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BANDHETIYA OFFICIAL
अनसुना, अनदेखा करने की लत ऐ अनमने ! मन भर भारी पड़ जानी जो तू सुने । है सहारा टुच्चों -लुच्चों का चालू ! पुर्जा -पुर्जा हो जाना वो भी जादू, जलवा अपना खास तू आंके,तने। जो भरोसा है वो जाये गड्ढे में, खूब तू बिलखे अपने अड्डे में, हो बिगाड़ खुद से ही, क्या बात बने ? ©BANDHETIYA OFFICIAL #अनमने ! #walkingalone
Parasram Arora
कितने अपने थे वो रिश्ते लेकिन सब पराये निकले हम हवा को यु ही गले लगाते रहे मानाकि जरूरी हैँ छत एक घर के लिए एक छत तले रहने को लेकिन घर तो नहीं कहते रिश्ते निभाने की रीत यही हैँ शायद कभी कभी अपनों से शिकायत करने को बेजा तो नहीं कहते रिश्ते अनमने से
Qamar Abbas
चले आओ मेरी जिंदगी में हमेशा के लिए मैं तुम्हारा रहूंगा ये वादा है मेरा हमेशा के लिए ©Qamar Abbas #अनमनेसेभाव Anjali MM Mumtaz Vivek Dixit swatantra gudiya SURAJ PAL SINGH
kavi manish mann
विरह वेदना में जलता हुआ जब भी कलम उठाता हूंँ, सिर्फ तेरे बारे में लिखता हूंँ, विस्मृत हो जाती हैं संवेदनाएंँ सारी फूट पड़ती है कलम से अश्रुधारा। ___💔💔 💔___ जब तुमसे दूर होता हूँ, शब्द खो जाते हैं। चलती है निरर्थक क़लम, लिखती नहीं कुछ, बस छोड़ जाती हैं। अनमने शब्द, जिन्हें पढ़ने में, सुबह शा
Shree
चुप रहता है किसी से कुछ नहीं कहता ये मन अक्सर आसपास बदलता देखकर सोचता है। चुप रहता है बड़ी-बड़ी बातों में उलझा ये मन अक्सर अनमने मानकर समझौता कर लेता है। चुप रहता है फिर चुप्पी की वजह ढूंढता ये मन अक्सर दुनियादारी में खो, दुनिया से उचटता है। चुप रहता है किस्मत के इम्तिहान देकर थका ये मन अक्सर फैसला ना सुना कर, यूं ही मान लेता है।— % & चुप रहता है किसी से कुछ नहीं कहता ये मन अक्सर आसपास बदलता देखकर सोचता है। चुप रहता है बड़ी-बड़ी बातों में उलझा ये मन अक्सर
रिंकी✍️
तपाक से रोटी चकले पर बेली और सटाक से तवे पर बेलन पर बैठ गई उसकी हथेली बेलन– चकले की सहेली थोड़े सने आटे हाथो में थोड़े अनमने ढंग से लगे उसके कुछ बालों में बन रहे है हाथों में कुछ गोल गोल से एक बराबर बनाए गये जैसे तोल मोल के फिर बेलन –हाथो का कमाल घूम रहा चकले पर जैसे कोई थाल। गर्म– गर्म ,नरम –नरम से .... तवे पर सिकती तेरी हाथो की रोटी चूल्हे से निकली ✍️रिंकी ऊर्फ चंद्रविद्या तपाक से रोटी चकले पर बेली और सटाक से तवे पर बेलन पर बैठ गई उसकी हथेली बेलन– चकले की सहेली थोड़े सने आटे हाथो में थोड़े अनमने ढंग से लगे
Shree
हम चले भाव अंबार लेकर, जाने कितने अनमने जज़्बात लेकर चल चले हैं अनकहे अल्फाज़ लेकर। हम चले हैं चलने को, जाने कौन से नए-पुराने ख्वाब लेकर चल चले हैं जाने कहां-कहां पहुंचने। गुण-निर्गुण के बोझ छोड़कर, अप्रत्याशित अनैतिक सोच छोड़कर, स्वयं की खोज में हम अब तत्पर होकर। अंतर्मन में बोध लेकर, अबाध्य इच्छाओं की ओर अग्रसर चल चले हम, अहम की ही निवृत्ति को। चल चलें ♾️ -------- हम चले भाव अंबार लेकर, जाने कितने अनमने जज़्बात लेकर चल चले हैं अनकहे अल्फाज़ लेकर। हम चले हैं चलने को, जाने कौन से नए-
Anil Ray
जलती थी शिकायत अनिल अनल-सी अब अपने ही ख्यालों में खोने लगा हूँ। देखें नही कोई आँखें मेरी अश्रुधारा को यही सोचकर मैं एकांत में रोने लगा हूँ। पीकर विष अब खुशी मनाता शिव-सा गहरी साँसों से शाम-सा ढ़लने लगा हूँ। परिचित कुछ परिचय सनातन रूप का मैं एक नवव्यक्तित्व में निखरने लगा हूँ। विजय पताका लहरा, इच्छा सरिता पर बिनज्वारभाटा सा समुद्र बनने लगा हूँ। गिला-शिकवा भी, खुद ही से कर लेता मैं खुद को खुद से ही, बहलाने लगा हूँ। मानना और जानना अलग है मुसाफ़िर अब मैं आनन्दस्वरूप को पाने लगा हूँ। सीखता हूँ आपसे मैं नादान! बहुत कुछ होकर अभिप्रेरित थोड़ा लिखने लगा हूँ। खोजता सत्य हरपल, कलम-किताब में अब कुछ धुंधले चेहरे भी, पढ़ने लगा हूँ। सहर्ष! पहन लिया हार तुम्हारी जीत हो! अल्प! ही सही पर अब बदलने लगा हूँ। ©Anil Ray 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 🌹🌹शुक्रिया दोस्तों 🌹🌹 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 बेबस मन को लेकर बस बेकलम सा मैं कोरा कागज-अरूचि स्याही और अनपढ़ दिमाग़
Vandana
रूठी हुई हंसी को मना लेते हैं चलो फिर से रेत में एक घर बना लेते हैं,,,, फूलों के शहर में फिर से गुलिस्ता बसा लेते हैं ख्वाबों की कश्ती को लहरों में चला लेते हैं,,,, रूठी हुई हंसी को मना लेते हैं चलो फिर से रेत में एक घर बना लेते हैं,,,, फूलों के शहर में फिर से गुलिस्ता बसा लेते हैं ख्वाबों की कश्ती को
मुखौटा A HIDDEN FEELINGS * अंकूर *
*आखिरी जज़्बात* **************** तर्को के मरुस्थल में सिमटे हुए जज़्बात हमेशा आखिरी ही रहे सांसे सी गिनते रहे खुद को खुलकर कभी जता ही नही पाए... प्रश्नों के किनारो पर भावों की कतारें थी थके थके सपने डगमगाती सी सड़क पर लड़खड़ा कर चले सोची थी जो मंजिल वो छू नही पाए …... गुमनामी के घेरे में पनपते रहे संशय ख्वाबों को लिए ख्यालों के शहर में , अनमने ही बसे , उन कच्चे से घरों में वो रह नही पाए... परछाईया सपनों की थी पर चाहतें अपनी भी थी अनगिन सी वो आशाएं कुछ पल की थी मेहमां बस तकते रहे उनको संग अपने कभी ठहरा नही पाएं..... एक अनसुलझी पहेली अधूरी सी कहानी एक सच्ची सी जुबानी थक गए अल्फ़ाज़ दबे रहे ,रुके रहे खुल कर तो कभी बतला नही पाए........ गर लफ्ज़ मिले कभी तो वो अधूरा सा कथानक वो अनछुई सी कहानी लिखगे अलग से उतर जायेगी तब तलक उन तर्को की थकान… जिनको कभी फुसला नही पाये …हम .!! ©DEAR COMRADE (ANKUR~MISHRA) *आखिरी जज़्बात* **************** तर्को के मरुस्थल में सिमटे हुए जज़्बात हमेशा आखिरी ही रहे सांसे सी गिनते रहे खुद को खुलकर कभी जता ही नह