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अविनाश कुमार
रात की चाँदनी से लेकर सुबह का ख्वाब लिखता हूं पेचीदे सवालों से लेकर खूबसूरत सा जवाब लिखता हूं कभी कलयुग तो कभी त्रेतायुग का संग्राम लिखता हूं कभी ईद की ईदी तो कभी दिवाली की शाम लिखता हूं रहमत-ए-खुदा से लेकर सतपुरुष श्री राम लिखता हूं कोई मजहब नहीं लिखता हूं मैं पूरा आवाम लिखता हूं माँ के प्यार से लेकर पिता की फटकार लिखता हूं जो रहता है मेरे दिल में वही बात मैं हर बार लिखता हूं कभी इश्क तो कभी जाम लिखता हूं कभी सहर तो कभी हसीन शाम लिखता हूं . #yqdidi #नज्म़ #hindi #कविता #चाँद #1909avinash
Raushan
मुलाकात के ठीक पहले बाली रात मुलाकात के ठीक पहले बाली रात याद है तुम्हे? न तुम सोई न मुझे नींद आयी थी तुमने ख्यालों के संदूक से निकली थी कई मुरझाई हुई नज्में तुम्हारी आवाज को पाकर जिसने हरा हो जाना था कई नज्म कह डाले थे तुमने उस रात और मै चुपचाप सुनता रहा सुबह सुबह जल्दी मिलना था हमे कितना प्यार उमड़ पड़ा था न अब भी वो रात मेरे लिए वैसी ही है अब भी जगता हूं मैं पर अब तुम नज्म नहीं कहती गूगल ड्राइव के फोल्डर में मुलाक़ात तो होती है हमारी पर तुम कुछ कहती नहीं, तुम चुपचाप मुझे देखती हो और इस बार नज्म तुम नहीं,मै सुनता हूं तुम्हे पर अब कोई वाह या तारीफ नहीं करता सब कुछ बदल गया है तुम्हारे लिए पर मेरी राते वहीं रुकी हैं शायद तुम भी रुक जाते! #पहली_मुलाकात #नज्म़ #यादें #yqbaba #yqdidi #yqquotes #lovestory #नींद
अनुराग "सुकून"
नज़्म 👇 रात भर इश्क़ की पढ़ाई का क्या मतलब जो इक दिन इंतेहान में फेल होना ही था उन ख्वाबों का क्या वुजूद जो साथ में देखे जब हक़ीक़त में उनको सिर्फ टूटना ही था! हमने खंजरों के बीच से दिल निकाला था बे-निशां दिल पर निशां तो बनना ही था भीख की मुहब्बत से भले मौत चुनी हमने तेरे बाद इस आफताब को ढलना ही था उसके भी होश ठिकाने आ गये बाद हमारे हीरे को ठुकराके गये पत्थर मिलना ही था रह गये बस हम उनके यादों में ही जिन्दा एक वक्त था वो उसको तो बदलना ही था! रात-भर इश्क़ की पढ़ाई का क्या मतलब जो इक रोज़ इंतेहान में फेल होना ही था! कविराज अनुराग #नज्म़
kishori lal bror
इश्क तिजारत रुह की है लोग ज़िस्मों पर दांव लगा बैठे। मग़रुर ख़्वाब-ए-आफताब कोई चराग़-ओ-शफ़क गंवा बैठे।। ज़िस्म-ए-महताब देख कोई दिल-ए-महताब गंवा बैठे। आरज़ू , बस चार आना रही होगी वसवसा ईमान-ए-लाख लुटा बैठे।। कालिख़ पोत रखी दरम्यान नज़रों पर कमान चढ़ा बैठे। वहसीयत कौंध रही भीतर चेहरे पर मुस्कान सज़ा बैठे।। मोहब्बत-दिल्लगी, मुख़्तलिफ़ चीजें हैं क्यूं अपना अमन-ओ-चैन गंवा बैठे। मुसाफ़िर हो, अपनी डगर चलो क्यों राहों से राहें उलझा बैठे।। "किशोरी लाल" #नज्म़
Shikha Verma
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