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Divyanshu Pathak
कोराकाग़ज़ कविसम्मेलन द्वित्तीय समापन की ओर ले जाते हुए मैं आयोजक मण्डल का आभार व्यक्त करता हूँ और आज कुछ कॉकटेल लिखता हूँ आनंद लीजिए। कैप्शन में --- मैंने बस उम्मीद जताई है ---- 💐💐💐💐💐💐💐 उम्मीद है कि सब-कुछ ठीक हो जायेगा। ज़हरीली हवाओं का शोर टिक नहीं पायेगा। धूँ-धूँ कर जल रहे हैं अभी ख़्वाब आँखों में। पलकों की जलन बुझाने आँसू भी आयेगा।
Divyanshu Pathak
आँखों के तारे भर सा मैं तुम द्रष्टि-पटल पे हो प्रकाश मैं छोटा सा प्यारा पंछी तुम अनंत से हो आकाश मैं पराग तुम मधुमान हो शहद मुझे कर डालोगी मकरंद फूल से पाने को तुम डंक हिये में घालोगी दर्द सभी जो भी तेरे हैं मैं अपने उन्हें बना लूँगा टूटे फूटे स्वप्न सलोने सबको गले लगा लूँगा हैं अनुबंध जगत के बिरले कुछ अबके हैं हैं कुछ पिछले सरल सहज बंधन में लेकर मैं अपना तुझे बना लूँगा। आँखों के तारे भर सा मैं तुम द्रष्टि-पटल पे हो प्रकाश मैं छोटा सा प्यारा पंछी तुम अनंत से हो आकाश मैं पराग तुम मधुमान हो शहद मुझे कर डालोगी मकरंद फूल से पाने को
Divyanshu Pathak
कोराकाग़ज़ कवि सम्मेलन-02 ---------------------------------------------- बाँध वोटरों की आंखों पर आश्वासन की पट्टी। नेता घुस गए बाथरूम में ले साबुन की बट्टी। हास्य रस का अपना मजा है---- जब मैं छोटा था तब कहीं से ये पंक्तियाँ पढ़ीं थी और मैंने अपनी डायरी में नोट कर लीं। आज आपके साथ उन पंक्तियों को साझा करता हूँ-- कैप्शन देखें--- वर्तमान राजनीतिक दशा को बयां करती कुछ पंक्तियाँ---- आनंद लें ठीक लगे तो मुझे सूचित करें---- 💐💐💐💐💐 ज्ञानी ख़ुश है ज्ञान बेचकर विज्ञानी विज्ञान बेचकर 💐💐💐💐💐 माली सोच रहा था बैठा ठीक किया उद्यान बेचकर
Divyanshu Pathak
अब कहीं लगता नहीं दिल हम भला जाएं कहाँ? भीड़ दिखती हर जगह पर कोई अपना है कहाँ? अब फ़क़त नाते हमारे बस नाम के ही रह गए! हर कहीं चलता है पैसा प्यार अब मिलता कहाँ। अब सुबह से शाम तक चलता यहाँ प्यापार है। चौके चूल्हे हैं मिट गए चौपाल भी बाज़ार है। अब अलावों के अलावा लोग जुटते हैं कहीं! अब बैठ घरवालों के संग में बात होती है कहाँ क्या हुआ है साथ तेरे हो गया मैं क्या करूँ! मैं तुम्हारी गलतियों पे शान्ति मेरी क्यों हरूँ? ब्रह्म ज्ञानी हो गए हैं बस ज्ञान दे जाते हैं सब! कोई पीड़ा ज़ख्म पर मरहम लगाता है कहाँ? अब कहीं लगता नहीं दिल हम भला जाएं कहाँ? भीड़ दिखती हर जगह पर कोई अपना है कहाँ? अब फ़क़त नाते हमारे बस नाम के ही रह गए! हर कहीं चलता है पैसा प्यार अब मिलता कहाँ। अब सुबह से शाम तक चलता यहाँ प्यापार है। चौके चूल्हे हैं मिट गए चौपाल भी बाज़ार है।
Divyanshu Pathak
मैं माता सरस्वती को प्रणाम करता हूँ।कोराकाग़ज़ और सहयोगी टीम का सादर आभार व्यक्त करता हूँ।कवि सम्मेलन द्वित्तीय का आयोजन कर आपने उभरते हुए कवि जगत को विशेष रूप से पहचान दिलाई।चार पंक्ति आपके लिए- 💐💐💐 टूटे मन को जिसने फिर से जोड़ नया आयाम दिया। छूटी क़लम पकड़ने का जिसने फ़िर आधार दिया। 💐💐💐 सबसे डरावने दिनों के लिए ( कोरोना संकट ) 💐💐💐 संकट के बादल गहराए जीवन त्रसित हुआ सबका! तब कोराकाग़ज़ आगेआया हिम्मत का संचार किया। कोरा काग़ज़ कवि सम्मेलन 02 में आपका स्वागत है---- मैं भूमिका बनाता हूँ- मेरा साथ दीजिएगा मेरी हिम्मत बनियेगा-- 💐💐💐💐💐💐💐💐 चित्र बनाता हूँ---- बेहद प्यार करने वाले कुछ परिस्थितियों में बिछड़ गए।प्रेमिका के फ्रेंड्स प्रेमी से हाल पूछते हैं विचलित प्रेमी अपनी प्रेयसी की याद में कुछ पंक्ति लिखता है---- 💐💐💐 तेरे गाँव गली का हर इक पत्थर जानता है। पत्ता पत्ता वहाँ का मेरी रूह पहचानता है।
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