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Amit Singhal "Aseemit"
आपसी संबंधों को मधुर बनाए रखें, प्रयोग करें भाषा कर्णप्रिय एवं शिष्ट। स्वयं को स्पष्टवादी एवं पारदर्शी रखें, स्वयं को न बनाएं असभ्य व क्लिष्ट। ©Amit Singhal "Aseemit" #क्लिष्ट
Nishh.
बात सरल थी पर शब्द कुछ क्लिष्ट हो गए। समझाते समझाते वो भी दुष्ट हो गए। सुना है, आजकल वो ज्यादा खाने लगे है, इसीलिए वो इतने हष्ट पुष्ट हो गए। क्लिष्ट- कठिन #nojoto#nojotohindi#nojotocomedy#hindishayri
SURAJ आफताबी
ये अलकों के तर्क़ जाल मुख पर बिखरे ऐसे कि नजरें क्या; हवा भी गुजरे तो उलझ जाये कह दो जरा यूँ उन्मुक्त न रखे बिना ताले की सलाखें ताउम्र कैदी न बन जाये वो, जो यहाँ बेगरज़ आये ! गुलाबी सीपों में बंद दँतों की मोती चमक मुस्कान की कली जो फूटे बिखर जाये हमारी व्याकुल भावनाओं को भी कोई पता दो आपके आस्य पर न हो केंद्रित तो फिर किधर जाये ! बड़े क्लिष्ट झुल्फों के तर्क जाल 😄😄😋 लघु कविता 🤗 आस्य - चेहरा #कविताएँज़िंदारहतीहैं #yqdidi #yqhindi #yqbaba #yqpoetry #love #life #lovequo
कवि रोशनलाल "हंस"
कवि बनने की इच्छा हो तो, यह भी कला बहुत मामूली | नुस्खा बतलाता हूँ, लिख लो, कविता क्या है, गाजर मूली | कोश खोल कर रख लो आगे, क्लिष्ट शब्द उसमें से चुन लो| उन शब्दों का जाल बिछा कर, चाहो जैसी कविता बुन लो | श्रोता जिसका अर्थ समझ लें, वह तो तुकबंदी है भाई | जिसे स्वयं कवि समझ न पाए, वह कविता है सबसे हाई | इसी युक्ती से बनो महाकवि, उसे "नई कविता" बतलाओ | कुछ तो स्टैंडर्ड बनाओ | #काका_हाथरसी कवि बनने की इच्छा हो तो, यह भी कला बहुत मामूली | नुस्खा बतलाता हूँ, लिख लो, कविता क्या है, गाजर मूली | कोश खोल कर रख लो आगे,
Rakesh frnds4ever
प्रेम त्याग है , बलिदान है , निस्वार्थ सेवा भाव है सम्पूर्ण समर्पण है,,, प्रेम में इच्छा, चाहत, कामना, या कुछ लेना नही होता है प्रेम संतुष्टि है, सद्कर्म है, परोपकार है इसमें सदा देने का भाव होता है प्रेम केवल नर नारी/ पुरुष स्त्री या लड़का लड़की में निहित नहीं है यह वह अनुभूति होती है जिसे आप प्रकृति में पशु पक्षियों जानवरों में या फिर साथी, सहचर,दोस्तों, सहपाठी या किसी भी सजीव वस्तु में इंसानियत या सहयोग या अपनी प्रसन्नता के रूप में महसूस कर सकें आप इसे नैसर्गिक प्रकिया समझ सकते हैं जो कि भौतिक सुख सुविधाओं से सर्वोपरि होती है आधुनिक वर्तमान दुनिया इसके अर्थों से अभिन्न, इसके रूप स्वरूप से अज्ञात हो इसे क्लिष्ट , विकिर्त, नष्ट, ओर इसके विनाश में संलिप्त है,,,..... ©Rakesh frnds4ever #Love #प्रेम त्याग है , बलिदान है , निस्वार्थ सेवा भाव है सम्पूर्ण #समर्पण ण है,,, प्रेम में इच्छा, चाहत, कामना, या कुछ लेना नही होता है
रजनीश "स्वच्छंद"
भाव पढ़ता हूँ।। दर्द लिखकर तेरा मैं भाव पढ़ता हूँ, अहं की दीवार पर मैं घाव करता हूँ।। सुकूँ खुशियों में मिला सबको यहां, ग़मों की धूप में भी मैं छांव करता हूँ। दिए की एक लौ सी है कविता मेरी, दबी चिंगारी को भी अलाव करता हूँ। शब्दों की अविरल धार है ये लेखनी, तिनके को भी एक मैं नाव करता हूँ। जो बिखरे हैं जो टूटे हैं इस ज़माने में, हर उस दिल मे जा मैं ठाँव करता हूँ। अधिकारों के जंग में लेखनी तलवार थी, अपने सर हर योद्धा का पांव करता हूँ। कौन मेरा कौन तेरा, कौन पराया सगा, अपने मन को ही मैं पूरा गांव करता हूँ। शब्द हैँ क्लिष्ट नहीं भाव पर गम्भीर हैं, कह बात अपनी यहीं पड़ाव करता हूँ। ©रजनीश "स्वछंद" भाव पढ़ता हूँ।। दर्द लिखकर तेरा मैं भाव पढ़ता हूँ, अहं की दीवार पर मैं घाव करता हूँ।। सुकूँ खुशियों में मिला सबको यहां, ग़मों की धूप में भी म
Bharat Bhushan pathak
आज का व्यंग्य :- अभी पिता की ये है इच्छा। बस अँग्रेज़ी बोले बच्चा।। भूले भले ही अपनी भाषा। टूटे ना अँग्रेज़ी आशा।। बनें पिताजी डेड भले ही। मोम बने ही माँ पिघले भी।। चाहे गरदन कटते सॉरी। रैप साँग बन जाए लोरी।। मार भगाया जिसको हमने। पकड़ लिया क्यों उसको तुमने।। अपनी हम भाषा को तौलें। नहीं अन्य को ऐसे मोलें।। अति मनहर जब अपनी भाषा। फिर दूजी की क्यों परिभाषा।। केवल ना बदली है भाषा। बदल गयी है वो अभिला षा।। मानव जिसमें मानव रहता। हरदम पानी जैसे बहता।। भाषा अपनी लगती भारी। औरों की क्यों लगती प्यारी।। भाषा अपनी शिष्ट बनाए। औरों की जी क्लिष्ट बनाए।। सहज सरल जो अपनी हिन्दी। लगती प्यारी जिसकी बिन्दी।। हिय लगाओ सदा ही इसको। छोड़ो उसको भजते जिसको।। गिटिर-पिटिर अब तुमने कर ली। बस अँग्रेज़ी बहुत ही धर ली।। अबसे बस सीखो तुम हिन्दी। पकड़ो ना अँग्रेज़ी बिन्दी।। ©Bharat Bhushan pathak #व्यंग्य#आज का आज का व्यंग्य :- अभी पिता की ये है इच्छा। बस अँग्रेज़ी बोले बच्चा।। भूले भले ही अपनी भाषा। टूटे ना अँग्रेज़ी आशा।। ब
sandy
❤️💛❤️ एकाकी ती 💛❤️💛 "सुप्रिया.. आवरलंस काय गं.?" दरवाजातून आत येताच शिरीषने आवाज दिला. बाहेरून शिरीषचा अचानक आलेला आवाजा ऐकून दुपारपासून बे