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Sangeeta Kalbhor
नकोच काही चिंता अन् नकोच काही गुंता नको नकोच रे देवा माणसाची अशी कुंठा दिलेस ह्रदय कोमल भावही कोमल असू दे नयनातील रम्य दृष्टी तुझ्या नजरेने दिसू दे देऊ दे हाक अंतःर्आत्म्याला ओ मात्र तू दे आलेच काही अशुद्ध मनात दूर वाहून तू ने दे चपराक अशी झापड उघडावी आळसाची बहरावी अशी मती नवीनवेली पाने पळसाची आचमन करुन भावनांचे भाव मनी झिरपू दे जे जे चांगले ,उदात्त खिरापत तयांची वरपू दे आज आत्ता आणि आत्ताच जगणे ध्यानी घेऊ दे ओंजळ भरभरून सुखाची दुःखालाही कवटाळू दे नकोच रे काही काही चिंता नकोच कसला गुंता भिडायला येऊ दे माणसाला माणुसकी न सोडता..... मी माझी..... ©Sangeeta Kalbhor #fisherman नकोच काही चिंता अन् नकोच काही गुंता नको नकोच रे देवा माणसाची अशी कुंठा दिलेस ह्रदय कोमल भावही कोमल असू दे नयनातील रम्य दृष्टी त
Ƈђɇҭnᴀ Ðuвєɏ
हर दर्द सहे हंसकर जबतक वो, लगती सबको बेचारी है, हो जब बात आत्मसम्मान की, फिर बन जाती दुर्गा नारी है कर देती है बलिदान खुद को बस अपनों की खुशी के लिए समझे ना कीमत हर कोई इसकी, देती जाने कितनी कुर्बानी है हर फर्ज़ निभा जाती, हर बार झुक जाती, फिर भी जाने क्यूं सबकी अराति है बस प्यार के दो बोल ही काफी है उसको फिर देखो नारी कितनी प्यारी है कभी मोम सी पिघल जाए, कभी ज्वाला सी धधक जाती पर हो जाए जब हद से पार व्यभिचार, फिर वो बन जाती झांसी की रानी है अपने घर के बगिया की वो कोमल ठंडी छाया है, करो सदा सम्मान उसका, चलता है संसार उससे, मौत भी उससे हारी है.... ©Ƈђɇҭnᴀ Ðuвєɏ #womens_day हर दर्द सहे हंसकर जबतक वो,लगती सबको बेचारी है, हो जब बात आत्मसम्मान की,फिर बन जाती दुर्गा नारी है कर देती है बलिदान खुद को बस अ
||स्वयं लेखन||
ॐ नमः पार्वती पतेय हर हर महादेव! एक केशर विलेपित कोमल कमल राजकन्या, शोभित न्यारी ललित ललाट, दिव्य छविधारी गौरी प्यारी। दूजे शोभित हैं भभूत,विषधर नीलकंठ मुंडमाल से भरा कंठ, धारण किए चंद्र चमक रहा मस्तक, जटाधारी केश,भाल त्रिनेत्र बर्फाच्छादित निवास क्षेत्र। पर्वतपुत्री शोभित न्यारी कनक बसन कंचुकी सजाए, स्वर्ण आभूषण शोभा भाए, हृदय में शिव को बसाए, एक ही हठ वर बने शिवशंकर जाती कैलाश शिखर निष्ठावान प्रेम संकल्प लिए शैल सुता पूजती शिवलिंग, अन्न जल त्याग प्रेमरस भींग, वैरागी शिव के हृदय में कर प्रेम जागृत, किया शक्ति ने स्वयं को समर्पित। ©||स्वयं लेखन|| ॐ नमः पार्वती पतेय हर हर महादेव! एक केशर विलेपित कोमल कमल राजकन्या, शोभित न्यारी ललित ललाट, दिव्य छविधारी गौरी प्यारी।
Manya Parmar
Pushpvritiya
कुछ यूँ जानूँगी मैं तुमको, कुछ यूँ मैं मिलन निबाहूँगी......! सुनो गर जनम दोबारा हो, मैं तुमको जीना चाहूँगी..........!! चाहूँगी मैं जड़ में जाकर जड़ से तुमको सींचना.. मन वचन धरण नव अवतरण सब अपने भीतर भींचना..... रक्तिम सा भ्रुण बन कर तुम सम, भ्रुण भ्रुण में अंतर परखूँगी..! मेल असंभव क्यूँ हम तुम का, इस पर उत्तर रखूँगी....!! पुछूँगी कि किए कहाँ वो भाव श्राद्ध कोमल कसीज, खोजूँगी मैं वहाँ जहाँ बोया गया था दंभ बीज... उस नर्म धरा को पाछूँगी, मैं नमी का कारण जाचूँगी.......!! मैं ढूंढूँगी वो वक्ष जहाँ, स्त्रीत्व दबाया है निज का, वो नेत्र जहाँ जलधि समान अश्रु छुपाया है निज का....! प्रकृत विद्रोह तना होगा, जब पुत्र पुरुष बना होगा..... मैं तुममें सेंध लगाकर हाँ, कोमलताएं तलाशूँगी, उन कारणों से जुझूँगी.... मैं तुमको जीना चाहूँगी......!! अनुभूत करूँ तुमसा स्वामित्व, श्रेयस जो तुमने ढोया है... और यूँ पुरुष को होने में कितने तक निज को खोया.....! कदम कठिन रुक चलते चलते कित् जाकर आसान हुआ, हृदय तुम्हारा पुरुष भार से किस हद तक पाषाण हुआ.....!! मैं तुममें अंगीकार हो, नवसृज होकर आऊँगी, मैं तुमको जीना चाहूँगी........ फिर तुमसे मिलन निबाहूँगी........!! @पुष्पवृतियाँ ©Pushpvritiya कुछ यूँ जानूँगी मैं तुमको, कुछ यूँ मैं मिलन निबाहूँगी......! सुनो गर जनम दोबारा हो, मैं तुमको जीना चाहूँगी..........!! चाहूँगी मैं जड़ में
Kailas Tidke
Nature Quotes फुलापेक्षा फुल देणारे हात कोमल होते../ ओठांची गरजच नाही पडली नाही डोळे एकमेकांशी बोलत होते..// ©®कैलास ©Kailas Tidke #NatureQuotes #कोमल #फुल
संवेदिता "सायबा"
शीर्षक - माँ हे माँ! तुम निर्मल-कोमल हो, इसका तात्पर्य नहीं, अबला। है सहन-शक्ति तुझमें इतना, नवजीवन करती सृजन देख! माँ! तुम मेरी श्रद्धा हो! हो त्याग सरलता की मूरत, हे जननी! हम सब तेरे ऋणी, करती न्योछावर अंग देख! कैसे निर्धारित करें कोई, हो 'मातृ दिवस' बस क्यों एक दिन? मेरे तो प्रतिदिन तेरे माँ, मुझ पर वारे हर रंग देख! ममता के आँचल से हे माँ! इस जग से हमें बचाते हो, माँ बना रहे आशीष तेरा, सर्वस्व समर्पित चरण देख! हमने तुझको प्रतिदिन देखा, जीवन की चक्की में पिसते! बस एक दिन तुझे समर्पित हो, क्यों समझे ना जन मन देख! माँ तुझ पर वारूँ हर एक पल, जब तक चलती है श्वास मेरी! हे माँ मैं तुझसे अलग नहीं, तेरी प्रतिछाया है तन-मन देख! हे माँ तुम पर मैं लिख दूँ क्या, रचना तुमने तो मेरी की! हर नारी में तुम विद्यमान, इस रचनाकार का संग देख! ©संवेदिता "सायबा" शीर्षक - माँ हे माँ! तुम निर्मल-कोमल हो, इसका तात्पर्य नहीं, अबला। है सहन-शक्ति तुझमें इतना, नवजीवन करती सृजन देख! माँ! तुम मेरी श्रद्धा ह
Anil Ray
हसीं मोहब्बत के लिए कुछ अरमान थे सोचा इकरार प्यार का आज फूल दूंगा उसको.. देख रूबरू मेरी उस हसीं मोहब्बत को फूल के सामने हसीं फूल अब फूल दूं किसको.. मोहब्बत से खूबसूरत इज्जत व खुशी भूल जिस्म रूह से मिलन अमर कर दूं प्रेम को.. इबादत में जैसे खुदा मिल गया है मुझे झुकाकर सिर अपना रब माना है यारों उसको.. ©Anil Ray 💞🌷जिस्म रूह से मिल गया🌷💞 हँसना-मुस्कुराना लबों का गुनगुनाना बिन मोबाइल ही तुझसे बात करना.. देखकर मुझे दोस्तों! ने पूछ ही लिया अनिल! क्या त