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Amit Sir KUMAR
प्रकृति से दूर, कंक्रीट के जंगलों में अपना एक हिस्सा खोता जा रहा हूं महफिलों के शोर में,एक अंधी दौड़ में तन्हाइयों के और नजदीक होता जा रहा हूं रिश्तों के इस भीड़ में, खुदगर्जी के दौर में इंसानियत से और दूर होता जा रहा हूं तेज रफ्तार जिंदगी में, अनजाने राहो में अंदर कुछ थम गया है शायद दुनिया से कुछ और दूर होता जा रहा हूं। ©Amit Sir KUMAR #flowers प्रकृति से दूर, कंक्रीट के जंगलों में....
Sunil Pande Writer Content Creator
Mubarak
Michkle Raja
Nisheeth pandey
रिश्ता अब रिश्तों की जड़ काट रहें हैं , अपने अपनो में जहर बाँट रहे हैं , भूख मिटती नहीं लालच की, रिश्ते अपने दूरकर ,कुत्ते से मुँह चाटवा रहें हैं । ख़ून ख़ून मुहब्बत की जड़ काट रहे हैं , जुबान अपनो के लिये ज़हर उगल रहे हैं , तहरिस निगल रहीं सारे रिश्ते नाते मानव की, कंक्रीट की औकाद से बड़ी दीवारें तन्हा चाट रहे हैं । बादलों से अब कुरीतियां मानो बरसने लगी है , भेड़ियों की आँधियां बढ़ने लगी है, नन्हीं- मुन्नी तितलियां भी अब तो बेख़ौफ़ नहीं , छः आठ साल की पाक रूह हवस की भेंट चढ़ने लगी है। लूट लो चाहे कितना भी, काफी नहीं है ? जन्नत यहीं जहन्नुम यहीं तेरे करर्मों की भोग यहीं है , माना नोंच लिया है सब रोम रोम अपनो के अपनों ने, घात छोड़ा जो अगली पीढ़ी के लिये नफ़रत काफी नहीं है। #निशीथ ©Nisheeth pandey #Problems रिश्ता अब रिश्तों की जड़ काट रहें हैं , अपने अपनो में जहर बाँट रहे हैं , भूख मिटती नहीं लालच की, रिश्ते अपने दूरकर ,कुत्ते से मुँ
Nisheeth pandey
नज़रे ढूंढती फिरती है गर्मी में, अगर कहीं हो विशाल पेड़ की छांव... जो बुलाता पास निकट बिठाता देता ठंडी ठंडी छांव .... लेकिन हम मानव प्रकृति का दुश्मन काट रहें उजाड़ रहे खत्म कर रहें पेड़ों की महत्ता पेड़ों की जमीन पर सजा रहें बस कंक्रीट की ऊंची दीवारें फलस्वरूप तापमान धरती का बढ़ रहा गर्मी उफ गर्मी , दिन पर दिन आग बरस रहा झुलस रहा गर्मी से तन बदन गांव-मोहल्ला कूंचा-कूंचा.... गरमी कोयले के खान में जैसे लगा दिया किसी ने आग .... हरियाली मिटती जा रहीं पानी मिटती जा रहीं जीवन घुट रहीं दीवारों के घेरों में आत्मा मर गयी तन हंगामा मचा रहा है भौतिक सुख में प्रकृति खो रहें हैं आओ पेड़ पैधे बचाये और लगाएं जिससे हो खेती हरी भरी जिससे हो धरती हरी भरी जिससे कमी न हो ऑक्सीजन की जिससे हो हमारी आने वाली पीढ़ी हरी भरी...... #निशीथ ©Nisheeth pandey #WorldEnvironmentDay नज़रे ढूंढती फिरती है गर्मी में, अगर कहीं हो विशाल पेड़ की छांव... जो बुलाता पास निकट बिठाता देता ठंडी ठंडी छांव .... ले
SHREENIVAS MITAKUL