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Munna Maurya Munna
मुन्ना प्रिंटिंग प्रेस ©Munna Maurya Munna मुन्ना प्रिंटिंग प्रेस कॉन्फ्रेंस
Vishanaram Suthar
Mo. Asiph
इसे अंतरराष्ट्रीय बनाने का आइडिया आया कहां से? ये आइडिया एक महिला का ही था. क्लारा ज़ेटकिन ने 1910 में कोपेनहेगन में कामकाजी महिलाओं की एक इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस के दौरान अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने का सुझाव दिया. उस वक़्त कॉन्फ़्रेंस में 17 देशों की 100 महिलाएं मौजूद थीं. उन सभी ने इस सुझाव का समर्थन किया. सबसे पहले साल 1911 में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्ज़रलैंड में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया था. लेकिन तकनीकी तौर पर इस साल हम 109वां अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मना रहे हैं. 1975 में महिला दिवस को आधिकारिक मान्यता उस वक्त दी गई थी जब संयुक्त राष्ट्र ने इसे वार्षिक तौर पर एक थीम के साथ मनाना शुरू किया. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की पहली थीम थी 'सेलीब्रेटिंग द पास्ट, प्लानिंग फ़ॉर द फ्यूचर.' #international_womens_day इसे अंतरराष्ट्रीय बनाने का आइडिया आया कहां से? ये आइडिया एक महिला का ही था. क्लारा ज़ेटकिन ने 1910 में कोपेनहेगन
aman6.1
रात के करीब एक बजे थे| उनका कॉल आया और रात के करीब एक बजे थे,उनका कॉल आया और हाल-ए-दिल उसने सुनाया. किया इजहार मोहब्बत का मुझको,,था नशे में वो बोलते हुए एक पल ना घबराया. गाया गीत उसने एक प्यार का मेरे लिए,,ना था वो एक पल भी शरमाया. Full post Read in mention⬇️⬇️ ⬇️⬇️⬇️⬇️⬇️⬇️⬇️⬇️⬇️⬇️ #Vo_Call लेखक--✍️अमनदीप सिंह(पंजाब)💥 💥((((((((((हाल-ए दिल))))))))))💥 रात के करीब एक बजे थे,उनका कॉल आया और हाल-ए-दिल उसने सुनाया.
KP EDUCATION HD
KP NEWS HD कंवरपाल प्रजापति समाज ओबीसी for ©KP NEWS HD यह एक चाल थी जो अच्छी तरह से काम कर गई. पहले रवींद्र जडेजा (Ravindra Jadeja) ने धनंजय डी सिल्वा को अपना शिकार बनाया. फिर, हार्दिक ने महेश ती
Rishika Srivastava "Rishnit"
#AzaadKalakaar #AzaadKalakaar स्त्री विमर्श क्यो?? स्त्री विमर्श वास्तव में एक जटिल प्रश्न बनकर युगांतर से मन को गुदगुदा ता आ रहा है यद्यपि नारी की उपस्थिति तो साहित्य की हर विद्याओं में किसी न किसी रूप में सदा से रहती ही आ रही है तब फिर इसी औचित्यता पर प्रश्नचिन्ह क्यों अंकित होता रहा है? हमारा देश आज़ाद हो चुका है फिर भी स्त्री की दशा आज भी दयनीय क्यों?? स्त्री विमर्श के विषय में एक प्रश्न और विचारणीय है कि क्या स्त्री द्वारा लिखित साहित्य स्त्रीवादी साहित्य होता है मेरे विचार से स्त्री या पुरुष के लेखन का नहीं है बस है स्त्री विमर्श पर कदम उठाने वाला या कलम उठाने वाली स्त्री स्वभाव का स्त्री समस्याओं की गहराई से परिचित है या नहीं स्त्री की पीड़ा उस पर हो रहे अत्याचार उत्पीड़न शोषण की कसक आदि को कभी मानसिक या वैचारिक रूप से भोगा है या नहीं। वैदिक काल में स्त्रियों की स्थिति संतोषजनक थी। समाज में स्त्री पुरुष दोनों समान रूप से सम्मानजनक जीवन जीने के अधिकारी थे। पुत्र या पुत्री के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं था। सामाजिक, आर्थिक शैक्षिक तथा धार्मिक कार्यों में दोनों की समान भागीदारी थी। पुत्र या पुत्री के पालन पोषण में भी कोई अंतर नहीं माना जाता था ।इस युग की सबसे बड़ी उपलब्धि थी के पुत्र की शिक्षा के साथ-साथ पुत्रियों तथा स्त्रियों की शिक्षा पर भी गंभीरता पूर्वक ध्यान दिया जाता था। परिणाम स्वरूप लोपामुद्रा, विश्ववारा, घोषा, सिक्त निवावरी जैसी कवि तथा मंत्र और सुक्तों के प्रसिद्ध रचयिता इसी युग की देन है । इसी युग में हुई स्त्री विकास के मार्ग में बाधक जैसे परंपरा नहीं थी। स्त्रियों को इच्छा अनुसार जीवन जीने की स्वतंत्रता प्राप्त थी। वैदिक काल और परिस्थितियों मैं शनै शनै परिवर्तन होने जैसा प्रतीत होने लगा यद्यपि पुत्री की शिक्षा-दीक्षा पूर्व चलती रहे तभी समाज की मानसिकता बदल गई। कालांतर में पुत्री भी स्वयं को पुत्र की तुलना में ही समझने लगी। चुकी इस युग में पर्दा प्रथा की चर्चा तो नहीं है। फिर भी नहीं रह गई सार्वजनिक सभा तथा धार्मिक अनुष्ठान में अपनी भागीदारी निभाने से वंचित होने लगी पुत्री का विवाह कम आयु में करने का विवाद चल पड़ा पुत्र-पुत्रियों के जन्म पर भी भेदभाव होने लगा। पुत्र का जन्म उत्सव मनाया जाने लगा लेकिन पुत्री के जन्म को अभिशाप समझा जाने लगा। पुत्रियों को वेदाध्ययन के अधिकार से बातचीत होना पड़ा। महाभारत में द्रोपदी के के लिए "पंडित" शब्द का विशेषण आया।ऐसी पंडिता जो माँ कुंती के आदेश के पाँच पतियों में बँटकर जीवन व्यतीत करने के लिए विवश हो जाती है। कुंती जो विशिष्ट आदर्श कन्याओं में गिनी जाती है समाज के भय से सूरज को समर्पित अपनी को कोम्यता के फलस्वरूप प्राप्त पुत्र रत्न को नदी में प्रवाहित करने हेतु विवश हो जाती है. सती साध्वी राज कुलोधभूता सीता एक साधारण पुरुष के कहने पर अपने पति श्री राम द्वारा परित्यक्ता वन अकारण वनवास के दुःख झेलती है।विचारणीय है यदि उस समय की सधी और मर्यादाओं से बंधी राजकन्या हो कि यदि ऐसी स्थिति की सामान्य स्त्रियों की दशा कैसी रही होगी. चुकी इस काल में स्त्रियों को आर्थिक दृष्टि से पर्याप्त अधिकार प्राप्त है। माता-पिता आदि से प्राप्त धन स्त्री धन था ही विवोहरान्त या विवाह के समय पर आप उपहारों पर भी स्त्रियों का अधिकार था किंतु मनु विधान के अनुसार वह उसकी संपूर्ण स्वामिनी नहीं थीं। पति का अनुमति के बिना उसका एक पल भी उपयोग नहीं कर सकती थी। खैर जैसा था- था लेकिन वर्तमान परिपेक्ष में भी हम देखते हैं कि आज भी पुरुषों की मानसिकता यथावत है। मुगल शासनकाल में चल रहे भक्ति आंदोलन के फल स्वरुप स्त्रियों को सामाजिक तथा धार्मिक स्वतंत्रता मिली फलता बदलाव का बीज अंकुरित होने लगा। 【आगे अनुशीर्षक में पढ़े】 ©rishika khushi ब्रिटिश शासन काल में स्त्रियों की परिस्थितियों के कुछ सुधार आया, क्योंकि शिक्षा का विस्तार किया गया। लड़कियों की शिक्षा में ईसाई मिशनरियाँ र
धाकड़ है हरियाणा
Arsh
नमस्कार! मैं रविश कुमार मुझे शर्म आती है जब...... Read Full स्टोरी in CAPTION श्री रवीश कुमार का व्यक्तित्व अब राष्ट्रीय नहीं अपितु अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर चुका है। आज इनकी आवाज जनसंख्या के एक बहुत बड़े भाग को
नेहा उदय भान गुप्ता
परिवार के प्रति प्रेम..... अनुशीर्षक में पढ़े....👇👇 शीर्षक — परिवार के प्रति प्रेम क्रमांक — 05 अभी कुछ दिन पहले की ही बात है....मैं यूट्यूब पर बैठकर रील वीडियो देख रही थी.....तभी उसमें मैंन
नेहा उदय भान गुप्ता😍🏹
परिवार के प्रति प्रेम..... अनुशीर्षक में पढ़े....👇👇 शीर्षक — परिवार के प्रति प्रेम क्रमांक — 05 अभी कुछ दिन पहले की ही बात है....मैं यूट्यूब पर बैठकर रील वीडियो देख रही थी.....तभी उसमें मैंन