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राजकारण
सोलापुरातील तीन वरिष्ठ पोलीस निरीक्षकांच्या बदल्या ©राजकारण सोलापूर : राज्याच्या पोलिस महासंचालकांनी १२९ पोलिस निरीक्षकांसह तब्बल २१२ उपनिरीक्षकांच्या बदल्यांचे आदेश काढले आहेत. त्यात सोलापूर शहरातील
N S Yadav GoldMine
आप मेरे इस अपराध को क्षमा कर मुझ पर कृपा कीजिए और मुझे धन-धान्य से समृद्ध कीजिए जानें रोचक कथा !! 💠💠 {Bolo Ji Radhey Radhey} गयासुर की कथा :- 🌟 धर्म, सदाचार, नीति, न्याय, और सत्य का बोध कराने वाली प्राचीन कथाएं। यह प्राचीन कथा है हमारे जीवन के लिए प्रेरणादायक होती है। वैदिक काल में ब्रह्माजी जब सृष्टि की रचना कर रहे थे तो असुर कुल में गय का जन्म हुआ, पर उसमें आसुरी वृत्ति नहीं थी। वह परम वैष्णव तथा दैवज्ञ था। वेद संहिताओं में जिन असुरों का नाम आया है, उसमें गय प्रमुख है। एक बार उसकी इच्छा हुई कि वह अच्छे कार्य कर इतना पुण्यात्मा हो जाए कि लोग उसके दर्शन करके ही सब पापों से मुक्त हो जाएं तथा मृत्यु के बाद उन्हें स्वर्ग में स्थान मिले। 🌟 ऐसा विचार कर उसने कोलाहल पर्वत पर समाधि लगाकर भगवान विष्णु की तपस्या करनी प्रारंभ की। वर्ष पर वर्ष बीतते गए, उसकी तपस्या चलती रही। उसके कठोर तप से प्रभावित होकर भगवान विष्णु प्रगट हुए और गय की समाधि भंग करते हुए कहा-महात्मन गय, उठो! तुम्हारी तपस्या पूर्ण हुई। किस उद्देश्य के लिए इतना कठोर तप किया? अपना इच्छित वर मांगो। गय ने आंखें खोली तो देखा, सामने चतुर्भुज भगवान विष्णु खड़े हैं। गय ने चरणों में दण्डवत प्रणाम कर कहा-भगवन! 🌟 आपके चतुर्भुज रूप का दर्शन कर मेरे सब पाप दूर हो गए। मुझे ऐसा लगता है कि आप इसी रूप में मेरे अन्दर समा गए हैं। अब तो यही इच्छा है, आप इसी रूप में मेरे शरीर में वास करें तथा जो मुझे देखे, उसे मेरे बहाने आपके दर्शन का पुण्य मिले तथा उसके सभी पाप नष्ट हो जाएं और वह इतना पुण्यात्मा हो जाए कि मृत्यु के बाद उस जीव को स्वर्ग में स्थान मिले। मेरे इस तप का फल उन सबको प्राप्त हो जो मेरे माध्यम से आपके अप्रत्यक्ष दर्शन करें। 🌟 गय की इस सार्वजनिक कल्याण-भावना से भगवान विष्णु बहुत प्रभावित हुए और हाथ उठाकर बोले-तथास्तु! ऐसा कहते ही भगवान अन्तर्धान हो गए। अब गय एक स्थान पर न बैठकर सर्वत्र घूम-घूम कर लोगों से मिलता। फलस्वरूप जो भी उसे देखता, उसके पापों का क्षय हो जाता और वह मरणोपरान्त स्वर्ग का अधिकारी हो जाता। इससे यमराज की व्यवस्था में व्यवधान आ गया। अब किसी के कर्मफल का लेखा-जोखा वे क्या रखें, जब गय के दर्शन होते ही उसके सब पाप नष्ट हो जाते हैं तथा वह स्वर्ग का अधिकारी हो जाता है तो फिर नरक दूतों का क्या कार्य रहा। 🌟 उन्होंने ब्रह्मा जी के सामने यह समस्या रखी। ब्रह्मा जी ने कहा-ठीक है, इसका कुछ उपाय करते हैं। कर्मफल का विधान बना रहना चाहिए। हम इसके शरीर पर एक यज्ञ का आयोजन करते हैं तथा मैं और अन्य सारे देवता इसकी पीठ पर पत्थर रखकर, उस पर बैठकर उसे अचल कर देंगे। फिर यह कहीं आ-जा न सकेगा। गय की पीठ पर यज्ञ हो, यह तो और पुण्य का काम है, गय ने ब्रह्मा के इस प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकार कर लिया। ब्रह्मा जी यमराज सहित सारे देवताओं को लेकर, पत्थर से दबाकर उस पर बैठ गए। अपने ऊपर इतना भार होने पर भी गय अचल नहीं हुआ। 🌟 देवगणों को चिन्ता हुई तो ब्रह्मा ने कहा-इसे भगवान विष्णु ने वरदान दिया है, इसलिए हम विष्णु जी की शक्ति का आह्वान करें तथा उन्हें भी इस शिला पर अपने साथ बैठाएं, तब यह अचल होगा। ब्रह्मा समेत सब देवों ने विष्णु का आह्वान किया तथा अपनी और यमराज की समस्या बताई। विष्णु इस पर विचार कर जब सबके साथ उस पर बैठे तब कहीं जाकर वह अचल हुआ। विष्णु को अपने ऊपर आकर बैठे देखकर उसने देवताओं से कहा-आप सब तथा भगवान विष्णु की मर्यादा के लिए मैं अब अचल होता हूं तथा घूमकर लोगों को दर्शन देकर जो उनका पाप क्षय करता था, उस कार्य को समाप्त करता है। 🌟 पर आप सबके इस प्रयास से भी भगवान विष्णु का यह वरदान व्यर्थ सही जाएगा। भगवन, अब आप मुझे पत्थर-शिला के रूप में परिवर्तित कर यहीं अचल रूप से स्थापित कर दें। गय का यह मर्यादित त्याग देखकर भगवान विष्णु प्रसन्न हो उठे और बोले-गय! तुम्हारा यह त्याग व्यर्थ नहीं जाएगा। इस अवस्था में भी तुम्हारी कोई इच्छा हो तो वह कहो, मैं उसे पूर्ण करूंगा। 🌟 गय ने कहा-नारायण! मेरी इच्छा है कि आप इन सभी देवताओं के साथ अपरोक्ष रूप से इसी शिला पर विराजमान रहें और यह स्थान मरणोपरान्त धार्मिक कृत्य के लिए तीर्थस्थल बन जाए। जो व्यक्ति यहां अपने पितरों का श्राद्ध करें, तर्पण-पिण्ड दान आदि करें, उन मृतात्माओं को नरक की पीड़ा से मुक्ति मिले। यह सारा क्षेत्र ऐसी ही पुण्य-भूमि बन जाए। 🌟 विष्णु ने कहा-गय! तुम धन्य हो! तुमने अपने जीवन में भी जन कल्याण के लिए ऐसा ही वर मांगा और अब मरण-अवस्था में मृत आत्माओं की मुक्ति के लिए भी ऐसा ही वर मांग रहे हो। तुम्हारी इस जन-कल्याण भावना से हम सब बंध गए। ऐसा ही होगा। इस क्षेत्र का नाम तुम्हारे नाम गयासुर के अर्धभाग गया से विख्यात होगा। इस क्षेत्र में आने वाले तथा इस शिला के दर्शन कर यहां श्राद्ध तर्पण-पिण्ड दान करने वालों के पूर्वजों को जीवन में जाने-अनजाने किए गए पाप कर्मों से मुक्ति मिलेगी। यहां स्थित पर्वत गयशिर कहलाएगा। 🌟 गयशिर पर्वत की परिक्रमा, फल्गू नदी में स्नान तथा इस शिला का दर्शन करने पर पितरों का तो कल्याण होगा ही, जो यहां इस उद्देश्य से आएगा, उसके पुण्य में भी श्रीवृद्धि होगी। भगवान विष्णु से ऐसा वर पाकर गय संतुष्ट होकर शान्त हो गया। बिहार प्रदेश में स्थित गया पितरों के श्राद्ध पिण्ड-दान का महत्वपूर्ण तीर्थ स्थान है। यहां स्थित विष्णु मंदिर के पृष्ठ भाग में पत्थर की एक अचल शिला आज भी स्थित है। जो जन-कल्याण के लिए अपना जीवन समर्पित करते हैं, उनका यश ऐसे ही चिरकाल तक स्थायी तथा स्थिर होता है। जो केवल अपने लिए न जीकर समष्टि के लिए जीते हैं, उनका जन्म-मरण दोनों सार्थक होता है। ©N S Yadav GoldMine #Gulaab आप मेरे इस अपराध को क्षमा कर मुझ पर कृपा कीजिए और मुझे धन-धान्य से समृद्ध कीजिए जानें रोचक कथा !! 💠💠 {Bolo Ji Radhey Radhey} गयासुर
Sai Raj Mainkar
atrisheartfeelings
आत्म संतुष्टि प्रभुजी इतना दीजिये जा में कुटुम्ब समाय ! में भी भूखा न रहूँ साधू भी भूखा न जाये !! एक कहानी जीवन की किसी और की कलम से आत्म संतुष्टी पुराने समय की बात है, एक गाँव में दो किसान रहते थे। दोनों ही बहुत गरीब थे, दोनों के पास थोड़ी थोड़ी ज़मीन थी, दोनों उसमें ही
Anekanth B
मेरे एक बहुत ही करीबी मित्र थे, अब नहीं रहे। मेरा मतलब है कि वो ज़िंदा हैं लेकिन मित्र नहीं रहे। हुआ यूं कि एक बार मैंने उन्हें किसी और से मेरा बखान करते हुए सुन लिया था और मुझे खुद की बड़ाई सुनने में शर्म आती है। तो मैंने उनसे सीधे कह दिया था कि "भाई साहब, अगर आपको मुझे गांडू बुलाना है तो मुंह पे बोलिये, क्या है ना, कोई अगर पीठ पीछे बोलता है तो मैं पाद देता हूँ।" तथास्तु #yqbaba #yqdidi #yqhumour #project365
Anekanth Bahubali
मेरे एक बहुत ही करीबी मित्र थे, अब नहीं रहे। मेरा मतलब है कि वो ज़िंदा हैं लेकिन मित्र नहीं रहे। हुआ यूं कि एक बार मैंने उन्हें किसी और से मेरा बखान करते हुए सुन लिया था और मुझे खुद की बड़ाई सुनने में शर्म आती है। तो मैंने उनसे सीधे कह दिया था कि "भाई साहब, अगर आपको मुझे गांडू बुलाना है तो मुंह पे बोलिये, क्या है ना, कोई अगर पीठ पीछे बोलता है तो मैं पाद देता हूँ।" तथास्तु #yqbaba #yqdidi #yqhumour #project365
Abhay Bhadouriya
भगवती देवी महामाया कि कथा ( अनुशीर्षक में पढ़ें ) दुर्गा सप्तसती के प्रथम अध्याय में महर्षि मेधा ने राजा सुरथ और वैश्य समाधि को भगवती देवी योगमाया की कथा और उनके प्रभाव से मधु कैतभ के वध
N S Yadav GoldMine
{Bolo Ji Radhey Radhey} जब भगवान विष्णु ने लोक कल्याण के लिए किए छल :- हिन्दू धर्म में कहते हैं कि ब्रह्माजी जन्म देने वाले, विष्णु पालने वाले और शिव वापस ले जाने वाले देवता हैं। भगवान विष्णु तो जगत के पालनहार हैं। वे सभी के दुख दूर कर उनको श्रेष्ठ जीवन का वरदान देते हैं। जीवन में किसी भी तरह का संकट हो या धरती पर किसी भी तरह का संकट खड़ा हो गया हो, तो विष्णु ही उसका समाधान खोजकर उसे हल करते हैं। भगवान विष्णु ने ही नृसिंह अवतार लेकर एक और जहां अपने भक्त प्रहलाद को बचाया था वहीं क्रूर हिरण्यकश्यपु से प्रजा को मुक्ति दिलाई थी। उसी तरह वराह अवतार लेकर उन्होंने महाभयंकर हिरण्याक्ष का वध करके देव, मानव और अन्य सभी को भयमुक्त किया था। उन्होंने ही महाबलि और मायावी राजा बलि से देवताओं की रक्षा की थी। इसी तरह श्रीहरि विष्णु ने कुछ ऐसे कार्य किए थे जिनको जनकल्याण के लिए किया गया छल कहा गया। यदि वे ऐसा नहीं करते तो कई देवी और देवताओं की जान संकट में होती। तो आओ जानते हैं श्रीहरि विष्णु द्वारा जनहित में किए गए 5 छल… भस्मासुर के साथ छल : भस्मासुर का नाम सुनकर सभी को उसकी कथा याद हो आई होगी। भस्मासुर के कारण भगवान शंकर की जान संकट में आ गई थी। हालांकि भस्मासुर का नाम कुछ और था लेकिन भस्म करने का वरदान प्राप्त करने के कारण उसका नाम भस्मासुर पड़ गया। भस्मासुर एक महापापी असुर था। उसने अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए भगवान शंकर की घोर तपस्या की और उनसे अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन भगवान शंकर ने कहा कि तुम कुछ और मांग लो तब भस्मासुर ने वरदान मांगा कि मैं जिसके भी सिर पर हाथ रखूं वह भस्म हो जाए। भगवान शंकर ने कहा- तथास्तु। भस्मासुर ने इस वरदान के मिलते ही कहा, भगवन क्यों न इस वरदान की शक्ति को परख लिया जाए। तब वह स्वयं शिवजी के सिर पर हाथ रखने के लिए दौड़ा। शिवजी भी वहां से भागे और विष्णुजी की शरण में छुप गए। तब विष्णुजी ने एक सुन्दर स्त्री का रूप धारण कर भस्मासुर को आकर्षित किया। भस्मासुर शिव को भूलकर उस सुंदर स्त्री के मोहपाश में बंध गया। मोहिनी स्त्रीरूपी विष्णु ने भस्मासुर को खुद के साथ नृत्य करने के लिए प्रेरित किया। भस्मासुर तुरंत ही मान गया। नृत्य करते समय भस्मासुर मोहिनी की ही तरह नृत्य करने लगा और उचित मौका देखकर विष्णुजी ने अपने सिर पर हाथ रखा। शक्ति और काम के नशे में चूर भस्मासुर ने जिसकी नकल की और भस्मासुर अपने ही प्राप्त वरदान से भस्म हो गया। यहां छुपे थे शिव : भस्मासुर से बचने के लिए भगवान शंकर वहां से भाग गए। उनके पीछे भस्मासुर भी भागने लगा। भागते-भागते शिवजी एक पहाड़ी के पास रुके और फिर उन्होंने इस पहाड़ी में अपने त्रिशूल से एक गुफा बनाई और वे फिर उसी गुफा में छिप गए। बाद में विष्णुजी ने आकर उनकी जान बचाई। माना जाता है कि वह गुफा जम्मू से 150 किलोमीटर दूर त्रिकुटा की पहाड़ियों पर है। इन खूबसूरत पहाड़ियों को देखने से ही मन शांत हो जाता है। इस गुफा में हर दिन सैकड़ों की तादाद में शिवभक्त शिव की आराधना करते हैं। वृंदा के साथ छल : श्रीमद्मदेवी भागवत पुराण अनुसार जलंधर असुर शिव का अंश था, लेकिन उसे इसका पता नहीं था। जलंधर बहुत ही शक्तिशाली असुर था। इंद्र को पराजित कर जलंधर तीनों लोकों का स्वामी बन बैठा था। यमराज भी उससे डरते थे। श्रीमद्मदेवी भागवत पुराण अनुसार एक बार भगवान शिव ने अपना तेज समुद्र में फेंक दिया तथा इससे जलंधर उत्पन्न हुआ। माना जाता है कि जलंधर में अपार शक्ति थी और उसकी शक्ति का कारण थी उसकी पत्नी वृंदा। वृंदा के पतिव्रत धर्म के कारण सभी देवी-देवता मिलकर भी जलंधर को पराजित नहीं कर पा रहे थे। जलंधर को इससे अपने शक्तिशाली होने का अभिमान हो गया और वह वृंदा के पतिव्रत धर्म की अवहेलना करके देवताओं के विरुद्ध कार्य कर उनकी स्त्रियों को सताने लगा। जलंधर को मालूम था कि ब्रहांड में सबसे शक्तिशाली कोई है तो वे हैं देवों के देव महादेव। जलंधर ने खुद को सर्वशक्तिमान रूप में स्थापित करने के लिए क्रमश: पहले इंद्र को परास्त किया और त्रिलोकाधिपति बन गया। इसके बाद उसने विष्णु लोक पर आक्रमण किया। जलंधर ने विष्णु को परास्त कर देवी लक्ष्मी को विष्णु से छीन लेने की योजना बनाई। इसके चलते उसने बैकुण्ठ पर आक्रमण कर दिया, लेकिन देवी लक्ष्मी ने जलंधर से कहा कि हम दोनों ही जल से उत्पन्न हुए हैं इसलिए हम भाई-बहन हैं। देवी लक्ष्मी की बातों से जलंधर प्रभावित हुआ और लक्ष्मी को बहन मानकर बैकुण्ठ से चला गया। इसके बाद उसने कैलाश पर आक्रमण करने की योजना बनाई और अपने सभी असुरों को इकट्ठा किया और कैलाश जाकर देवी पार्वती को पत्नी बनाने के लिए प्रयास करने लगा। इससे देवी पार्वती क्रोधित हो गईं और तब महादेव को जलंधर से युद्घ करना पड़ा, लेकिन वृंदा के सतीत्व के कारण भगवान शिव का हर प्रहार जलंधर निष्फल कर देता था। अंत में देवताओं ने मिलकर योजना बनाई और भगवान विष्णु जलंधर का वेष धारण करके वृंदा के पास पहुंच गए। वृंदा भगवान विष्णु को अपना पति जलंधर समझकर उनके साथ पत्नी के समान व्यवहार करने लगी। इससे वृंदा का पतिव्रत धर्म टूट गया और शिव ने जलंधर का वध कर दिया। विष्णु द्वारा सतीत्व भंग किए जाने पर वृंदा ने आत्मदाह कर लिया, तब उसकी राख के ऊपर तुलसी का एक पौधा जन्मा। तुलसी देवी वृंदा का ही स्वरूप है जिसे भगवान विष्णु लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय मानते हैं। भारत के पंजाब प्रांत में वर्तमान जालंधर नगर जलंधर के नाम पर ही है। जालंधर में आज भी असुरराज जलंधर की पत्नी देवी वृंदा का मंदिर मोहल्ला कोट किशनचंद में स्थित है। मान्यता है कि यहां एक प्राचीन गुफा थी, जो सीधी हरिद्वार तक जाती थी। माना जाता है कि प्राचीनकाल में इस नगर के आसपास 12 तालाब हुआ करते थे। नगर में जाने के लिए नाव का सहारा लेना पड़ता था मोहिनी बनकर किया असुरों के साथ छल : जब इन्द्र दैत्यों के राजा बलि से युद्ध में हार गए, तब हताश और निराश हुए देवता ब्रह्माजी को साथ लेकर श्रीहरि विष्णु के आश्रय में गए और उनसे अपना स्वर्गलोक वापस पाने के लिए प्रार्थना करने लगे। श्रीहरि ने कहा कि आप सभी देवतागण दैत्यों से सुलह कर लें और उनका सहयोग पाकर मदरांचल को मथानी तथा वासुकि नाग को रस्सी बनाकर क्षीरसागर का मंथन करें। समुद्र मंथन से जो अमृत प्राप्त होगा उसे पिलाकर मैं आप सभी देवताओं को अजर-अमर कर दूंगा तत्पश्चात ही देवता, दैत्यों का विनाश करके पुनः स्वर्ग का आधिपत्य पा सकेंगे। देवताओं के राजा इन्द्र दैत्यों के राजा बलि के पास गए और उनके समक्ष समुद्र मंथन का प्रस्ताव रखा और अमृत की बात बताई। अमृत के लालच में आकर दैत्य ने देवताओं का साथ देने का वचन दिया। देवताओं और दैत्यों ने अपनी पूरी शक्ति लगाकर मदरांचल पर्वत को उठाकर समुद्र तट पर लेकर जाने की चेष्टा की लेकिन नहीं उठा पाए तब श्रीहरि ने उसे उठाकर समुद्र में रख दिया। मदरांचल को मथानी एवं वासुकि नाग की रस्सी बनाकर समुद्र मंथन का शुभ कार्य आरंभ हुआ। श्रीविष्णु की नजर मथानी पर पड़ी, जो कि अंदर की ओर धंसती चली जा रही थी। यह देखकर उन्होंने स्वयं कच्छप बनाकर अपनी पीठ पर मदरांचल पर्वत को रख लिया। तत्पश्चात समुद्र मंथन से लक्ष्मी, कौस्तुभ, पारिजात, सुरा, धन्वंतरि, चंद्रमा, पुष्पक, ऐरावत, पाञ्चजन्य, शंख, रम्भा, कामधेनु, उच्चैःश्रवा और अंत में अमृत कुंभ निकले जिसे लेकर धन्वन्तरिजी आए। उनके हाथों से अमृत कलश छीनकर दैत्य भागने लगे ताकि देवताओं से पूर्व अमृतपान करके वे अमर हो जाएं। दैत्यों के बीच कलश के लिए झगड़ा शुरू हो गया और देवता हताश खड़े थे। श्रीविष्णु अति सुंदर नारी का रूप धारण करके देवता और दैत्यों के बीच पहुंच गए और उन्होंने अमृत को समान रूप से बांटने का प्रस्ताव रखा। दैत्यों ने मोहित होकर अमृत का कलश श्रीविष्णु को सौंप दिया। मोहिनी रूपधारी विष्णु ने कहा कि मैं जैसे भी विभाजन का कार्य करूं, चाहे वह उचित हो या अनुचित, तुम लोग बीच में बाधा उत्पन्न न करने का वचन दो तभी मैं इस काम को करूंगी। सभी ने मोहिनीरूपी भगवान की बात मान ली। देवता और दैत्य अलग-अलग पंक्तियों में बैठ गए। मोहिनी रूप धारण करके विष्णु ने छल से सारा अमृत देवताओं को पिला दिया, लेकिन इससे दैत्यों में भारी आक्रोश फैल गया। असुरराज बलि के साथ छल : असुरों के राजा बलि की चर्चा पुराणों में बहुत होती है। वह अपार शक्तियों का स्वामी लेकिन धर्मात्मा था। दान-पुण्य करने में वह कभी पीछे नहीं रहता था। उसकी सबसे बड़ी खामी यह थी कि उसे अपनी शक्तियों पर घमंड था और वह खुद को ईश्वर के समकक्ष मानता था और वह देवताओं का घोर विरोधी था। कश्यप ऋषि की पत्नी दिति के दो प्रमुख पुत्र हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष थे। हिरण्यकश्यप के 4 पुत्र थे- अनुहल्लाद, हल्लाद, भक्त प्रह्लाद और संहल्लाद। प्रह्लाद के कुल में विरोचन के पुत्र राजा बलि का जन्म हुआ। राजा बलि का राज्य संपूर्ण दक्षिण भारत में था। उन्होंने महाबलीपुरम को अपनी राजधानी बनाया था। आज भी केरल में ओणम का पर्व राजा बलि की याद में ही मनाया जाता है। राजा बलि ने विश्वविजय की सोचकर अश्वमेध यज्ञ किया और इस यज्ञ के चलते उसकी प्रसिद्धि चारों ओर फैलने लगी। अग्निहोत्र सहित उसने 98 यज्ञ संपन्न कराए थे और इस तरह उसके राज्य और शक्ति का विस्तार होता ही जा रहा था, तब उसने इंद्र के राज्य पर चढ़ाई करने की सोची। इस तरह राजा बलि ने 99वें यज्ञ की घोषणा की और सभी राज्यों और नगरवासियों को निमंत्रण भेजा। देवताओं की ओर गंधर्व और यक्ष होते थे, तो दैत्यों की ओर दानव और राक्षस। अंतिम बार हिरण्यकशिपु के पुत्र प्रहलाद और उनके पुत्र राजा बलि के साथ इन्द्र का युद्ध हुआ और देवता हार गए, तब संपूर्ण जम्बूद्वीप पर असुरों का राज हो गया। तब लेना पड़ा वामन अवतार : वामन ॠषि कश्यप तथा उनकी पत्नी अदिति के पुत्र थे। वे आदित्यों में 12वें थे। ऐसी मान्यता है कि वे इन्द्र के छोटे भाई थे और राजा बलि के सौतेले भाई। विष्णु ने इसी रूप में जन्म लिया था। देवता बलि को नष्ट करने में असमर्थ थे। बलि ने देवताओं को यज्ञ करने जितनी भूमि ही दे रखी थी। तब सभी देवता विष्णु की शरण में गए। विष्णु ने कहा कि वह भी (बलि भी) उनका भक्त है, फिर भी वे कोई युक्ति सोचेंगे। तब विष्णु ने अदिति के यहां जन्म लिया और एक दिन जब बलि यज्ञ की योजना बना रहा था तब वे ब्राह्मण-वेश में वहां दान लेने पहुंच गए। उन्हें देखते ही शुक्राचार्य उन्हें पहचान गए। शुक्र ने उन्हें देखते ही बलि से कहा कि वे विष्णु हैं। मुझसे पूछे बिना कोई भी वस्तु उन्हें दान मत करना। लेकिन बलि ने शुक्राचार्य की बात नहीं सुनी और वामन के दान मांगने पर उनको तीन पग भूमि दान में दे दी। जब जल छोड़कर सब दान कर दिया गया, तब ब्राह्मण वेश में वामन भगवान ने अपना विराट रूप दिखा दिया। भगवान ने एक पग में भूमंडल नाप लिया। दूसरे में स्वर्ग और तीसरे के लिए बलि से पूछा कि तीसरा पग कहां रखूं? पूछने पर बलि ने मुस्कराकर कहा- इसमें तो कमी आपके ही संसार बनाने की हुई, मैं क्या करूं भगवान? अब तो मेरा सिर ही बचा है। इस प्रकार विष्णु ने उसके सिर पर तीसरा पैर रख दिया। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर विष्णु ने उसे पाताल में रसातल का कलियुग के अंत तक राजा बने रहने का वरदान दे दिया। तब बलि ने विष्णु से एक और वरदान मांगा। राजा बलि ने कहा कि भगवान यदि आप मुझे पाताल लोक का राजा बना ही रहे हैं तो मुझे वरदान दीजिए कि मेरा साम्राज्य शत्रुओं के प्रपंचों से बचा रहे और आप मेरे साथ रहें। अपने भक्त के अनुरोध पर भगवान विष्णु ने राजा बलि के निवास में रहने का संकल्प लिया। पातालपुरी में राजा बलि के राज्य में आठों प्रहर भगवान विष्णु सशरीर उपस्थित रह उनकी रक्षा करने लगे और इस तरह बलि निश्चिंत होकर सोता था और संपूर्ण पातालपुरी में शुक्राचार्य के साथ रहकर एक नए धर्म राज्य की व्यवस्था संचालित करता है। माता पार्वती के साथ छल : माना जाता है कि बद्रीनाथ धाम कभी भगवान शिव और पार्वती का विश्राम स्थान हुआ करता था। यहां भगवान शिव अपने परिवार के साथ रहते थे लेकिन श्रीहरि विष्णु को यह स्थान इतना अच्छा लगा कि उन्होंने इसे प्राप्त करने के लिए योजना बनाई। पुराण कथा के अनुसार सतयुग में जब भगवान नारायण बद्रीनाथ आए तब यहां बदरीयों यानी बेर का वन था और यहां भगवान शंकर अपनी अर्द्धांगिनी पार्वतीजी के साथ मजे से रहते थे। एक दिन श्रीहरि विष्णु बालक का रूप धारण कर जोर-जोर से रोने लगे। उनके रुदन को सुनकर माता पार्वती को बड़ी पीड़ा हुई। वे सोचने लगीं कि इस बीहड़ वन में यह कौन बालक रो रहा है? यह आया कहां से? और इसकी माता कहां है? यही सब सोचकर माता को बालक पर दया आ गई। तब वे उस बालक को लेकर अपने घर पहुंचीं। शिवजी तुरंत ही समझ गए कि यह कोई विष्णु की लीला है। उन्होंने पार्वती से इस बालक को घर के बाहर छोड़ देने का आग्रह किया और कहा कि वह अपने आप ही कुछ देर रोकर चला जाएगा। लेकिन पार्वती मां ने उनकी बात नहीं मानी और बालक को घर में ले जाकर चुप कराकर सुलाने लगी। कुछ ही देर में बालक सो गया तब माता पार्वती बाहर आ गईं और शिवजी के साथ कुछ दूर भ्रमण पर चली गईं। भगवान विष्णु को इसी पल का इंतजार था। इन्होंने उठकर घर का दरवाजा बंद कर दिया। भगवान शिव और पार्वती जब घर लौटे तो द्वार अंदर से बंद था। इन्होंने जब बालक से द्वार खोलने के लिए कहा तब अंदर से भगवान विष्णु ने कहा कि अब आप भूल जाइए भगवन। यह स्थान मुझे बहुत पसंद आ गया है। मुझे यहीं विश्राम करने दीजिए। अब आप यहां से केदारनाथ जाएं। तब से लेकर आज तक बद्रीनाथ यहां पर अपने भक्तों को दर्शन दे रहे हैं और भगवान शिव केदानाथ में। ©N S Yadav GoldMine #CityWinter {Bolo Ji Radhey Radhey} जब भगवान विष्णु ने लोक कल्याण के लिए किए छल :- हिन्दू धर्म में कहते हैं कि ब्रह्माजी जन्म देने वाले, विष
An_se_Anshuman
Azad
गमो की गुलज़ार हो, खुशियों की बहार हो। जो मुस्कुरा दो आप एक बार, तो चाँद भी आपका शुक्रगुजार हो।। गमो की गुलज़ार हो, खुशियों की बहार हो। जो मुस्कुरा दो आप एक बार, तो चाँद भी आपका शुक्रगुजार हो।। Wishing you a very happy birthday and all