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Rjt
मेंहदी के साथ में दिल ओ जज़्बात पिसे हैं... #rjt #ishq #mohabbatkadard
Rashmi Hule
एक क्षण मंतरलेला आठवात निगुतीने जपलेला काळोखरात्री विचार तुझेच अन् अचानक तु अवतरलेला विषयाला शब्दमर्यादा नाही शुभदुपार मित्रहो 🙂 एक क्षण मंतरलेला हा विषय दिपाली पिसे यांनी सुचविला आहे, अभिनंदन दिपाली जी! 👌💐👍 #एकक्षण
sandy
रात्र संपली ! सूर्य उगवला, पहाट झाली ! पक्ष्यांची किलबिल अन कळ्या फुलून सारा आसमंत बहरला ! अन क्षणात गारवा पसरला ! ते ओले दवबिंदू पानावरी ब
sandy
रात्र संपली ! सूर्य उगवला, पहाट झाली ! पक्ष्यांची किलबिल अन कळ्या फुलून सारा आसमंत बहरला !
Sarita Prashant Gokhale
येता पहिला पाऊस देतो मनाला गारवा, सृष्टी सजताना सारी शालू नेसते हिरवा.! येता पहिला पाऊस नाचे मोर रानामध्ये, पिसे गळताना दाटे रडू सारे मनामध्ये.! येता पहिला पाऊस होतो शेतकरी बाप, देतो जगाला आधार दिसे घामाचा प्रताप.! येता पहिला पाऊस वारा भरे दान असं रानी वनी हिरवळ तेव्हा ओठी भरे हसं.! ©Sarita Prashant Gokhale शीर्षक:- पहिला पाऊस येता पहिला पाऊस देतो मनाला गारवा, सृष्टी सजताना सारी शालू नेसते हिरवा.! येता पहिला पाऊस
Devesh Dixit
महँगाई की मार (दोहे) महँगाई की मार से, हाल हुआ बेहाल। खर्चों के लाले पड़े, बिगड़ गये सुर ताल।। बीच वर्ग के हैं पिसे, देख हुए नाकाम। अब सोचें वह क्या करें, बढ़ा सकें कुछ काम।। फिर भी हैं कुछ घुट रहे, मिला न जिनको काम। महँगाई के दर्द में, जीना हुआ हराम।। चिंतित सब परिवार हैं, दें किसको अब दोष। महँगाई ऐसी बढ़ी, थमें नहीं अब रोष।। विद्यालय व्यवसाय हैं, दिखते हैं सब ओर। शुल्क मांँगते हैं बहुत, पाप करें ये घोर।। मुश्किल से शिक्षा मिले, कहते सभी सुजान। महँगाई की मार है, यही बड़ा व्यवधान।। .......................................................... देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #महँगाई_की_मार #दोहे #nojotohindipoetry #nojotohindi महँगाई की मार (दोहे) महँगाई की मार से, हाल हुआ बेहाल। खर्चों के लाले पड़े, बिगड़ गये
अशोक द्विवेदी "दिव्य"
एक कप इश्क़ (कॉफ़ी) कैप्शन में पढ़िए । इंटरनेशनल कॉफ़ी डे एक कप कॉफ़ी के वजह से बहुत से दिल जुड़ते है रिश्ते बनते हैं । और लगभग हर प्रेम की शुरुआत का दौर इसके इर्दगिर्द ही होता है
AK__Alfaaz..
आओ...! कुछ देर साथ बैठतें हैं, मन के बरामदे मे, एक विश्वास की, आराम कुर्सी पर तुम बैठना, एक प्रेम की खाट पर मैं, किंतु आने से पूर्व, अपने अहम के स्वेद से लथपथ, अपनी रूढ़ियों की कमीज को, दिल के कमरे मे, समर्पण के दरवाजे के पीछे लगी, संवेदना की खूँटी पर टाँग देना, ताकि तेरे पुरूषार्थ मे डूबे, तेरे गर्व की बू न फैले यहाँ, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #रिवाज़ आओ...! कुछ देर साथ बैठतें हैं, मन के बरामदे मे, एक विश्वास की,
sandy
एक झाड कापलं जातं तेव्हा झाडाच्या मुळातून एखाद्या ज्वाळेसारखा वरवर चढणारा जीवनरस थिजून जातो एका खटक्यात. घरघर आवाज करत यंत्राचं पातं लगट करत