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Pushpvritiya
बदला तो ज्यादा कुछ नहीं था, हाँ.......कुछ सड़कें पक्की हो गई थी, "फूस" की जगह छप्परों पर "खपरैल" आ गए थे..... नाशपाती के बागानों के "बाड़" ऊंचे हो गए थे और महाशय की "आई बी" जीर्ण शीर्ण मिली..... अरे हां और वो काका काकी..जो लकड़ी के चुल्हे पर की दाल पकाकर ला दिया करते थे, समय चक्र ने उन्हें लील लिया था.... एक और बात गौरतलब थी.. .बंदरों की "संतति" आशातीत बढ़ी थी...और व्यवहार "मानवीय" लग रहे थे.... बच्चों का "उत्साह" वैसा ही जैसा "तेरह वर्ष" पहले मेरे भीतर था..... नेतरहाट की "यात्रा".... "महाशय" के साथ.... "बाइक" पर.... "हमारा बजाज" के ऐड पर "अभिनय" करते हुए........ वही जंगलों-पहाड़ों के मध्य से गुज़रते रास्ते.... वही "सुकून" की हवा....वही "शांति" की अनुभूति....वही "सूर्यास्त"...कुछ सिखाता हुआ....वही "सूर्योदय".....कुछ जगाता हुआ.... "नेतरहाट....एक संस्मरण" वर्षों पूर्व लिखने की "सोची" थी...उस सोच को "शब्द" मिले "कच्चे-पक्के" से...... कुछ "भुल" गई.... कुछ "याद" रहा...कुछ "समेट" लाई...कुछ "छूट" गया........ @पुष्पवृतियां . . ©Pushpvritiya बदला तो ज्यादा कुछ नहीं था, हाँ.......कुछ सड़कें पक्की हो गई थी, "फूस" की जगह छप्परों पर "खप
Vedantika
वो भटक रहा है रोटी के लिए दर-ब-दर एक लाग़र ज़िस्म की जिम्मेदारी बाकी है ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ आज का शब्द है "लाग़र" "LaaGar" जिसका हिन्दी में अर्थ होता है कृश, दुबला-पतला, शीर्ण एवं अंग्रेजी
Sarita Shreyasi
पुरानी आलमारी से, स्कूल के दिनों के कुछ जीर्ण-शीर्ण किताब निकले, किताब क्या थे,कहिए कि मुस्कुराते बचपन के बिसरे ख्वाब निकले, गर्द भरे पीले पन्नों से, नादान ख्वाहिशों के सूखे महकते गुलाब निकले, जी चाहा,अंधेरे में ठंडी राख से आज फिर कोई माहताब निकले। पुरानी आलमारी से,स्कूल के दिनों के कुछ जीर्ण-शीर्ण किताब निकले, किताब क्या थे,कहिए कि मुस्कुराते बचपन के बिसरे ख्वाब निकले, गर्द भरे पीले पन
CM Chaitanyaa
" इच्छाधारी इंसान " इच्छाधारी इंसान एक समय की बात है, ‘मनुष्य‘ नामक वन में एक असुर रहता था जिसका नाम था ‘मन‘। मन उस वन का
CM Chaitanyaa
सृजन करना किसी वस्तु का आसान बात नहीं, जैसे कोई स्त्री नौ मास तक रखती है गर्भ में, शिशु को ठीक वैसे ही एक कलाकार भी तो, अपने मस्तिष्क रूपी गर्भ में सहेज रखता है, उन सभी विचारों को जो ही जन्म देते हैं फिर, कला रूप में एक शिशु को करते हैं पालन, सींचते हैं उन्हें उतने प्रेम से एक माँ की तरह, जैसे भक्ति देख न सकी थी ज्ञान वैराग्य बूढ़े, उसी तरह कलाकार भी तो नहीं देख सकता, अपनी कला को जीर्ण-शीर्ण और माँगता है, अनश्वर भीख क्योंकि वो माँ नहीं देख सकती, उस शिशु को बलि चढ़ते हुए ! सृजन करना किसी वस्तु का आसान बात नहीं, जैसे कोई स्त्री नौ मास तक रखती है गर्भ में, शिशु को ठीक वैसे ही एक कलाकार भी तो, अपने मस्तिष्क रूप
Insprational Qoute
विरह के योग में जी कर भी खत पिया को लिख रही, वापसी का कोई पता नही फिर भी राह को तक रही, सम्पूर्ण गीत अनुशीर्षक में पढ़े विरह के योग में जी कर भी खत पिया को लिख रही, वापसी का कोई पता नही फिर भी राह को तक रही, नैनो में बहती अश्रु की धार है, पलकों पर सजा इंतजार
AK__Alfaaz..
भोर भये, उसके नैनों की सीपियों से, झरे मोती, बिछौने पर पड़ी, सिलवटों की लहरों मे खो गयें उम्मीद के, बंद झरोखों की, दराजों से, झाँकती पूनम की रात, छूकर उसके, लाल महावर लगे पाँव, उसकी फटी ऐंड़ियों की, दरारों मे, तलाशती है, उसके खोये सपनों की राह, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #थोड़ी_सी_धूप भोर भये, उसके नैनों की सीपियों से, झरे मोती, बिछौने पर पड़ी, सिलवटों की लहरों मे खो गयें
AK__Alfaaz..
अगहन का महिना, शुरू हो चला, आज, दिन के सारे काम निपटा के, त्रिपता, जा बैठी, दरीचे से झाँकती, गुलाबी सर्दी की, सुनहरी धूप मे, अपनी साँसों के, आसमानी ऊन के लच्छे लिए, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे.. #क्रोशिया अगहन का महिना, शुरू हो चला, आज, दिन के सारे काम निपटा के,
Anita Saini
तुम जानते हो ना जीर्णोद्धार हो जाता है हर ऐतिहासिक जीर्ण शीर्ण स्तंभ या किले द्वार और राजप्रासाद आदि का। होते देखा होगा ना उनका नवीनीकरण! भूतकाल की त्रुटियों का कभी जीर्णोद्धार नहीं कर सकते! शेष रह जाती हैं, त्रुटियाँ भग्नावशेष होती हैं भूतकाल की! जीर्ण-शीर्ण स्मृतियाँ! शेष रहती हैं ! उनके कुछ छोर भग्नावशेष के रूप में वर्तमान के सिरे से बँधे रह जाते हैं! तुम जानते हो ना जीर्णोद्धार हो जाता है हर ऐतिहासिक जीर्ण शीर्ण स्तंभ या किले द्वार और राजप्रासाद आदि का। होते देखा होगा ना उनका नवीनीकरण!
अशेष_शून्य
"जीवन को नकारने वाली लाखों वजहों में से गर जीवन को "चुनने" की सिर्फ़ एक वजह हो मेरे लिए "तो वो तुम हो" : सिर्फ़ तुम ......!!" - Anjali Rai ( शेष अनुशीर्षक में ...) क्या हुआ .... सब ठीक तो है ....कुछ अशांत सी हो पूछते ही स्पर्श किया माथे को दाहिने हथेली उलट कर .... तुम्हें ज्वर है क्या अंतर्मन इतना क्य