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श्रीमंत हेमंत मानकर
दोन 3ांकी मराठी नाटक "चिंधी बाजार"*** गुंतागुंत. तंतोतंत.. सुटका?. कधी ❓.. लेखक श्रीमंत हेमंत मानकर मराठी नाटक
Krushnarnav
ज्या कुशीत सारं दुःख विसरता यावं... ते आभाळच रुसून बसल्यावर... अमावस्येचा शाप लाभलेलं जगणं घेऊन बिचाऱ्या चंद्रानं नेमकं कुठं जावं... ©Krushnarnav चंद्र #अबोल_प्रेम #चंद्र #प्रेम #premkavita #प्रेमकविता #मराठीकविता #मराठीप्रेम #मराठीशायरी #मराठी #dusk
अल्पेश सोलकर
लहानपणी चंद्र माझा ' मामा ' होता आता मामाच्या पोरीत मला ' चंद्र ' दिसू लागला लहानपणी चंद्र माझा मामा होता आता मामाच्या पोरीत चंद्र दिसू लागला © अल्पेश सोलकर #yqtaai #yqmarathi #yqquotes #मराठी #चंद्र #ती
Arora PR
स्वप्नलोको के प्रलोबन मुझे कभी सममोहित नहीं कर सकते क्योकि मैं हर स्वप्न कोबन्द आँखों का नाटक ही समझता हूँ ©Arora PR नाटक
Vrishali G
जीवनाच्या नाटकात सहभाग सगळ्यांचा असतो पण आपली भुमिका नाही वठली तर सारा तमाशा होऊन जातो नाटक
अज़नबी किताब
नाटक.. रंगमंच... कलाकार... कला... दर्शक.. कुछ ऐसा हुआ, में रंगमंच पे खड़ी थी, और मेरी कला मेरा हाथ थामे | दर्शक मेरी कला से मुझे पहचानते थे.. क्या खूब कला थी, खुदा की देख हुआ करती थी | एक बार बोली बात, में जमी को ख़त्म हो ने पर भी निभाती थी, कला थी.. वचन निभाने की, नाटक बन गयी.. रंगमंच पे उस खुदा के, में आज एक कटपुतली बन गयी... वचन निभाती नहीं, ऐसा सुना है मेने, दर्शकों से | क्या कहु, कला खो गयी, पर ये कला उनके लिए कायम है, जो सही में आज भी वचन को समझते है | कला खुदा की देन होती है, खुदा भी ख़ुश होते होंगे मेरे वचन ना निभाने से.. -अज़नबी किताब नाटक..
Babli BhatiBaisla
झूठे और ओछे मक्कार महात्मा को कोई नहीं पूछता काले पड़ गए मैले मनको को कोई नहीं पूजता आर्यो की धरती पर शास्त्रों का ऊंचा स्थान है भारत मां के शास्त्रियों की विश्व में अलग पहचान है लाल बहादुर शास्त्री हो या धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री दोनों ने साबित कर दिखाया गरीबी नहीं पिछाड़ती महानता में पिछड़ जाते हैं धनाढ्य भी नीयत से बहुत मूर्ख लगते हैं भूख हड़ताल का नाटक करते हष्ट-पुष्ट काटा है लम्बा सफ़र आंखें मूंद कर अनपढ बहुत थे पढ़ कर समझ गए सभी जयचंद और शकुनि कौन थे बबली भाटी बैसला ©Babli BhatiBaisla नाटक
Vishal Chavan
पौर्णिमा... डोळे भरुन बघून घेतो, सजलेलं चंद्रबिंब.. मन भरून जगतो, होतो आनंदात चिंब... पूनवेच्या चंद्रासम, सजू दे उपेक्षितांच आयुष्य.. अस्तित्वावर तलवार ज्याच्या, मिळो त्याला भविष्य... चंद्र शिंपण करत फिरतो, चांदणं वत्सल चंदेरी... चंद्र आहे हा विश्वास असुदे, आली रात्र जरी अंधारी.. अमावस्येला असतो तो, तुला तो विसरत नाही.. एक दिवस विश्रांती घेतो, विश्रांती घेतो; मरत नाही... 17-12-2021 Vishaal/Aadinaath ©Vishal Chavan चंद्र