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Rabindra Kumar Ram
" ले चल मुझे तु मुहब्बत की राहों में, मैं तुम्हें मिल सकु तुझसे तेरी बाहों में, फितरतन तु ये ख्वाबों ख्यालों की मंजिल कही वाजिब कर तो दे, वस्ल की रात में मेरी कही ठहर के पनाह पाये तुझे में. " --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram " ले चल मुझे तु मुहब्बत की राहों में, मैं तुम्हें मिल सकु तुझसे तेरी बाहों में, फितरतन तु ये ख्वाबों ख्यालों की मंजिल कही वाजिब कर तो दे, वस्ल की रात में मेरी कही ठहर के पनाह पाये तुझे में. " --- रबिन्द्र राम #मुहब्बत #फितरतन #ख्यालों #वाजिब #वस्ल #रात #ठहर #पनाह
निम्मी की कलम से
पतझड़ जैसे जीवन में जो सावन की तरह आते हैं बस मौसम की तरह ही वे लोग बदल जाते हैँ। दुख किसका सगा है?खुशी कबतक टिकी है? पर ये सुख दुख के सब पल ही लोगों की पहचान कराते हैं। ©शब्दकार निम्मी #tanha #लोग #फितरतन
Rabindra Kumar Ram
" खामोशि भरी आंखें परेशान कर रही , बात कुछ भी नहीं फिर भी बात कर रही हैं , तेरा ख्याल पालू तेरी आदतें महफूज़ रखु , तेरी गैरहाजिरी कहीं और ना होने दूं , फितरतन बात जो भी ऐसे में , तेरा ख्याल कहीं और ना जाने दू , महफूज़ तुझे कुछ इस तरह रखु मैं , तेरी आवारगी कहीं और ना होने दूं ." --- रबिन्द्र राम Pic : Pexels.com " खामोशि भरी आंखें परेशान कर रही , बात कुछ भी नहीं फिर भी बात कर रही हैं , तेरा ख्याल पालू तेरी आदतें महफूज़ रखु , तेरी गैरहाजिरी कहीं और ना होने दूं , फितरतन बात जो भी ऐसे में , तेरा ख्याल कहीं और ना जाने दू ,
Pic : Pexels.com " खामोशि भरी आंखें परेशान कर रही , बात कुछ भी नहीं फिर भी बात कर रही हैं , तेरा ख्याल पालू तेरी आदतें महफूज़ रखु , तेरी गैरहाजिरी कहीं और ना होने दूं , फितरतन बात जो भी ऐसे में , तेरा ख्याल कहीं और ना जाने दू ,
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" मत पूछ कि बेकरारी किस कदर हिसाब ले रही हैं , उठते - झूकते पलकों से मेरी खामोशि का जिक्र किया जा रहा , फितरतन ख्याल तेरा क्या ख्याल का जिक्र करने बैठे हैं , जैसे कि बिन बातों के भी तेरे ज़िक्र की नुमाइश कर रही हो ." --- रबिन्द्र राम Pic : pexels.com " मत पूछ कि बेकरारी किस कदर हिसाब ले रही हैं , उठते - झूकते पलकों से मेरी खामोशि का जिक्र किया जा रहा , फितरतन ख्याल तेरा क्या ख्याल का जिक्र करने बैठे हैं , जैसे कि बिन बातों के भी तेरे ज़िक्र की नुमाइश कर रही हो ." --- रबिन्द्र राम
Pic : pexels.com " मत पूछ कि बेकरारी किस कदर हिसाब ले रही हैं , उठते - झूकते पलकों से मेरी खामोशि का जिक्र किया जा रहा , फितरतन ख्याल तेरा क्या ख्याल का जिक्र करने बैठे हैं , जैसे कि बिन बातों के भी तेरे ज़िक्र की नुमाइश कर रही हो ." --- रबिन्द्र राम
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