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Srinivas
मेरी नज़र में योग दर्शन, आत्मा का चिंतन है। योग की सरल प्रक्रिया का अभ्यास करके जीवन, तन और मन को शाक्त, संतुलित और सहज बनाकर, एक सामान्य व्यक्ति, एक बेहतर इंसान बन सकता है। Yoga करो Young बनो Happy Yoga Day २०२१ ©Srinivas Mishra मेरी नज़र में योग दर्शन, आत्मा का चिंतन है। योग की सरल प्रक्रिया का अभ्यास करके जीवन, तन और मन को शाक्त, संतुलित और सहज बनाकर, एक सामान्य
मेरी नज़र में योग दर्शन, आत्मा का चिंतन है। योग की सरल प्रक्रिया का अभ्यास करके जीवन, तन और मन को शाक्त, संतुलित और सहज बनाकर, एक सामान्य #Yogaday2021
read moreNaresh Chandra
एक बात मेरी समझ में कभी नहीं आई कि ये फिल्म अभिनेता (या अभिनेत्री) ऐसा क्या करते हैं कि इनको एक फिल्म के लिए 50 करोड़ या 100 करोड़ रुपये मिलते हैं । सुशांत सिंह की मृत्यु के बाद भी यह चर्चा चली थी कि जब वह इंजीनियरिंग का टाॅपर था , तो फिर उसने फिल्म का क्षेत्र क्यों चुना था ? जिस देश में शीर्षस्थ वैज्ञानिकों , डाक्टरों , इंजीनियरों , प्राध्यापकों , अधिकारियों इत्यादि को प्रतिवर्ष 10 लाख से 20 लाख रुपये मिलता हो , जिस देश के राष्ट्रपति की कमाई प्रतिवर्ष 1 करोड़ से कम ही हो ; उस देश में एक फिल्म अभिनेता प्रतिवर्ष 10 करोड़ से 100 करोड़ रुपये तक कमा लेता है । आखिर ऐसा क्या करता है वह ? आखिर वह ऐसा क्या करता है कि उसकी कमाई एक शीर्षस्थ वैज्ञानिक से सैकड़ों गुना अधिक होती है ? आज तीन क्षेत्रों ने सबको मोह रखा है - सिनेमा , क्रिकेट और राजनीति । इन तीनों क्षेत्रों से सम्बन्धित लोगों की कमाई और प्रतिष्ठा सीमा से अधिक है । ये क्षेत्र आधुनिक युवाओं के आदर्श हैं , जबकि वर्तमान में इनकी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लगे हैं । स्मरणीय है कि विश्वसनीयता के अभाव में चीजें प्रासंगिक नहीं रहतीं और जब चीजें महँगी हों , अविश्वसनीय हों , अप्रासंगिक हों ; तो वह व्यर्थ ही है । सोचिए कि यदि सुशांत या ऐसे कोई अन्य युवक या युवती आज इन क्षेत्रों की ओर आकर्षित होते हैं , तो क्या यह बिल्कुल अस्वाभाविक है ? मेरे विचार से तो नहीं ... कोई भी सामान्य व्यक्ति धन , लोकप्रियता और चकाचौंध से प्रभावित हो ही जाता है । बाॅलीवुड में ड्रग्स या वेश्यावृत्ति , क्रिकेट में मैच फिक्सिंग , राजनीति में गुंडागर्दी - इन सबके पीछे धन मुख्य कारक है और यह धन हम ही उन तक पहुँचाते हैं । हम ही अपना धन फूँककर अपनी हानि कर रहे हैं । यह मूर्खता की पराकाष्ठा है । 70-80 वर्ष पहले तक प्रसिद्ध अभिनेताओं को सामान्य वेतन मिला करता था । 30-40 वर्ष पहले तक भी इनकी कमाई बहुत अधिक नहीं थी । 30-40 वर्ष पहले तक क्रिकेटरों के भी भाव नीचे ही थे । 30-40 वर्ष पहले तक राजनीति इतनी पंकिल नहीं थी । धीरे-धीरे ये हमें लूटने में लगे रहे और हम शौक से खुशी-खुशी लुटते रहे । हम इन माफियाओं के चंगुल में फँसते रहे और अपने बच्चों का , अपने देश का भविष्य बर्बाद करते रहे । 50 वर्ष पहले तक भी फिल्में इतनी अश्लील नहीं बनती थीं , क्रिकेटर और नेता इतने अहंकारी नहीं थे , आज तो ये भगवान बन बैठे हैं । अब आवश्यकता है इनको सिर पर से उठाकर पटक देने का ताकि ये अपनी हैसियत समझें । वियतनाम के राष्ट्रपति हो-ची-मिन्ह एक बार भारत आए थे । भारतीय मंत्रियों के साथ हुई मीटिंग में उन्होंने पूछा - " आपलोग क्या करते हैं ?" इनलोगों ने कहा - " हमलोग राजनीति करते हैं ।" उन्होंने फिर पूछा - " राजनीति तो करते हैं , लेकिन इसके अलावा क्या करते हैं ?" इन लोगों ने फिर कहा - " हमलोग राजनीति करते हैं ।" हो-ची मिन्ह बोले - " राजनीति तो मैं भी करता हूँ ; लेकिन मैं किसान हूँ , खेती करता हूँ । खेती से मेरी आजीविका चलती है । सुबह-शाम मैं अपने खेतों में काम करता हूँ । दिन में राष्ट्रपति के रूप में देश के लिए अपना दायित्व निभाता हूँ ।" स्पष्ट है कि भारतीय नेताओं के पास इसका कोई उत्तर न था । बाद में एक सर्वेक्षण से पता चला कि भारत में 6 लाख से अधिक लोगों की आजीविका राजनीति है । आज यह संख्या करोड़ों में है । कुछ महीनों पहले ही जब कोरोना से यूरोप तबाह हो रहा था , डाक्टरों को महीनों से थोड़ा भी अवकाश नहीं मिल रहा था ; पुर्तगाल के एक डाॅक्टरनी ने खिजलाकर कहा था - " रोनाल्डो के पास जाओ न , जिसे तुम करोड़ों डाॅलर देते हो ; मैं तो कुछ हजार डाॅलर पाती हूँ ।" मेरा दृढ़ विचार है कि जिस देश में युवा छात्रों का आदर्श वैज्ञानिक , शोधार्थी , शिक्षाशास्त्री आदि न होकर उपरोक्त लोग होंगे , उनकी स्वयं की आर्थिक उन्नति भले ही हो जाए , देश उन्नत नहीं होगा । जिस देश के अनावश्यक और अप्रासंगिक क्षेत्र का वर्चस्व बढ़ता रहेगा , देश की समुचित प्रगति नहीं होगी । धीरे-धीरे देश में भ्रष्टाचारी देशद्रोहियों की संख्या ही बढ़ती रहेगी , ईमानदार लोग हाशिये पर चले जाएँगे , राष्ट्रवादी कठिन जीवन जीने को अभिशप्त होंगे । नोट : - सभी क्षेत्रों में अच्छे व्यक्ति भी होते हैं । उनका व्यक्तित्व मेरे लिए हमेशा सम्माननीय रहेगा । एक बात मेरी समझ में कभी नहीं आई कि ये फिल्म अभिनेता (या अभिनेत्री) ऐसा क्या करते हैं कि इनको एक फिल्म के लिए 50 करोड़ या 100 करोड़ रुपये मिल
एक बात मेरी समझ में कभी नहीं आई कि ये फिल्म अभिनेता (या अभिनेत्री) ऐसा क्या करते हैं कि इनको एक फिल्म के लिए 50 करोड़ या 100 करोड़ रुपये मिल #लक्ष्मीनरेश #दिल_की_आवाज़
read moreSumeet Pathak
" ये जिन्दगी है ज़नाब , हर मोड़ पर ठेंगा दिखाएगी !!! " (अनुशीर्षक में ...) DQ : Caution : It's a long read ! Please be patience ! " क्या फ़र्क पड़ता है ... जिंदगी है चलती तो जाएगी ही ..! वो केहते हैं :
DQ : Caution : It's a long read ! Please be patience ! " क्या फ़र्क पड़ता है ... जिंदगी है चलती तो जाएगी ही ..! वो केहते हैं : #Live #Motivation #yqbaba #yqdidi #lesson #devinesoul07 #springs_offsprings
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गाथा खाटू श्याम बाबा की हर हारे का सहारा 🙏🌹जय श्री श्याम 🙏🌹 कृपया अनु-शीर्षक में पढ़ें चौथी रचना-गाथा खाटू श्याम बाबा की ************************ बर्बरीक बचपन में एक वीर और तेजस्वी बालक थे. बर्बरीक ने भगवान श्री कृष्ण और अपनी म
चौथी रचना-गाथा खाटू श्याम बाबा की ************************ बर्बरीक बचपन में एक वीर और तेजस्वी बालक थे. बर्बरीक ने भगवान श्री कृष्ण और अपनी म #hindipoetry #trendingquotes #कोराकाग़ज़ #नववर्ष2022 #collabwithकोराकाग़ज़ #tarunasharma0004 #विशेषप्रतियोगिता #कोराकाग़ज़महाप्रतियोगिता
read moreS K
भारतीय मौसम वेधशाला केन्द्र कहा स्थित है - पूणे ©S K सामान्य ज्ञान|| रेलवे सामान्य ज्ञान||general knowledge||
सामान्य ज्ञान|| रेलवे सामान्य ज्ञान||general knowledge|| #जानकारी
read moreParasram Arora
दिखने को तो हम सामान्य आदमी जैसे ही दिखते हैँ फिर भी ज्यादातर आदमी आदमियत बिगैर दिखता हैँ मोती की चाहत रखना कोई बुरी बात नही हैँ पर मोती.तो किनारो पर नही गहराई में मिलता हैँ अपने साथ भला हो या बुरा वक़्त तो तटस्थ रहता हैँ सामान्य आदमी तो प्रतिपल बदलता हैँ पर ज़ो तटस्थ हैँ वो स्थिर ही रहता हैँ ©Parasram Arora सामान्य आदमी
सामान्य आदमी
read moreसुधा भारद्वाज"निराकृति"
Crying is normal #सामान्य सामान्य सा ही है रोना,फूट पड़ना इन आंखों के चश्मों का क्योकि टूटना नही आता इन्हे दिल की तरह और न ही ये समेट पाती है नमकीन नीर(आंसू) को अधिक स्वयं में...!!! ©सुधा भारद्वाज #सामान्य #ItsNormal
आलोक अग्रहरि
#भारतीय_किसान पल-पल झूल रहे हैं जो रस्सी में, पेट नही भर पाते हैं जो पुत्रों के। अभावों और दुःखों की गठरी , मिलती है जिनको वरदान स्वरूप। ऐसे दाता का क्यों होता अपमान, करता मुझको बेचैन यही सवाल।। अन्नदाता को नही मिलती पूरी नींद, प्रजातन्त्र की यह कैसी रीति? सभी दलों और नेताओं के शपथ पत्र में, अन्नदाताओं को मिलता पहला स्थान।। कुर्सी मिलते ही विस्मृत हो जाते विचार, ऐसे हैं भारत के सभी नायक महान।। मिलें सम्मान और समुचित सहायता, यही हमारी इक छोटी सी अभिलाषा। करते नही कभी जो आराम, ऐसे दाता को शत-शत प्रणाम।। ✍️✍️✍️ #आलोक_अग्रहरि सामान्य किसान
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