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Pooja Nishad
पायलें ज़रिया रही हैं चंचलता से लिपटी गाती हुई बहार का ! प्रेम मयी होती हुई कोई स्त्री और प्रेमी का दिल पग-पग पर सृजन करता नव- संसार का उचित होगा अगर कहूं पायलें रही हैं भव्य पथ श्रृंगार का और मेरे लिए ये बेड़ियां कभी न होंगी... -तुम्हारी प्रेयसी पायलें ज़रिया रही हैं चंचलता से लिपटी गाती हुई बहार का ! प्रेम मयी होती हुई कोई स्त्री और प्रेमी का दिल
पायलें ज़रिया रही हैं चंचलता से लिपटी गाती हुई बहार का ! प्रेम मयी होती हुई कोई स्त्री और प्रेमी का दिल
read moreपूजा निषाद
पायलें ज़रिया रही हैं चंचलता से लिपटी गाती हुई बहार का ! प्रेम मयी होती हुई कोई स्त्री और प्रेमी का दिल पग-पग पर सृजन करता नव- संसार का उचित होगा अगर कहूं पायलें रही हैं भव्य पथ श्रृंगार का और मेरे लिए ये बेड़ियां कभी न होंगी... -तुम्हारी प्रेयसी पायलें ज़रिया रही हैं चंचलता से लिपटी गाती हुई बहार का ! प्रेम मयी होती हुई कोई स्त्री और प्रेमी का दिल
पायलें ज़रिया रही हैं चंचलता से लिपटी गाती हुई बहार का ! प्रेम मयी होती हुई कोई स्त्री और प्रेमी का दिल
read moreMAHENDRA SINGH PRAKHAR
उछल-उछल गोरी चले , पहने पायल पाँव । छम-छम करती पायलें , घायल सारा गाँव ।। आज सभी को है मिला , द्वार उसी का ठाँव । ठुमक-ठुमक कर वो चले , बजती पायल पाँव ।। एक वही घर गाँव में , सबसे ऊँचा दुर्ग । कायल पायल के हुए , बच्चे और बुजुर्ग ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR उछल-उछल गोरी चले , पहने पायल पाँव । छम-छम करती पायलें , घायल सारा गाँव ।। आज सभी को है मिला , द्वार उसी का ठाँव । ठुमक-ठुमक कर वो चले ,
उछल-उछल गोरी चले , पहने पायल पाँव । छम-छम करती पायलें , घायल सारा गाँव ।। आज सभी को है मिला , द्वार उसी का ठाँव । ठुमक-ठुमक कर वो चले , #कविता
read moreKulbhushan Arora
Chanchal is चुनचुन चिड़िया Dedicating a #testimonial to Chanchal चुन चुन करती आई चुनचुन, चंचल ही नटखट सी चुनमुन, सुबह सवेरे ख़ूब चहचहाती, भोर के मन को गुदगुदाती, ऐसे
Dedicating a #testimonial to Chanchal चुन चुन करती आई चुनचुन, चंचल ही नटखट सी चुनमुन, सुबह सवेरे ख़ूब चहचहाती, भोर के मन को गुदगुदाती, ऐसे #yqdidi #yqquotes #yqtestimonial
read moreMAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- प्यार का दीपक बुझा के चल दिए । बेवफ़ा हमको बता के चल दिए ।।१ तोड़कर रिश्ते मुहब्बत के तुम्हीं । गैर को अपना बना के चल दिए ।।२ पूछता है दिल अभी भी आप से । आप क्यों कल मुस्कुरा के चल दिए ।।३ नींद भी आयी न हमको सोचकर । इस तरह से दिल जला के चल दिए ।।४ हक मुहब्बत में तुम्हें किसने दिया । प्यार जो मेरा मिटा के चल दिए ।।५ इन सितारों से भरेंगे माँग हम । आप ये सपना दिखा के चल दिए ।।६ ये प्रखर नादान उल्फत में रहा । पायलें जब वो बजा के चल दिए ।।७ २७/०१/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR प्यार का दीपक बुझा के चल दिए । बेवफ़ा हमको बता के चल दिए ।।१ तोड़कर रिश्ते मुहब्बत के तुम्हीं । गैर को अपना बना के चल दिए ।।२
प्यार का दीपक बुझा के चल दिए । बेवफ़ा हमको बता के चल दिए ।।१ तोड़कर रिश्ते मुहब्बत के तुम्हीं । गैर को अपना बना के चल दिए ।।२ #शायरी
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नहीं कोई जहाँ मे अब हमारा औ तुम्हारा है ।। तुम्हारा प्यार ही साथी हमारा अब सहारा है ।।१ समझ जिसको रहें अपना वहीं ख़ंजर लिए बैठा । करेगा क़त्ल वो मेरा समय करता इश़ारा है ।।२ न जाने क्यों खफ़ा मुझसे यहाँ है ज़िंदगी अपनी । मगर हर मोड़ पर हमने उसी को ही पुकारा है ।।३ बड़ी खामोश रहती है सुना है पायलें उनकी । मिला जब भी सनम मुझसे सुनों पायल उतारा है ।। ४ कहें क्या आप बीती हम बता अब दूर से इतनी । तुम्हारे बिन यहाँ कैसे सुनो जीवन गुजारा है ।।५ न मिलते आप जो हमको यकीं था डूब ही जाते । तुम्हीं ने डूबती कस्ती हमारी पार उतारा है ।। ६ बहुत बेरंग थी दुनिया प्रखर की यार अब सुन लो । नज़र भर कर दफ़ा पहली तुम्हें भी तो निहारा है ।।७ २९/०५/२०२२ महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR नहीं कोई जहाँ मे अब हमारा औ तुम्हारा है ।। तुम्हारा प्यार ही साथी हमारा अब सहारा है ।।१ समझ जिसको रहें अपना वहीं ख़ंजर लिए बैठा । करेगा क़त्ल
नहीं कोई जहाँ मे अब हमारा औ तुम्हारा है ।। तुम्हारा प्यार ही साथी हमारा अब सहारा है ।।१ समझ जिसको रहें अपना वहीं ख़ंजर लिए बैठा । करेगा क़त्ल #शायरी
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जीवन में क्या हार के , बैठे हो मन मीत । मन के हारे हार है , मन के जीते जीत ।। १ आज मिलन की रात में , संग रहेगा मीत । रुनझुन रुनझुन पायलें , छेडेंगी संगीत ।। २ दो पंक्षी अब दे रहे , खुशियों का संदेश । प्रीत प्यार पावन जहां , सुंदर वो परिवेश ।। ३ पिया प्रीत में तुम कभी , मुझे न जाना भूल । इस डाली में और भी , खिल जायेंगे फूल ।। ४ जीवन के हर मोड़ पर , संग रहे मन मीत । सुख दुख के मोती चुने , गायें सुंदर गीत ।। ५ प्यासे मन का उड गया , पंक्षी वो चितचोर । रोते-रोते हो गई , सुनो आज भी भोर ।। ६ सूरत है मन मोहिनी , चले हिरण की चाल । अधरो पे रहती शहद , नैना करे कमाल ।। ७ आज रिझाने मन लगी , मन में उठे सवाल । आये जब तुम सामने , चेहरा हुआ गुलाल ।। ८ ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR जीवन में क्या हार के , बैठे हो मन मीत । मन के हारे हार है , मन के जीते जीत ।। १ आज मिलन की रात में , संग रहेगा मीत । रुनझुन रुनझुन पायल
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- दो कदम चलकर जताना आ गया । आज ये कैसा जमाना आ गया ।।१ होश तो आया नहीं उनको मगर । राह उल्फ़त की दिखाना आ गया ।।२ पायलें तुमको बजाना आ गया । नींद प्रियतम की उड़ाना आ गया ।।३ छुप गये डरकर वहीं हो तुम सदा । सामने जब भी सयाना आ गया ।।४ जुल्फ़ अपनी बाँधकर देखो कभी । अब इन्हें खुलकर उलझना आ गया ।।५ हर अदा तेरी मुझे कातिल लगी । किस तरह तुझको सताना आ गया ।।६ भटकना हमको नही है राह में । बाँह का तेरी ठिकाना आ गया ।।७ नाम प्रियतम का लिखो तुम हाथ में । अब हिना तुमको रचाना आ गया ।।८ एक ख्वाबों की यहाँ दुनिया बना । प्रीत का फिर हर तराना आ गया ।।९ आपकी हर बात में जादू दिखा । छोड़कर दुनिया दिवाना आ गया ।।१० नील अंबर कह रहा हमसे प्रखर । लौटकर तेरा खिलौना आ गया ।।११ ०१/०९/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- दो कदम चलकर जताना आ गया । आज ये कैसा जमाना आ गया ।।१ होश तो आया नहीं उनको मगर । राह उल्फ़त की दिखाना आ गया ।।२
ग़ज़ल :- दो कदम चलकर जताना आ गया । आज ये कैसा जमाना आ गया ।।१ होश तो आया नहीं उनको मगर । राह उल्फ़त की दिखाना आ गया ।।२ #शायरी
read moreMAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- दो कदम चलकर जताना आ गया । आज ये कैसा जमाना आ गया ।।१ होश तो आया नहीं उनको मगर । राह उल्फ़त की दिखाना आ गया ।।२ पायलें तुमको बजाना आ गया । नींद प्रियतम की उड़ाना आ गया ।।३ छुप गये डरकर वहीं हो तुम सदा । सामने जब भी सयाना आ गया ।।४ जुल्फ़ अपनी बाँधकर देखो कभी । अब इन्हें खुलकर उलझना आ गया ।।५ हर अदा तेरी मुझे कातिल लगी । किस तरह तुझको सताना आ गया ।।६ भटकना हमको नही है राह में । बाँह का तेरी ठिकाना आ गया ।।७ नाम प्रियतम का लिखो तुम हाथ में । अब हिना तुमको रचाना आ गया ।।८ एक ख्वाबों की यहाँ दुनिया बना । प्रीत का फिर हर तराना आ गया ।।९ आपकी हर बात में जादू दिखा । छोड़कर दुनिया दिवाना आ गया ।।१० नील अंबर कह रहा हमसे प्रखर । लौटकर तेरा खिलौना आ गया ।।११ ०१/०९/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- दो कदम चलकर जताना आ गया । आज ये कैसा जमाना आ गया ।।१ होश तो आया नहीं उनको मगर । राह उल्फ़त की दिखाना आ गया ।।२
ग़ज़ल :- दो कदम चलकर जताना आ गया । आज ये कैसा जमाना आ गया ।।१ होश तो आया नहीं उनको मगर । राह उल्फ़त की दिखाना आ गया ।।२ #शायरी
read moreभाग्य श्री बैरागी
वहाॅं का अलग सा माहौल, कहते हैं यही वो घर था, जो बचपन से तुम्हारा होना बताया गया, तौर-तरीके दूसरी स्त्री के यहाॅं भी, यह नारी को गलत नारी की साड़ी में लपेट देती। धीरे धीरे से फिर, सामाजिक बंधनों को भी, वे कसकर कमर से बाॅंध लेती हैं, कभी बेड़ियों को पायल कहती, सर पर डाल पल्लू वो तहज़ीब सीखती। फिर जब वह ख़ुद माँ बनती है, बाॅंधना चाहती है बंधन में बेटी को, जो बेडियाॅं पायलें हैं उसे पहनाती जाती, जब सास बनती बहु से वही सब चाहती, फिर वह मासूमियत को स्त्री बनाती है। स्त्रियाॅं, स्त्रियाॅं पैदा नहीं होती, उन्हें जन्म के बाद स्त्री बनाते है, जन्म तो बालिकाऍं लेती हैं, वो तब केवल लड़की होती है, उन्हें स्त्
स्त्रियाॅं, स्त्रियाॅं पैदा नहीं होती, उन्हें जन्म के बाद स्त्री बनाते है, जन्म तो बालिकाऍं लेती हैं, वो तब केवल लड़की होती है, उन्हें स्त् #yqdidi #yqhindi #मेरी_बै_रा_गी_कलम
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