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Vinay Sharma

Anand Dadhich

जमीन के टुकड़ों की दौलत.. कुछ पल की है,
हसीन से मुखड़ों की रौनक.. कुछ पल की है,
तू समझकर, अति समझदार सा भले ही दिख,
यह ताज़ी चमकती शोहरत.. कुछ पल की है!

कवि आनंद दाधीच,भारत🇮🇳

©Anand Dadhich #दौलत #भरम #kaviananddadhich #poetananddadhich #hindipoets #eveningthought

Anand Dadhich

श्रीराम नवमी की शुभकामनाएं

यकीन की दीवारों पे, नाम श्रीराम लिखेंगे,
तू मानें या ना मानें, उसीका गुणगान लिखेंगे,
हमारा पुनर्जन्म यह है या अगला पुनर्जन्म होगा,
हम तो हर जन्म बस, सियाराम सियाराम लिखेंगे!

कैसा था पुरुषोत्तम, कैसा था परिधान लिखेंगे,
कैसा थी काया, कैसा था तीर कमानलिखेंगे,
तुलसी, वाल्मीकि ने लिखा, संग संग लाखों ने लिखा,
तू गाये या ना गाये, राम श्रेष्ठ गान लिखेंगे!

कैसा था पराक्रम, कैसा था बलवान.. लिखेंगे,
कैसी थी कांति कला, कैसा था जलपान लिखेंगे,
अहिल्या, शबरी ने देखा, संग संग लाखों ने देखा,
वसुधा के हर खान पर, श्रीराम श्रीराम लिखेंगे!

कैसा था वचन पथ  कैसा था आज्ञावान लिखेंगे,
कैसा था कर्म पथ कैसा था मित्र हनुमान लिखेंगे,
विभीषण, रावण ने देखा, संग संग लाखों ने देखा,
तू जाने या ना जाने, राम को प्रणाम लिखेंगे!

कवि आनंद दाधीच । भारत।

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#NojotoRamleela

Gopal Lal Bunker

जाति
~~~~
(दोहे)
***

जीव-जीव में प्राण है, जीव-जीव में  राम |
भेद करे जो जात का, करता कर्म  हराम ||

पैदा उसने नर किया, नर ने बाँटी जात |
जाति में जाति बना, खुद की करी सुजात ||

ऊँच मिली बलवान को, नीच हुआ कमजोर |
पाके मौका हाथ में, दमन किया पुरजोर ||

भिन्न-भिन्न की जात है, भिन्न-भिन्न के देव |
भरे दंभ सब श्रेष्ठ का, करते खुश अहमेव ||

~ गोपाल 'साहिल'




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Gopal Lal Bunker

🌼दोहे🌼

~ पेड़ ~
 
चलो लगाये पेड़ हम, मिलकर चारों ओर |
छाये हरियाली धरा, हो मन देख विभोर  ||

बीज बिना बनते नहीं, सुंदर वन के पुंज |
पेड़ों के बिन कब बनें, शीतल छाया कुंज ||

पौधे साथी साँस के, ताजा मिले बयार |
कण-कण बसंत झूमता, धरती खिले अपार ||

फूल मिले खुशबू लिए, फल मिलते रसदार |
पाता सारी वस्तुएँ, जीव-जगत संसार ||

घर सजता है पेड़ से, मन भरता आनंद |
परहित है सब वारता, चाहे हो मकरंद ||

~ गोपाल 'साहिल'



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Gopal Lal Bunker

यौवन
(दोहे)
~~~~

यौवन है वरदान रे, करो सभी सदकाम |
तुम भी करके देखलो, होंगे सारे काम ||

यौवन बीता जा रहा, जानो इसका मोल |
बैठे-बैठे खो रहे, समय बड़ा अनमोल || 

देह तुम्हारी ये सजी, यौवन मिला सहेज |
रहो निरोगी तुम सभी, आनन चमके तेज ||
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Gopal Lal Bunker


अंतर
***

अंतर के कारण 
मिलता है हमें बाहरी आवरण
और बाहरी आवरण
कितना झकझोर देता है दूसरों के अंतर को....

कितना अच्छा होता 
अगर अंतर से अंतर मिले होते
तो फिर परवाह नहीं होती
उन आवरणों की 
जिन पर हम छाप लगा देते हैं
अपने अंतर की....

जबकि अंतर बना है अंतर्यामी से
और अंतर्यामी को भी हमने पहना दिए हैं आवरण
दूर कर अपने अंतर को अंतर्यामी से....

फिर भी उम्मीद है 
महशूस कर हम अंतर से अंतर को
तोड़ डालेंगे अंतर के आवरण को
और मिला देंगे अंतर से अंतर को....|

~ गोपाल 'साहिल'

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Gopal Lal Bunker

अभिलाषाएं
~~~~~~~~

अभिलाषाएं
फूल है मन के,

जो खिलते हैं
कर्मभूमि के बगीचे में
श्रम की शाखों पर
काम के पौधों से,

मिलते हैं सबको
जब भी इनको सींचा जाता है
शरीर की स्वेद रक्त धारा से,

सफलता का मीठा फल बनके 
जज्बे वाले मेहनतकश
जीवन को खुशियों से महकाने |

~ गोपाल 'साहिल'






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Ritujoshi

Anand Dadhich

अगहन / मार्गशीर्ष मास

आया मास अगहन.. 
श्रीकृष्ण रूपम.. 
करो देव पूजन.. 
श्रेष्ठ अध्यातम। 

कहता धर्म सनातन.. 
युमुना स्नान उत्तम.. 
करो नित वंदन.. 
श्री कृष्ण अभिनंदन।

आया मास अगहन.. 
लगे सृष्टि उपवन.. 
करो नित कीर्तन.. 
मनभावन नर्तन। 

आया मास अगहन.. 
नये विहग विहंगम.. 
करो भक्ति पावन.. 
मिटे सब क्रंदन।

कवि आनंद दाधीच । भारत

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