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सुसि ग़ाफ़िल
खुरचनों के कंकाल पर कपाल रख कर बैठा हूं सुबह सवेरे रौंदे गए अधिकार लेकर बैठा हूं आई है हिस्से में सूखे के पतों की नस मरहम के लिए हाथ में कपास के फोहे लिए बैठा हूं जड़ से आया है दर्द फुटकर बहार और मैं सीने पर गुलाब लिए बैठा हूं रहम कर भी लोग खुदा ना जाने में क्या क्या हिसाब लिए बैठा हूं // खुरचनों के कंकाल पर कपाल रख कर बैठा हूं सुबह सवेरे रौंदे गए अधिकार लेकर बैठा हूं आई है हिस्से में सूखे के पतों की नस
Sarita Shreyasi
चलो खुश हो लो तुम, नहीं दूँगी मैं उलाहना कोई, न पूछुंगी कोई प्रश्न कि क्यूँ मन की बात बतायी नहीं। न आज,याद दिलाऊंगी कि अंतिम बार कब थी रोयी, न कहूँगी तुम्हें ढूंढ लाने को,मानवता की मुस्कान खोयी। मैं नहीं समझ पाती जटिल विचारों में उलझी विद्वता, और गूढ दर्शन, इतना ही जान पाती हूँ कि ये ख्यालों की खुरचन है, बिना समझे जीवन के साथ मुस्कुराने में अड़चन है। मुस्कान मानव की जरूरत नहीं, सरल मन में खिली इंसानियत है, जबतक इसे जरूरत और चाहत बना कर रखेंगे, पाने की जद्दोजहद में, खुद से ही लड़ते रहेंगे। इसलिए मुझे कहीं दूर नहीं जाना, बस बंद आँखों के पीछे से गहरी खामोशी में उतर जाना है, अपनी रोशनी में देखें तो खुद के अंदर ही ये खजाना है। चलो खुश हो लो तुम, नहीं दूँगी मैं उलाहना कोई, न पूछुंगी कोई प्रश्न कि क्यूँ मन की बात बतायी नहीं। न आज,याद दिलाऊंगी कि अंतिम बार कब थी रोयी
Shree
सुनो, तन्हाइयों में तेरी याद बड़ा परेशान करती है... बीती बातों की बारात बिन बुलाए बेवक्त ले आती है, सांसें तेज, आंखें नम, होंठ सिले... दिल धड़कता है, मासूम आदतन पुराने ज़ख्मों के नासूर ठंडे करता है, फिर, खुरचने बैठ जाता, उम्मीद के झालर सजाता है ना हिचक, ना हितार्थ थोड़ा... ना थोड़ी रहम खाता है, कौन सी रिहाई... रिवायत खुद को देता, हैरान होता है, दूर जाना है मुझे, अनगिनत आधे किस्से ना दोहराना है! सुनो, तन्हाइयों में तेरी याद बड़ा परेशान करती है... बीती बातों की बारात बिन बुलाए बेवक्त ले आती है, सांसें तेज, आंखें नम, होंठ सिले... दिल ध
AK__Alfaaz..
शुक्ल पक्ष की, सुहागन पूर्णिमा, सी वो, बिखरती रही, भूमि के आलिंगन को, और..चाहती वो, सिमट जाना, भोर की बाँहों मे, उसने, कभी नही चाहा, कुछ प्रश्नों को, उत्तरित करना, वो सदा, उन्हें माथे की बिंदिया बना, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #अश्रुओं_का_उपवास शुक्ल पक्ष की, सुहागन पूर्णिमा, सी वो, बिखरती रही,
AK__Alfaaz..
प्रीत यज्ञशाला मे, प्रेम यज्ञ की, पावन वेदिका के समक्ष, सप्तपदी के, सातों फेरों मे बँधकर, त्रिपता, चल पड़ी समर्पण की, कच्ची पगडंडियों पे, श्वाँस के ढ़लते सूरज की, किरणों के बीच, हाथ थामें अपने सौभाग्य का, लेकर आशीष, सौभाग्यवती भवः का, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #पारिजात_परिणिता प्रीत यज्ञशाला मे, प्रेम यज्ञ की, पावन वेदिका के समक्ष, सप्तपदी के,
AK__Alfaaz..
किश्तों मे मिली, जीवन की प्रकृति, परिस्थितियों का ईंधन बन, रूढ़ियों का निवाला होकर, पेट भरती रही, परम्पराओं के, स्पर्शी नाखूनों की, खुरचन से, आत्मा की देह पर बने निशान, कच्ची उम्र में, दुपट्टे तले, समर्पण की चाभियों के, गाँठ बाँधे, अबोध रहीं वो, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #सूतक_स्त्री किश्तों मे मिली, जीवन की प्रकृति, परिस्थितियों का ईंधन बन, रूढ़ियों का निवाला होकर,
Anil Pareek
"भूख" (Caption पढ़ें) उस बच्चे की किलकारी में, उस माता की लाचारी में, ज़मीं पर पड़ी खुरचन को, उठाने की तैयारी में, मरती हुई आस खूब देखी है, साहब मैंने भूख देखी है
Rooh
Read full poem in the caption शापित प्रेम Rest Zone सुना है.. एक लड़की ने आत्महत्या कर ली देह और आत्मा को अलग कर दिया उसके नाखूनों मे थे सूखे खुरचन
Anamika
फटी पुरानी तस्वीर देखी ऐसे मेरी मधुमेह की खुरचन हो जैसे। #खुरचन #मधुमेह #तस्वीर #यादें_पुरानी_बातें #योरकोटऔरमैं #तूलिका
Swarima Tewari
रास्तों पर निशान (full in caption) मैं कहीं भी जाता हूूँ किसी से मिलता हूूँ गर मुझे ज़रा भी महसूस होता है कि मुझे अच्छा महसूस हो रहा है तो मैं वहाँ जम जाता हूूँ मैं जानता