अपने परिवार को संभालेगा, परिवर्तन भी अनिवार्य है। हम से समाज है, समाज से हम नहीं।

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Sita Prasad

ईश्वर और मनुष्य - कुछ करने की चाह 
वह परेशान थी, क्या नहीं था घर में उसके, चैन के सिवा। ईश्वर के सामने नित गिड़गिड़ाती, "मेरा क्या होगा, भगवन!" और इसी सोच से मुस्कुराहट भूल चुकी थी।हाँ एक कमी उसके जीवन में यह थी कि, वह ज्यादा पढ़ी लिखी न थी, जिसके कारण घरवाले उसकी राय बिरला ही लेते थे। चक्रधारी यह सब देख रहा था। जान गया यकायक उसकी पीड़ा। उसकी बेटी के मस्तक में एक सुन्दर ख्याल भर दिया। उसकी बेटी वीना सुशील और शांत चित्त थी। एक अध्यापिका होने के कारण वीना , रोज़ नूतन सबक ज़िंदगी के सीखती थी। अब उसे अपनी मां का चहरा पढ़ना भी आ गया था। वीना ने मां से डिग्री का फार्म भरवाया और एक नया पन्ना उसकी मां के जीवन में जुड़ गया। वह, ईश्वर के सामने चंद आंसू आज एक साल बाद बहा चुकी है, वे खुशी के आसू हैं। आखिर नज़रिया सबका बयदल ही गया।


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Dr Upama Singh

एक समय की बात है एक बहुत ही गरीब परिवार एक गांव में रहता था। रोज़ जंगल से लकड़ियाँ काट शहर जाकर बेचते थे। उसी से उनका जीवनयापन हो रहा था। घर का मुखिया जो बहुत नेक दिल इंसान था नित्य ईश्वर की पूजा करता था लेकिन कभी उसने ईश्वर से कुछ नहीं मांगाता और मन में ही कहता हे प्रभु! कब मेरे दुःख के बदल हटेंगे। एक दिन वो जब लकड़ी काटने जंगल गया तो उससे रास्ते से गुजरते एक साधु ऋषि मिला उसने बोला की तुम रोज़ लकड़ी काटते हो इससे तुम्हारा गुजारा कैसे चलता है, उसने का मुनिवर क्या करूं गुजारा तो नहीं पाता लेकि

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               ईश्वर और मनुष्य
                   लघु कथा
                  अनुशीर्षक में       
 एक समय की बात है एक बहुत ही गरीब परिवार एक गांव में रहता था।  रोज़ जंगल से  लकड़ियाँ काट शहर जाकर बेचते थे। उसी से उनका जीवनयापन हो रहा था। घर का मुखिया जो बहुत नेक दिल इंसान था नित्य ईश्वर की पूजा करता था लेकिन कभी उसने ईश्वर से कुछ नहीं मांगाता और मन में ही कहता हे प्रभु! कब मेरे दुःख के बदल हटेंगे। एक दिन वो जब लकड़ी काटने जंगल गया तो उससे रास्ते से गुजरते एक साधु ऋषि मिला उसने बोला की तुम रोज़ लकड़ी काटते हो इससे तुम्हारा गुजारा कैसे चलता है, उसने का मुनिवर क्या करूं गुजारा तो नहीं पाता लेकि

Dr Upama Singh

ईश्वर ने मानव जाति में पुरुष और महिला दोनों को बराबर का दर्जा दिया। लेकिन वक्त के साथ सदियों से इतिहास के पन्नों से ये जगजाहिर हुआ कि कैसे पुरुष अपने पुरषार्थ के दंभ में महिलाओं को उपेक्षित कर उत्पीड़ित करने लगे। कभी कभी एक महिला ही दूसरे महिला का उत्पीड़न करने लगती है। आज घर, मोहल्ला, कॉलोनी, ऑफिस हर जगह हर समय एक महिला का उत्पीड़न होता है। अभी मौजूदा हालात बता रहें हैं कि 2021 में लगभग 46 प्रतिशत महिला उत्पीड़न में इज़ाफा हुआ है जो बहुत ही ज्यादा का चिंता का विषय और समाज के लिए शर्मनाक है। समा

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            “महिला उत्पीड़न”
             चिंतन
            अनुशीर्षक में    

 ईश्वर ने मानव जाति में पुरुष और महिला दोनों को बराबर का दर्जा दिया। लेकिन वक्त के साथ सदियों से इतिहास के पन्नों से ये जगजाहिर हुआ कि कैसे पुरुष अपने पुरषार्थ के दंभ में महिलाओं को उपेक्षित कर उत्पीड़ित करने लगे।
कभी कभी एक महिला ही दूसरे महिला का उत्पीड़न करने लगती है। आज घर, मोहल्ला, कॉलोनी, ऑफिस हर जगह हर समय एक महिला का उत्पीड़न होता है। अभी मौजूदा हालात बता रहें हैं कि 2021 में लगभग 46 प्रतिशत महिला उत्पीड़न में इज़ाफा हुआ है जो बहुत ही ज्यादा का चिंता का विषय और समाज के लिए शर्मनाक है। समा

Dr Upama Singh

            ख़्वाबों वाला इश्क़
             ग़ज़ल


रात भर ख़्वाबों में मैं चांँद में ढूंँढ़ा करती हूंँ तुम्हें।
एक तेरे चाहत में ख़्वाब में सज संँवर रिझाती हूंँ तुम्हें।।

मुमकिन ना हो उसको मुमकिन पाना है तुम्हें।
ख़्वाब दरिया के किनारों को मिला कर साथ लाना है तुम्हें।।

ख़्वाब सा है तुम और तुम्हारा इश्क़ कैसे कह दूंँ बेवफ़ा तुम्हें।
अब तो आँखों में भी ख़्वाब हकीकत में सज रास्ते में देखते हैं तुम्हें।।


यूंँ शरमा कर ख़्वाबों के आईने में देखती हूंँ तुम्हें।
ख़्वाबों को सच कर हकीकत में पाना चाहती हूंँ तुम्हें।। #kkpc23 
#कोराकाग़ज़ 
#collabwithकोराकाग़ज़ 
#विशेषप्रतियोगिता 
#similethoughts 
#ख़्वाबोंवालाइश्क़
#04 
#ग़ज़ल

Dr Upama Singh

समाजिक विकास के लिए ज्ञान और शिक्षा है बहुत जरूरी इसके बिना सामाजिक विकास रह जायेगी अधूरी धर्म जात पात से ऊपर उठकर आओ नवचेतना की शुरुआत करें बेहतर सामाजिक विकास के लिए मिलजुल कर समाज का सुधार करें

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        “समाजिक विकास”
          कविता
         अनुशीर्षक में    

 समाजिक विकास के लिए 
ज्ञान और शिक्षा है बहुत जरूरी
इसके बिना सामाजिक 
विकास रह जायेगी अधूरी
धर्म जात पात से ऊपर उठकर
आओ नवचेतना की शुरुआत करें
बेहतर सामाजिक विकास के लिए
मिलजुल कर समाज का सुधार करें

Divyanshu Pathak

मैं उस दिन सुबह सुबह पैदल ही माता के दर्शन करने के लिए चल दिया।गाँव के बाहर एक मन्दिर है वहाँ बैठा था कि जीजू का कॉल आया आजाओ यार कैलादेवी के दर्शन करने चलेंगे 9 बजे से।मैंने कहा ठीक है आता हूँ।सोचा कि घर बाइक लेने क्या जाऊँ यहीं से किसी के साथ बैठ जाता हूँ।कई लोगों ने बाइक रोकी पूछा भी कैसे घूम रहे हो कहीं जा रहे हो क्या चलो छोड़ दें।मैने सभी से मना कर दिया। मेरा मूड था कि 7 km दौड़ कर जाऊँ और सैंपऊ से रूपवास की बस पकड़ लूँगा।मैं कुछ दूर ही दौड़ पाया था कि तभी एक स्कूटी सवार लड़की सामने आती दिखाई द

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1. लघुकथा:- ईश्वर और मनुष्य
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ईश्वर हमेशा हम सभी के साथ रहते हैं।वे किसी न किसी माध्यम से हमारी सहायता करते हैं।लड़कियाँ आसानी से लिफ़्ट नहीं देतीं लेकिन उस दिन मैंने जैसे ही लिफ़्ट माँगी उन्होंने तुरन्त अपने पीछे बिठा लिया। शेष - कैप्शन में पढ़ें ----- 
मैं उस दिन सुबह सुबह पैदल ही माता के दर्शन करने के लिए चल दिया।गाँव के बाहर एक मन्दिर है वहाँ बैठा था कि जीजू का कॉल आया आजाओ यार कैलादेवी के दर्शन करने चलेंगे 9 बजे से।मैंने कहा ठीक है आता हूँ।सोचा कि घर बाइक लेने क्या जाऊँ यहीं से किसी के साथ बैठ जाता हूँ।कई लोगों ने बाइक रोकी पूछा भी कैसे घूम रहे हो कहीं जा रहे हो क्या चलो छोड़ दें।मैने सभी से मना कर दिया। मेरा मूड था कि 7 km दौड़ कर जाऊँ और सैंपऊ से रूपवास की बस पकड़ लूँगा।मैं कुछ दूर ही दौड़ पाया था कि तभी एक स्कूटी सवार लड़की सामने आती दिखाई द

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